Hindi story छवियां part-2

by R.Pankaj on September 12, 2009, 10:33:06 AM
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R.Pankaj
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लोचन के प्रेम की भावनाओं को उसकी आँख़ों, उसके व्यवहार में पढ़ने में मोहिनी को अधिक देर नहीं लगी। मोहिनी ने उसकी भावनाओं का कभी प्रतिरोध नहीं किया। उन दोनों के मध्य अध्यापक और छात्र के पवित्र संबंध की सीमारेखा भी थी तथा लोचन में भी अब पहले सा उतावलापन नहीं था। भले ही उसने अपनी कल्पना में जीवन संगिनी का स्थान मोहिनी के लिए आरक्षित कर दिया था, परन्तु कुछ भी स्पष्ट रूप से आमने-सामने कहने का साहस वह नहीं जुटा पाया था।
एक दिन मोहिनी ने लोचन के साथ कैंटीन में बैठे हुए बात शुरू की,”””लोचन।  मुक्षे बहुत खुशी है कि तुम अमृता के प्रसंग को पीछे छोड़, आगे बढे और अपनी निराशा से मुक्त हो गए। प्रेम एक अलौकित अनुभूति है। यह अनुभूति आत्मा को अपने प्रकाश से उद्दीप्त करती है।
मैडम।  आप के स्नेह ने मुक्षे प्रेरित किया। यह तो आपकी सफलता है।, लोचन ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा।
लोचन।  पहला प्यार जीवन की अनमोल निधि होता है, भले ही अमृता को तुमसे प्रेम नहीं हुआ, तुम्हारा उसके प्रति प्रेम कोई पाप नहीं है। इस प्रसंग में तुम्हे निराशा इसलिए हुई क्योंकि तुमने प्रेम की मंजिल विवाह को मान लिया। प्रेम और विवाह दो अलग-अलग चीजें हैं। विवाह एक संयोग है जबकि प्रेम एक नियति है। इस अनमोल अनुभूति को कभी भुलाया नहीं जा सकता।
त्रिलोचन अपने मन के भावों से उलक्षता उहापोह की स्थिति में चाय की प्याली की ओर देख रहा था। वह कुछ देर चुप रहने के बाद बोला, ÷÷यह मेरी निराशा थी या कोरी भावुकता जब मैंने फैसला किया था कि मैं सदा काले रंग के कपडे पहनूँगा। जब आपके प्रेम ने मेरी निराशा को दूर कर दिया है तो सोचता हूँ क्यों न इस निराशा के प्रतीक काले रंग को त्याग कर अन्य रंगों को अपना लूँ।
मोहिनी बोली, मैं काले रंग को निराशा का प्रतीक नहीं मानती। मुझे तो काला रंग अत्यन्त प्रिय है। तुम एक चित्रकार हो, छायाकार हो। तुम भली-भान्ति समझ सकते हो जीवन के सभी पक्षों के चित्रण में काले रंग का बहुत महत्व है। यदि तुम्हारे फोटोग्रास में से काला रंग निकाल दिया जाए तो पॉज़िटिव प्रिंट में केवल सफेद रंग रहने पर चित्र ही लुप्त हो जाएगा।
मोहिनी के विचारों को सुन लोचन मन्त्र-मुग्ध सा उसके मुख को देखता रह गया। उसके सुलझे चिन्तन के दर्शन कर श्रद्धा और प्रेम का अद्भुत संयोग उसे अवाक्‌ कर रहा था। उसके मन की उहापोह उसकी आँखों से झलक रही थी।
