Ishq007
Guest
|
बचपन में रामायण देखने हम भी जाते थे… रावण के खिलाफ मन में बड़ी नफ़रत पैदा हो गई थी… राम की विजय के लिए हर इतवार का इन्तज़ार और माँ बाबा से झूट बोलकर पड़ोस के महमूद चच्चा के घर सुबह-सुबह उनकी खिडकी पर अपनी जगह घेर लेते थे. भीड ज्यादा होने से वो अक्सर अपना दरवाजा नही खोलते थे । उस समय रामायण के राम को अगर कोई और टक्कर दे सकता था तो वो थे सिर्फ और सिर्फ अमिताभ बच्चन जिन्हें कोई बन्दूक कोई तलवार मार ही नहीं सकती थी. असम्भव को सम्भव बनाने का काम सिर्फ रामायण के राम या बॉलीवूड के अमिताभ के बस का था.
जब-जब अमिताभ ने किसी गुंडे को घूँसा मारा, अन्दर से आवाजें आती कि हम जीत गए… जब-जब राम को दुखी देखा तो आवाजें निकलती या अल्लाह रावण को बस इसी एपिसोड में ख़त्म कर दे… नब्बे के दशक का गरीब देश, बेरोज़गार नौजवान, असाक्षर जनता, भ्रष्ट और अग्रेज़नुमा अफसरशाही के चलते शाम को मिलने वाली हर रोटी एक असम्भव जंग में जीती हुई दौलत से कम नहीं थी.
एक ज़माने तक बिजली कनेक्शन, राशन कार्ड तो किस्मत वालों के नसीब में होता था. फ़ोन तो बस एक सपना था जो हम तम्बाकू के खाली दो डब्बों का मुह कागज़ से बंद करके और उसके पीछे से धागे बांध करके बना लेते थे. लम्बी लाइने लगाने के लिए तो जैसे हम भारतीय पैदा ही किये गए हैं. हफ्ते भर के खून और पसीने कि मेहनत के बाद टेंशन कम करने या कहिये कि व्यवस्था के खिलाफ गुस्से को रोकने के लिए और जनता कि तरफ से लड़ने के लिए या तो अमिताभ बच्चन की फ़िल्में काम आती थी या फिर रामायण के राम थे, जो व्यवस्था और जनता के बीच में एक मानसिक दीवार के तौर पर खड़े थे. बच्चन भक्त बाल लम्बे करके, टाइट वेल-वाटम की पैंट पहन कर व्यवस्था पर रॉब झाड़ने का अभिनय करते थे और रामभक्त रावणरुपी व्यवस्था के विनाश के लिए एक राम की प्रतोक्षा करते थे.
भारतीय व्यवस्था में परिवर्तन किसी चमत्कार से कम नहीं होगा, इसलिए राम का चमत्कारिक व्यक्तित्व और उनकी रावण पर चमत्कारिक विजय ही एक मात्र उम्मीद थी और है. कांग्रेस जैसे-जैसे वादे तोड़ने का अपना ही रिकॉर्ड तोड़ती रही, वैसे-वैसे चमत्कार की ज़रुरत भी बढ़ती रही. शॉर्टकट तरक्की, तत्काल विकास कि योजनायें लाई जाने लगी. वर्ल्ड बैंक और आई.एम.एफ़. का पैसा चमत्कार दिखाने लगा. मुम्बई, अहमदाबाद, बंगलौर और हैदराबाद चमकने लगे. किसी को फ़िक्र नहीं कि ये सब कैसे हो रहा है. बस सबको ख़ुशी थी कि दिल्ली बाम्बे में बिल्डिंगें ऊंची हो रही हैं. शॉर्टकट तरक्की और तत्काल विकास की योजनाओं में साइड इफ़ेक्ट के वही खतरे हैं, जो सेक्स रोग के रेलवे छाप हकीमों की दवाओं से होता है.
