Dr kumar vishwas- ख़्वाब इतने तो दगाबाज़ न थे मेरे कभी

by vimmi singh on October 18, 2012, 08:39:16 AM
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vimmi singh
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ख़्वाब इतने तो दगाबाज़ न थे मेरे कभी
ख्व़ाब इतनी तो मेरी नीँद नहीं छलते थे
रात कि बात क्या इक दौर में ये ख़ानाबदोश
दिन निकलते ही मेरे साथ-साथ चलते थे,

मैं इन्हें जब भी पनाहों में जगह देता हुआ
अपनी पलकों की मुडेरों पे सजा लेता था ,
पूरा मौसम इन्ही ख्वाबों की सुगंधों से सजा
मेरे चटके हुए नग्मों का मज़ा लेता था ,

कुछ हवाओं के परिंदे इन्ही ख़्वाबों में लिपट
चाँद के साथ मेरी छत पे आ के मिलते थे ,
ये आँधियों को दिखा कर मुराद
और ये आज की शब इनकी हिमाकत देखो

इतनी मिन्नत पे भी ये एक पलक-भर ना रुके,
इनकी औकात कहाँ ?ये है मुकद्दर का फ़रेब
इतनी जिल्लत कि मेरे इश्क़ का दस्तार झुके,
ये भी दिन देखने थे आज तुम्हारे बल पर

ख़्वाब कि मुर्दा रियाया के भी यूँ पर निकले
तुम्हारी बातें, निगह, वादे तो तुम जैसे थे
तुम्हारे ख्वाब भी तुम जैसे ही शातिर निकले .....

....-Dr kumar Vishwas
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sksaini4
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«Reply #1 on: October 18, 2012, 09:36:31 AM »
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anmolarora
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«Reply #2 on: October 18, 2012, 12:09:58 PM »
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bahut khoob bahut khoob
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sbechain
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«Reply #3 on: October 18, 2012, 03:18:44 PM »
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ख़्वाब इतने तो दगाबाज़ न थे मेरे कभी
ख्व़ाब इतनी तो मेरी नीँद नहीं छलते थे
रात कि बात क्या इक दौर में ये ख़ानाबदोश
दिन निकलते ही मेरे साथ-साथ चलते थे,

मैं इन्हें जब भी पनाहों में जगह देता हुआ
अपनी पलकों की मुडेरों पे सजा लेता था ,
पूरा मौसम इन्ही ख्वाबों की सुगंधों से सजा
मेरे चटके हुए नग्मों का मज़ा लेता था ,

कुछ हवाओं के परिंदे इन्ही ख़्वाबों में लिपट
चाँद के साथ मेरी छत पे आ के मिलते थे ,
ये आँधियों को दिखा कर मुराद
और ये आज की शब इनकी हिमाकत देखो

इतनी मिन्नत पे भी ये एक पलक-भर ना रुके,
इनकी औकात कहाँ ?ये है मुकद्दर का फ़रेब
इतनी जिल्लत कि मेरे इश्क़ का दस्तार झुके,
ये भी दिन देखने थे आज तुम्हारे बल पर

ख़्वाब कि मुर्दा रियाया के भी यूँ पर निकले
तुम्हारी बातें, निगह, वादे तो तुम जैसे थे
तुम्हारे ख्वाब भी तुम जैसे ही शातिर निकले .....

....-Dr kumar Vishwas

bahut bahut khoob vimmi --achi sharing hai ji....!
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mkv
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«Reply #4 on: October 18, 2012, 04:23:42 PM »
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very nice sharing Applause
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nandbahu
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«Reply #5 on: October 18, 2012, 04:30:06 PM »
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very nice, thanx for sharing
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«Reply #6 on: October 18, 2012, 07:58:17 PM »
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ख़्वाब इतने तो दगाबाज़ न थे मेरे कभी
ख्व़ाब इतनी तो मेरी नीँद नहीं छलते थे
रात कि बात क्या इक दौर में ये ख़ानाबदोश
दिन निकलते ही मेरे साथ-साथ चलते थे,

मैं इन्हें जब भी पनाहों में जगह देता हुआ
अपनी पलकों की मुडेरों पे सजा लेता था ,
पूरा मौसम इन्ही ख्वाबों की सुगंधों से सजा
मेरे चटके हुए नग्मों का मज़ा लेता था ,

कुछ हवाओं के परिंदे इन्ही ख़्वाबों में लिपट
चाँद के साथ मेरी छत पे आ के मिलते थे ,
ये आँधियों को दिखा कर मुराद
और ये आज की शब इनकी हिमाकत देखो

इतनी मिन्नत पे भी ये एक पलक-भर ना रुके,
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vimmi singh
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«Reply #7 on: October 19, 2012, 04:50:05 PM »
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shukriya saini sir...... Usual Smile Usual Smile
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