मोहिनी मानो लोचन की मनःस्थिति का एक-एक अक्षर पढ चुकी थी। वह चेहरे पर मधुर मुस्कान लाकर फिर से कह उठी, लोचन।  पिछले कई दिनों से मैं देख रही हूँ कि तुम्हारे विचारों में आते परिवर्तन के साथ कुछ नया भी घट रहा है तुम्हारे अन्तर में। इससे पहले कि तुम फिर से भटको, मैं तुम्हें अपने मन की बात कहना चाहती हूँ। मैं स्पष्ट रूप से देख रही हूँ कि एक दुःखद स्थिति से उबर कर तुम भावुकतावश प्रेम का नया आश्रय खोज रहे हो। इसमें कुछ भी अस्वाभाविक या अनैतिक नहीं है। तुम्हारे समीप आने पर तुम्हारे सरल मन के दर्शन कर मैं भी तुम्हारे प्रति आत्मीयता और प्रेम का अनुभव करती हूँ। परन्तु हम दोनों के बीच शिक्षक और छात्र का पवित्र रिशता है और उसकी गरिमा से हम दोनों बँधे हैं। भले ही हमारी उम्र में ज्यादा अन्तर नहीं है परन्तु ऐसी भावनाओं का परिणाम सुःखद नहीं होगा। उचित यही है कि हम दोनों अपनी भावनाओं को इस गरिमा की सीमा में बाँध कर सच्चे मित्र रहें।
कुछ क्षण रूक कर मोहिनी ने लोचन की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा की। उसे चुप देखकर मोहिनी ने कहा, एक बात यह भी बतानी थी तुम्हें। दो वर्ष पहले मेरा रिश्ता तय हो चुका है। विनय एक डॉक्टर हैं और फर्दर स्टडीज़ के लिए यू.के. गए हैं। अगले माह उनका कोर्स पूरा हो जाएगा और उनके लौटते ही हम शादी कर लेंगे।
अरे।  यह बात है! आई एम सॉरी मैडम! आपके स्नेह भरे व्यवहार को देखकर मैं कुछ और ही सोचने लगा था। जैसा आपने कहा हम हमेशा सच्चे दोस्त रहेंगे। आपके खुशहाल भावी जीवन के लिए मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं। आपकी प्रेरणा और स्वस्थ विचारधारा को मैं सदा याद रखूँगा। आज के बाद काले रंग को आपकी पसंद के रूप में सदा अपने साथ रखूँगा। मुक्षे उस दिन का बेसब्री से इन्तजार रहेगा जब आपकी प्रतीक्षा समाप्त होगी और आप विनय जी के साथ नई जिन्दगी शुरू करेंगी।
लोचन पर उस घटना का ऐसा असर हुआ कि अमृता की छवि से मोह एक जुनून का रूप धारण कर गया और एक जिद के रूप में उसने अमृता के नाम को हटा कर उसकी छवियों को मोहिनी का नाम दे दिया। आर्ट कॉलेज से डिग्री के साथ निकलते ही अमृता का नाम भी उसकी यादों में दफन हो गया था। मोहिनी के सानिध्य में उसके मन में यह वाक्य भी घर कर गया था कि प्रेम उसकी नियति है और विवाह एक संयोग है जिसकी उसे प्रतीक्षा नहीं।
इसी को अपना आदर्श मानकर लोचन ने जीवन के तीस वर्ष अकेले अपनी रची छवियों और स्वप्नलोक में बिता दिए। सरकारी नौकरी में एक व्यावसायिक कलाकार के रूप में अपनी आजीविका के अनुसरण में वह पूरे पंजाब में अलग-अलग स्थानों पर घूमता रहा। अकेले रह कर उसने अपने निजि जीवन के खाली समय को विभिन्न समाज कल्याण के कामों में स्वयं को व्यस्त कर रखा था। अपनी कला तथा अन्य रचनात्मक क्षमताओं का प्रयोग वह अपने सामाजिक कार्यो में बखूबी करता रहा। इसके लिए उसे अपार प्रसिद्धि भी मिली और सम्मान भी। उम्र के इस पड़ाव पर उस पर कोई पारिवारिक दायित्व भी शेष नहीं था और सांसारिक सुख-साधनों के प्रति किसी प्रकार की आसक्ति भी उसे कभी नहीं रही थी। उसकी आय का अधिकतर हिस्सा खर्च नहीं हो पाता था और बैंक में उसकी जमा सम्पत्ति बढती जा रही थी। बैंक में उसने अपने वारिस के रूप में अमृता का नाम दर्ज करवा रखा था, जिसका पिछले तीस वर्षो से उसे अता-पता तक न था। उसके यार-दोस्त अक्सर हँसी-मजाक में पूछ लेते थे कि इतने जमा धन का वारिस कौन है। वह भी हँसी-हँसी में उस समय की किसी लोकप्रिय सिने तारिका का नाम बता देता था। इन नामों में परिवर्तन होता रहता था। जिस तारिका की शादी हो जाती उसका नाम लोचन के वारिसों में से हट जाता था। वास्तविकता का ज्ञान किसी को भी न था।