कांग्रेस तत्काल विकास लाती रही और साइड इफ़ेक्ट में भ्रष्टाचार, आतंकवाद और साम्प्रदायिकता और हिन्दू फासीवाद तेज़ी से फलने फूलने लगे. इसी साइड इफ़ेक्ट में संघ परिवार को अपने पैरों पर खड़े होने और कांग्रेस से इन्फॉर्मल रिश्ते तोड़ लेने में फायदा नज़र आने लगा, लेकिन संघ परिवार को सत्ता तक पहुंचने के लिए एक चमत्कार की ज़रूरत थी. कांग्रेस को सत्ता में बने रहने के लिए भी चमत्कार चाहिए था. कांग्रेस ने अमिताभ बच्चन का सहारा लिया और संघ परिवार ने राम का… पहली बार पता चला कि राम को पूजने के लिए हिंदुओं के पास कोई मंदिर ही नहीं है और राम का मंदिर सिर्फ एक मस्जिद को तोड़ कर ही बन सकता है. वैसे तो सोच ही नहीं सकते थे कि राम के लिए मंदिर बनवाने में किसी मुस्लिम को कभी कोई आपत्ति हो सकती थी. राम तो राम थे, लेकिन तब तक पता चला कि राम सिर्फ हिन्दू थे और हिंदुओं के लिए ही थे.
रामायण का सलोना सा राम राजनीति में बड़ा डरावना लगने लगा. अमिताभ बच्चन फेल हो गए, बल्कि अमिताभ का एंग्री यंगमैन को भारतीय राजनीति में प्रवेश ही नहीं दिया गया. लेकिन राम का चमत्कार चल गया. राम ने एक नया रावण बना लिया था. वो रावण था मुसलमान जिसका वध किये बगैर रामराज्य की स्थापना असम्भव थी. राजनीति का राम खून का प्यासा निकला. वही राम जिसके मुंह से रामानंद सागर नाम के लाहौरी कश्मीरी लेखक के बोल बुलवाये गए. वही राम जो महात्मा गांधी की अंतिम सांसों में पूजे गए. उसी राम से अब अशोक सिंघल, साध्वी ऋतंबरा, लालकृष्ण अडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती अपने ज़हरीले बोल बुलवाने लगे. यही वो लोग थे जिन्होंने गांधी के हत्यारे हीरो बनाने की कोशिश की.
भाजपा के राजनीति के राम ने चमत्कार कर दिखाया. बाबरी मस्जिद तोड़ कर राम को स्थापित कर दिया गया. राम फिर से पत्थर बन गए. चुप हो गये… क्यों चुप हुए, नहीं पता… लेकिन भाजपा के पत्ते बिखरने लगे. भाजपा इलेक्शन हारने लगी. लगा कि राम नाराज़ हो गए हैं. भाजपा ने तय कर लिया कि अब वो राम भरोसे चुनाव नहीं लड़ेंगे. मस्जिद टूटने से राम का काम ख़त्म हो चूका था, लेकिन भाजपा की राजनीतिक महत्वकांक्षाएं ख़त्म नहीं हुई थीं. उसे एक और राम की ज़रुरत थी, लेकिन इस बार पहले रावण बनाया गया और एक नया राम पैदा करने में जुट गए. पिछले दस सालों के सत्ता से बनवास में भाजपा और उसके समर्थक अफसरों और उसके शासित राज्यों ने पहले रावण बनाया है. इस्लामी आतंकवाद का रावण…
