R.Pankaj
Guest
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एक हाथ में चिमटा और एक हाथ में कड़छी, चूल्हे की आँच में तमतमाया चेहरा, माथे पर पसीने की बूँदें, पसीने की धार के साथ कान से ठोड़ी तक चिपकी अलक, आँखों में शरारत, खिली मुस्कान से फैले होंठ, होंठों के बीच से झाँकती मोतियों जैसी दन्तावली। सोफे पर अधलेटा लोचन एकटक निहार रहा था उस मनोहारी छवि को। उसके सीने पर औंधे मुँह पड़ी थी वह खुली डायरी, जिसे वह पाँच सौ पचपन बार पढ़ कर भी अघाया न था। न ही उसकी प्यास बुझ पायी थी पिछले तीस वर्षों से दिन-रात ड्राइंगरूम की दीवार पर अंकित उस छवि का रसपान करके। मोहिनी और लोचन का साथ पिछले तीस वर्षों से है, कोई भी तीसरा व्यक्ति इस रिश्ते के दरम्यान नहीं आ पाया कभी। लोचन के घर के द्वार दिन-रात खुले रहे हैं इस लम्बे अंतराल में। उसके घर के दरवाज़े पर कभी ताला बन्द नहीं हुआ भले ही लोचन विश्व के किसी भी कोने में विचर रहा हो। कितने ही चित्रकार,छायाकार, साहित्यकार, गीतकार, नाटककार, अभिनेता, निर्देशक, गायक, कलाकार, संगीतकार लोचन के घर में आश्रय पाते हैं। सभी का स्वागत करती है मोहिनी की छवि, होंठों के बीच से झाँकती मोतियों जैसी दन्तावली के साथ। उस दिन जब लोचन घर लौटा था रात के दस बजे, तो आश्चर्य-मिश्रित हँसी फैल गयी थी मोहन कवि की हालत देख कर। कमर से लिपटे तौलिए के सिवाय कुछ भी न था मोहन के तन पर। बरसों पूर्व बिछुड़े मित्रों के समान आपस में गले मिले थे दोनों यार। मोहन जम्मू से एक कवि-सम्मेलन में भाग ले कर बठिंडा लौट रहा था। रास्ते में पठानकोट में लोचन से मिलने का मोह त्याग नहीं पाया था मोहन। लोचन के स्वभाव की कोमलता व मिठास बरबस ही बाँध लेती है हर व्यक्ति को अपने मोहपाश में। दो सप्ताह पहले ही तो मिले थे मोहन और लोचन इसी घर में, जब मोहन पत्नी के साथ अमृतसर में बेटी की ससुराल जाते हुए पठानकोट में रुका था। एकाकी जीवन के अनेक साथी हैं लोचन के साथ। मन से वह कवि है, शौक से वह रंगमंच का कलाकार है, पेशे से चित्रकार व छायाकार है लोचन। पेंटिंग व फ़ोटोग्राफ़ी उसका पेशा होने के साथ-साथ एक साधना भी है। रचनात्मकता के ये सभी रूप लोचन के व्यक्तित्व में कुछ इस प्रकार गडमड हो चुके हैं कि उसका कोई एक रूप परिभाषित कर पाना कठिन है। उसकी अभिव्यक्ति की विभिन्न विधाओं के बीच की सीमारेखा अदृश्य सी है। कविता लिखते समय उसकी भाषा चित्रकार की तूलिका बन जाती है। फ़ोटोग्राफ़ खींचते समय उसकी काव्यात्मकता मुखर हो उठती है। रंगमंच पर अभिनय या निर्देशन करते हुए उसकी सभी विधायें उसे चारों ओर से घेर लेती हैं। तीस वर्ष पहले जब उसने चण्डीगढ़ के आर्ट कालेज में कमर्शियल आर्ट में प्रवेश लिया था तो निम्नमध्यवर्गीय कृषक परिवार के उस युवक के सामने आजीविका का उद्देश्य था। उसके विचार में कला का उद्देश्य मात्र कला कभी नहीं रहा। ड्राइंग, स्कैचिंग, पेंटिंग,फ़ोटोग्राफ़ी इत्यादि उसके डिग्री कोर्स के विषय मात्र थे। उंगलियों में रेखाओं के प्रति एक सहज आकर्षण के अतिरिक्त अन्य कोई सरोकार उसके कलाकार बनने का आधार न था। साधारण व्यक्तित्व का स्वामी ग्रामीण युवक त्रिलोचन कालेज के आधुनिक वातावरण से अभिभूत संकुचाया सा रहता था। युवा मन में नारी सौन्दर्य के प्रति नैसर्गिक आकर्षण ने त्रिलोचन को भी विचलित कर दिया था। उसी के बैच की माडर्न आर्ट की छात्रा अमृता की छवि उसके निश्छ्ल मन पर प्रथम दृष्टि में ही अंकित हो गई थी। अमृता एक संभ्रांत अत्याधुनिक परिवार से थी। चण्डीगढ़ उन दिनों नवांकुरित आधुनिकता के परिवेश में विकसित होता शहर था। अमृता का आकर्षक व्यक्तित्व, बेबाक स्वभाव आधुनिक जीवन-शैली जैसे त्रिलोचन को विचलित व आकर्षित करती थी उसी प्रकार वह अन्य छात्रों के आकर्षण का केन्द्र भी थी। युवा मन के सपनों की उड़ान अमृता के हिस्से में भी आई थी। पंजाब के साधारण कृषक परिवार व ग्रामीण परिवेश से आए त्रिलोचन के लिए आकर्षण का अर्थ था प्रेम तथा प्रेम का अर्थ था आजीवन साथ रहने की अभिलाषा। एकतरफा मूक प्रेम की लहरों