पठानकोट में अपने पुश्तैनी घर का पुनर्निर्माण करते समय लोचन ने मोहिनी की छवियों को अपने घर के हर कोने में लगवा दिया था। वह घर के किसी भी हिस्से में हो, वे छवियाँ उसकी आँखों के सामने रहती थीं। मोहिनी की छवियों के अतिरिक्त उसने अपने अनेक मित्रों के चित्र भी बनाए थे। अपने घर की छतों पर उन चित्रों को लगवाया था। जब कोई व्यक्ति बैड पर लेटता तो छत से वे छवियाँ झांकती दिखाई देतीं। मानो छवियाँ ही उसका परिवार थीं। उसके एकाकी जीवन की साथी थी। एक-एक चित्र के साथ जीवन के अनगिनत सुनहरे पल जुड़े थे। उसके आज के सभी मित्र उसके घर में मोहिनी की छवियों को भली-भान्ति पहचानते थे परन्तु उनके पीछे के सत्य का ज्ञान किसी को न था।
मोहन कवि के इतने कम अन्तराल पर आने के पीछे अवश्य कोई उद्देश्य रहा होगा। इस बात का अनुभव उसे लगातार हो रहा है। रात को खाने-पीने से निबटने के बाद जब वे खुली हवा में टहलने निकले तो लोचन ने मोहन के आने के उद्देश्य की थाह लेनी चाही। मोहन ने बताया, तुम्हें याद है पिछली बार जब मेरे साथ तुम्हारी भाभी यहाँ रूकी थी।
हाँ! जब तुम दोनों अपनी बेटी की ससुराल में अमृतसर जा रहे थे।, लोचन ने याद करते हुए उत्तर दिया।
अमृतसर में बेटी की ससुराल में हमने एक महिला को देखा जिसके नयन-नक्श तुम्हारी पेटिंग में शामिल मोहिनी के चेहरे से हू ब हू मिलते थे।, मोहन ने कौतुहल भरे स्वर में कहा।
अच्छा! कौन थी वह मोहतरिमा?, लोचन ने पूछा।
कैनेडा से आई कोई एन.आर.आई. थी। मिसेज अमृता सन्धू था उसका नाम। उसका पति वहाँ बिजनेस करता था। पिछले वर्ष एड्स के कारण चल बसा। वैसे उन दोनों का डाइवोर्स दस वर्ष पहले हो गया था। कैनेडा पहुँचने के दो साल बाद ही।, मोहन ने याद करते हुए बताया।
औरतों की जन्म कुण्डली कब से निकालने लगा तू? कवि सम्मलेनों में तो घिग्गी बँध जाती है तेरी, औरतों को देख कर, लोचन ने मोहन की पीछ पर धौल जमाते हुए छेडा।
मैंने नहीं, तुम्हारी भाभी ने पता लगाया यह सब अपनी समधन से। उसका पति हमारी समधन के परिवार से संबंध रखता था।, मोहन ने सफाई दी।
      रात को बिस्तर पर लेटे लोचन के मस्तिष्क में मोहन की कही बातें हथोडे की तरह टकराती रहीं। उसे लग रहा था तीस वर्ष की लम्बी अवधि एकाएक बेमानी हो गई है। तीस वर्ष पहले आर्ट कॉलेज चण्डीगढ  में टूटे तार का दूसरा छोर वर्तमान में फिर से उसके हाथ में रख दिया है नियति ने। नियति को कोई संकेत है अथवा एक नए इम्तिहान की शुरूआत है।