अगर मुसलमान रावण हैं, तो गुजरात में उन्हें ठिकाने वाले नकली राम का नाम है नरेंद्र मोदी… कहा जा रहा है कि उनके अन्दर चमत्कारिक शक्तियां हैं. उन्हें व्यवस्था को पटरी पर लाने में सिर्फ कुछ मन्त्र पढ़ने भर का समय लगेगा. हाल में एक साथी के मोदी चालीसा के दौरान हमने पुछा कि मोदी ये सब कैसे करेंगे? कहाँ से करेंगे? वो कांग्रेस से अलग क्या कार्यक्रम रखते हैं? उन्होंने कहा कि मोदी सब ठीक कर लेंगे. नरेंद्र मोदी भी खुद को एक चमत्कारिक व्यक्ति के तौर पर पेश कर रहे हैं, जिसके पास भारत की हर समस्या का तुरंत इलाज है. आतंकवादियों को ठिकाने लगाने वाले, गोधरा का बदला लेकर दिखाने वाले यशस्वी और तेजस्वी नरेंद्र मोदी में भारतीय जनता पार्टी एक नए राम को अवतरित कर रही हैं. अब ये पूछने की ज़रुरत ही नहीं कि देश की सारी समस्याएं कैसे हल होंगी? उसके लिए संसाधन कहाँ से आयेंगे? एक लोकतान्त्रिक व्यवस्था को एक चमत्कारिक व्यवस्था में बदलने का भारतीय जनता पार्टी का चुनावी कार्यक्रम दरअसल व्यवस्था के मुकाबले चमत्कार और नीति के बजाये व्यक्ति के स्थापना का कार्यक्रम है. जहां समूची व्यवस्था नरेंद्र मोदी के सामने श्रुद्धामय नतमस्तक रहे. राजा नरेंद्र मोदी के फरमान संविधान और उसूलों से बड़े हो जाएं. पुलिस, फ़ौज और प्रशासन बल्कि मीडिया भी जिस तेज़ी से मोदी के प्रति भक्तिभाव दिखा रही है, उससे समझना मुश्किल नहीं है कि यह चुनाव देश में लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गए हैं. जिन्हें लगता था कि नरेंद्र मोदी विकास पुरुष हैं, वह मोदी के असली सेक्रेटरी अमित शाह की बदले की राजनीती और भाजपा की घोषणापत्र में जान-बूझ कर देरी से बहुत कुछ समझ सकते हैं.
अब ये तस्वीर साफ़ हो चुकी है कि ये चुनाव देश को फासीवादी राज्य की ओर धकेलने की योजना है, जिसमें संघ परिवार रिलायंस और टाटा के कारोबारी घोड़े पर बैठ कर नफ़रत और हिंसा पर आधारित व्यवसथा को मज़बूत करना चाहती है. जितनी जल्दबाजी और जितना उतावलापन भारतीय जनता पार्टी में नरेंद्र मोदी को लेकर है, उससे लगता है कि पार्टी सत्ता के लिए कुछ भी कुर्बान कर सकती है. लोकतंत्र को, संविधान को, पार्टी को, अपने नेताओं को भी… मीडिया में उतावलेपन की वजह भी हो सकती है कि पार्टी और मीडिया को लगता है देश अभी लोकतंत्र को लेकर इतना सजग नहीं है. मीडिया और पार्टी को लगता है कि देश का वोटर नरेंद्र मोदी की नीति, कार्यक्रम और घोषणापत्र देखे बगैर वोट करेगा…
यही नहीं मीडिया और भाजपा ये समझ रही है और समझा रही हैं कि देश के वोटर के लिए लोकतंत्र, संविधान, कानून के प्रति व्यक्ति की जवाबदेही, आजादी, अदालत, पुलिस और प्रशासन की निष्पक्षता जैसी बातें बेकार के मुद्दे हैं और इन्हें विकास के लिए बलिदान किया जा सकता है.
भाजपा रामायण देखने वाली जनता को अपने राजनीति वाले राम का चमत्कार दिखा कर वोट बटोरना चाहती है. यह लड़ाई सीधे लोकतंत्र और फासीवाद के बीच में सीधी लड़ाई है, जिसमें एक तरफ राम का अपहरण करने वाली भाजपा है तो दूसरी तरफ रामायण देखने वाली हिन्दू मुस्लिम जनता हैं.
बहुत ज़रूरी है कि राम को भाजपा के चंगुल से आज़ाद कराया जाए ताकि एक बार फिर से एक साथ बैठ कर रामायण देखना संभव हो और अमिताभ बच्चन का एंग्री यंग मैन का किरदार राजनीति में सफल हो सके.
|