पर सवार त्रिलोचन की कल्पना में अमृता का चेहरा उसकी जीवनसंगिनी के रूप में दिन-रात जीवन्त रहता। वह अवसर भी आया जब भावातिरेक में बह कर त्रिलोचन ने अपने हृदय की पुस्तक पर अंकित अपने प्रेमोद्गार अमृता के सामने रख दिए। अमृता आश्चर्य एवं गर्वमिश्रित मुस्कान होठों पर लिए उसकी ओर देखती रही और बेबाक स्वभाव के अनुरूप बिना संकुचाये उसके प्रस्ताव को सुन कर बोली थी, “त्रिलोचन! मैने कभी तुम्हारे प्रति ऐसे भाव नहीं रखे। केवल तुम्हारे मन में मेरे प्रति प्रेम के भाव होने का अर्थ यह नहीं कि मैं भी वैसा ही अनुभव करूँ। इस प्रकार के भाव कालेज के बीसियों लड़कों की आँखों में पढ़े हैं मैने। प्रेम तो केवल एक से ही होता है। मुझे नहीं लगता कि अभी हम इस प्रकार की सोच पालें। अभी तो कालेज का पहला वर्ष है। तीन वर्ष हमें इसी जगह रहना है। कौन जाने भविष्य में क्या हो?” अमृता की प्रतिक्रिया सुन कर त्रिलोचन पर मानो घड़ों पानी पड़ गया। वह संकोच से गड़ सा गया। त्रिलोचन का उतरा चेहरा देख अमृता द्रवित हो कर बोली थी, “त्रिलोचन! आज की बात से तुम शर्मिंदा न होना। भविष्य में भी मेरे मन में तुम्हारे लिए सम्मान रहेगा। हम अच्छे दोस्त तो रह ही सकते हैं।” उस दिन के बाद लोचन ने अपने प्रेम के ज्वार को संयम की दीवारों में बाँध लिया और अपनी पढ़ाई में जुटा रहा। अपनी निराशा को अपनी नियति मान कर उसने एक संकल्प कर लिया कि वह हमेशा काले रंग के कपड़े पहनेगा, जब तक अमृता के प्रेम की उसकी प्रतीक्षा समाप्त न हो जाए। यह रंग उस ने उस दु:खद दिन की याद में चुना था। उस दिन भी लोचन काले कपड़े पहने था। लोचन चित्रकला का प्रशिक्षण प्राप्त कर अपनी रचनात्मकता को निखारता जा रहा था। समय बीत रहा था। एक वर्ष बीत जाने पर भी न तो अमृता की ओर से कोई आशाजनक संकेत मिला था और न ही त्रिलोचन के प्रेम का आवेग शान्त हुआ था। उस के मन की घुटन उसकी रचनाओं में व्यक्त होने लगी थी। वह जितने भी काल्पनिक चित्र बनाता हर चित्र में अमृता का चेहरा अवश्य उपस्थित रहता। कल्पना को साकार करते समय वह जीवन के विभिन्न क्रियाकलापों में अमृता को शामिल करके ही चित्रांकन करता। डिग्री के द्वितीय वर्ष के दौरान कालेज के छात्रों में अमृता के विषय में एक नई ख़बर तेज़ी से फैली। आर्ट कालेज में आए नये बैच के एक आकर्षक व्यक्तित्व वाले तेज़ तर्रार युवक के साथ अमृता के प्रेमप्रसंग की कहानियाँ लोचन के कानों तक पहुँच गईं। उसका भावुक टूटा मन और भी क्षत-विक्षत हो उठा था। लेकिन अमृता की इच्छा उसके लिये वेद-वाक्य के समान थी। उसने इस रिश्ते को अपने प्रेम का अंत मान लिया और निराशा के अंधेरों में डूबता चला गया। जीवन के प्रति उसका उत्साह ही समाप्त हो गया था। अपनी पढ़ाई के प्रति वह उदासीन रहने लगा। त्रिलोचन की पढ़ाई के गिरते स्तर को देख कालेज के अध्यापकों ने उसे चेतावनी दी। इस चेतावनी की संदेशवाहिका बनी थी कालेज में नई आई प्राध्यापिका मोहिनी। मोहिनी आकर्षक व्यक्तित्व व सुलझे विचारों वाली मृदुभाषिणी युवती थी। मोहिनी के अल्पायु होने के कारण उसे अपने छात्रों के साथ खुल कर बात करने में आसानी होती थी। मोहिनी भी अन्य अध्यापकों के समान त्रिलोचन को मेहनती और प्रतिभाशाली मानती थी। त्रिलोचन की निराशा को लक्षित कर मोहिनी ने उसके साथियों से उसकी दु:खान्त प्रेमकथा की जानकारी प्राप्त की। त्रिलोचन के प्रति उपजी सहानुभूति के आधार पर उसने उससे संवाद स्थापित करने का प्रयास किया। मोहिनी के मोहक व्यक्तित्व और आत्मीयतापूर्ण व्यवहार से लोचन के टूटे मन को एक नया संबल मिल गया। निराशा के कुएँ से उभर कर उसने मोहिनी को नवजागृत आशा का केन्द्र मान लिया। उसके मन में उमड़ते ज्वार को मानो एक नई दिशा मिल गई। उसका भावुक मन फिर से कल्पना की उड़ान पर चल निकला। एकाएक उसकी कल्पना में अमृता की छवि में मोहिनी की छवि घुल-मिल गई। फिर से वही विचारधारा, वही आकांक्षाएं, वही सपने लोचन के जीवन में आशा का संचार करने लगे। (continued)[/left][/b]
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