      सुबह मोहन को अपने घर लौटना है। इस अद्भुत संयोग की बात लोचन को बताकर जैसे उसके मन से कोई बोझ उतर गया है। नाश्ता करने के बाद जब मोहन जाने को तैयार था तो लोचन ने उसे बताया कि वह मिसेज सन्धू नाम की उस महिला के बारे में और अधिक जानना चाहता है। उसने मोहन से वचन ले लिया कि वह मिसेज सन्धू का पता व फोन नम्बर का पता लगाकर उसे जरूर बताएगा। मोहन को भी लगा कि इस संयोग के गर्भ अवश्य कोई रहस्य छिपा है, जिसे जानने की तीव्र उत्सुकता उसके मन में भी है।
      कुछ ही दिनों बाद मोहन ने लोचन को फोन किया और बताया कि अमृता सन्धू आजकल चण्डीगढ़ में है, अपने बेटे के इलाज के सिलसिले में। चण्डीगढ में उसका मायका है जहाँ वह अपने बडे भाई के यहाँ रहती है। मोहन की पत्नी ने अमृता सन्धू का पता और फोन नम्बर भी प्राप्त कर लिया है।
त्रिलोचन ने उस फोन नम्बर पर बात की तो पता चला कि वह चण्डीगढ के आर्ट कॉलेज की ग्रेजुएट रही है। वह कैनेडा में एक आर्ट म्यूजियम की क्यूरेटर थी। लोचन ने चण्डीगढ  जाकर अमृता से मिलने का मन बना लिया।
      लोचन ने घण्टी बजाई तो दरवाजा नौकरानी ने खोला । नौकरानी लोचन को ड्राइंगरूम में बैठाकर भीतर चली गई। लोचन ड्राइंगरूम में सोफे पर बैठा कमरे में नजर घुमा रहा था, तभी आकर्षक व्यक्तित्व वाले सज्जन ने ड्राइंगरूम में प्रवेश किया। आगन्तुक ने लोचन से हाथ मिलाकर उसका स्वागत किया और परिचय का आदान प्रदान हुआ। मिस्टर वालिया ने प्रसन्नता व्यक्त की जब लोचन ने बताया कि वह अमृता का सहपाठी रह चुका है। मिस्टर वालिया चण्डीगढ  सरकार में इंजीनियर हैं। उन्होंने बताया कि अमृता पी.जी.आई. गई है उसके बेटे की बीमारी के संबंध में कुछ ब्लड टैस्ट करवाने थे। लोचन ने अपना फोन नम्बर मिस्टर वालिया को दे दिया ताकि अमृता के लौटने पर वह मिलने आ सके। लोचन होटल में लौट आया।
      दोपहर में मिस्टर वालिया ने फोन किया कि अमृता उससे मिलना चाहती है। उन्होंने शाम की चाय पर लोचन को अपने घर आमंत्रित किया। जब अमृता ने लोचन को देखा तो बीता वक्त एक पर्दे की तरह उनके बीच से हट गया। तीस वर्ष पहले की छरहरी  युवती अब अधेड़ महिला बन चुकी थी। उसके हाव भाव में स्वाभाविक गम्भीरता आने पर भी उसकी खिली मुस्कान मोटे चशमें से झांकती आँखों में से अब भी कौंधती है। जलपान के बीच वे दोनों बीते समय के पृष्ठ खंगालते रहे। लोचन के पास कहने को कुछ ज्यादा न था लेकिन अमृता का जीवन घटनाओं व संघर्षों की लम्बी श्रृंखला थी।
अमृता ने अपने कॉलेज के समय में ही गुरप्रीत से प्रेम विवाह कर लिया था। उस समय वह डिग्री के अंतिम वर्ष में थी। गुरप्रीत उससे एक वर्ष जूनियर था। उन्होंने प्रम विवाह परिवार की रजामन्दी के बिना किया था। अतः गुरप्रीत अपनी पढाई अधूरी छोड कर अमृता के साथ दिल्ली चला गया। बेरोजगार प्रेमियों के प्रेम का उन्माद शीघ्र ही उडन छू हो गया। गुरप्रीत की अधूरी शिक्षा के बल पर उसे कोई नौकरी मिलना कठिन था। अमृता ने बी.एफ.ए. की डिग्री प्राप्त कर ली थी जिसके आधार पर उसे दिल्ली के एक स्कूल में आर्ट टीचर की नौकरी मिल गई थी। बेकार रह कर पत्नी की आय पर निर्भर रहना गुरप्रीत के अहम्‌ को स्वीकार न था। इस आक्रोश को वह शराब की बूँदों से ठण्डा करने लगा था।
      इस समस्या के समाधान के रूप में अमृता ने गुरप्रीत को आर्ट मैटीरियल का व्यवसाय करने की सलाह दी। आर्ट के विषय में जितना ज्ञान उसने अर्जित किया था वह इस काम के लिये पर्याप्त था। धीरे-धीरे नये व्यवसाय ने गुरप्रीत को व्यस्त कर दिया लेकिन शराब की लत ने उसका पीछा नहीं छोडा । शराब के नशे में बडी-२ आकांक्षाओं के हवाई किले खडे करना उसकी आदत हो गई। इसमें उसके शराबी दोस्तों का योगदान भी कम न था। असंतोष की आग में जलता वह अपना आक्रोद्गा निकालने के लिए पत्नी पर अत्याचार करने लगता।
      कुछ शेख चिल्ली दोस्तों ने गुरप्रीत के दिल में विदेश जाने की बात बैठा दी। वह अपने व्यापार को बढाने की बजाय विदेश में जा कर अपार धन कमाने के मंसूबे बाँधता रहता। इन खुराफातों में उसने अपने बिजनेस को तबाह कर लिया और मेरे गहने भी इस आग में झोंक दिए। अमृता की दास्तान जारी थी।
      विदेश में प्रवेश पाने में उसकी अधूरी शिक्षा भी आड़े आई। इसका समाधान उसने यह निकाला कि मुझे विदेश में नौकरी के प्रयास करने चाहिए। मेरे टीचिंग के अनुभव और क्वालीफिकेशन के आधार पर कैनेडा में मुझे टीचिंग की नौकरी मिल गई। मेरी नौकरी को सीढी बनाकर गुरप्रीत परिवार को लेकर कैनेडा चला गया। वहाँ भी कोई जादुई चिराग नहीं था,जो उसके हवाई किलों को साकार कर देता।
कैनेडा में काम केवल शिक्षा और हुनर के बल पर ही मिल सकता था। इन दोनों के अभाव में गुरप्रीत को रात में चौकीदारी का काम मिला। रात की पाली में मजदूरी की दर दोगुनी थी। दिन में वह घर पर शराब के नद्गो में धुत पडा रहता। मेरी गोद में मेरा बेटा था जिसे संभालने की भी उसे चिंता न थी। धीरे-धीरे उसने पर निकालने शुरू कर दिए। रात में नौकरी के बहाने वह गोरी औरतों के पीछे घूमने लगा था। नौकरी से अनुपस्थित होने पर सिक्युरिटी एजेंसी से उसे चेतावनी दी जाती। कुछ दिन वह सुधरता लेकिन फिर से वही रंग ढंग अपना लेता। अन्ततः उसकी नौकरी छूट गई। नशाखोरी व दूसरे व्यसनों ने उसके अहम्‌ को भी निगल लिया था।
      इस जद्दोजहद के बाद उसने अमृता को एक नया तोहफा पेद्गा कर दिया। उसने एक गोरी औरत के साथ रहने का फैसला कर लिया और घर छोड  दिया। अमृता बेटे की जिम्मेदारी संभालती हुई अपने पैरों पर अटल खडी संघर्ष करती रही। उसने भी नौकरी बदली और शहर भी बदल लिया। बेटे के मोह में उसने उसके पिता से संपर्क भी बनाए रखा। भले ही अपनी जिम्मेदारियों की गुरप्रीत को रत्ती भर भी चिन्ता न थी। गुरप्रीत ने धर्म परिवर्तन करके उस कैनेडियन नागरिक महिला से विवाह कर लिया और गैरी जानसन बन गया। बीच-बीच में वह अपने बेटे से मिलने आ जाता था। अमृता अब अतीत बन चुकी थी उसके लिए। वह नई पत्नी के बिजनेस में पार्टनर बन गया और अपनी अमीरी के सपने पूरे करने में जुट गया।
      अमृता भी उसकी नशाखोरी व दूसरी जरूरतें पूरी करने से मुक्त हो गई थी। उसकी आर्थिक स्थिति भी काफी सुदृढ़ हो गई। उसका बेटा भी जवान हो चुका था और अपनी तकनीकी शिक्षा पूरी करके अपने कैरियर में पैर जमाने को तैयार हो चुका था।
      एक वर्ष पहले गैरी जानसन उर्फ गुरप्रीत संधू का देहान्त हो गया। उसकी मौत का कारण एच.आई.वी. संक्रमण था। गैरी की दूसरी शादी केवल उसकी अमीरी की योजना का हिस्सा थी। ऐशोआराम का रसिया गुरप्रीत कभी दूसरी औरतों के मोह से नहीं छूट पाया। उसके इस शौक ने उसे एड्ज की सौगात दी थी। गुरप्रीत के देहान्त के बाद उस विदेशी धरती पर रहने का कोई औचित्य अमृता को दिखाई नहीं दिया। उसने भारत लौटने का फैसला कर लिया। अमृता की सलाह पर उसके बेटे ने भारत में नौकरी खोज ली और अमृता ने अपनी नौकरी छोड  कर सारी धन संपत्ति भारत में ट्रांसफर कर दी। वह बेटे के साथ भारत लौट आई।
मल्टीनेशनल कम्पनी की बैंगलोर शाखा में अमृता का बेटा नौकरी कर रहा है। भारत लौटने पर अमृता अपने सगे संबंधियों से मिलने बेटे के साथ अमृतसर और चण्डीगढ  आई। पिछले दिनों अचानक उसके बेटे कंचन की तबीयत खराब हो गई। उसी के इलाज के सिलसिले में वह पी.जी.आई. में गई थी।
कंचन की बिमारी के विषय में क्या बताया डॉक्टर ने? लोचन ने गम्भीर स्वर में पूछा।
डाक्टर को लगता है कि उसकी किडनी में कोई इन्फैक्द्गान है। कुछ ब्लड टैस्ट और आर.एफ.टी. की सलाह दी है। आज उन्हीं टैस्टस के लिए सैम्पल जमा करवाए हैं। रिपोर्ट मिलने में एक सप्ताह लगेगा। लगता है कंचन को अपनी कम्पनी से और छुट्टी लेनी होगी। इन्वेस्टीगेशन अधूरा छोड  कर बैंगलोर लौटने को मन नहीं मानता। अमृता ने अपनी आशंका व्यक्त की।
लोचन को अगले दिन वापिस लौटना था। उसने अमृता से बैंगलोर का फोन नम्बर ले लिया और अपना नम्बर भी उसे दे दिया। चलते समय लोचन ने आग्रह किया।
बेटे के टैस्टस की रिपोर्ट आने पर मुक्षे अवश्य बताना। मेरे लायक कोई भी काम हो तो फोन अवशय करना!
अमृता ने भीगे स्वर में कहा,”इतने वर्षों बाद तुमने मुझे खोज लिया और इतनी दूर से मुझसे आकर मिले। लोचन! तुम आज भी कितने सरल हृदय हो। लोचन ने मुस्कुरा कर अमृता के हाथ को अपने हाथ में थाम कर थपथपाया और वहाँ से चला आया।
लौट आया लोचन अपनी रची चिरसंगिनी मोहिनी की छवियों के बीच। उसने अपनी प्रिय डायरी उठाई और एक नये पृष्ठ पर एक शब्द लिखा-‘अमृता। नज़र उठा कर सामने की दीवार की ओर देखा और उसकी आँखें हँसी से चमक उठीं।
एक हाथ में चिमटा,एक हाथ में कडछी, चूल्हे की आँच में तमतमाया चेहरा.....।


-समाप्त-
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Pooja
Guest
«Reply #1 on: September 14, 2009, 11:36:52 PM »
bahoot he bhavuk kahani apne share ki hai!!! Good one!!
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R.Pankaj
Guest
«Reply #2 on: September 19, 2009, 02:18:49 AM »
This is my latest story. It was selected among the best 30 stories in a competition organized by Haryana Sahitya Akademy during 2008-09
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