Hello dosto swagat karta hoo aap sabka fhir ek baar apne ek naye daastan mein.....meri ye daastan bhi 2017 saal mein likhi sabse aakhri horror story rahi haalaki ye kahani maine ek forum website ke liye likhi thi jo haal hi 2018 ke aakhri mahino mein band ho gayi thi ooske baad yahi nahi aisi meri kayi oos forum ki aur baakiyo ki bhi kahaniya chori kar karke oonhein anay forums pe post kar di gayi aise mein mujhe jab ye kahani mili dusre forum mein to main naraz bhi hua aur oos chor ka shukraguzar bhi jisne meri kahani ko anay forum mein post kiya tha haalanki meri bahut si kahaniya website ke oos band hone se removed ho chuki hai to aasha karta hoo aapko ye darawni kahani pasand aaye mere saal 2017 ki mehnat se likhi...
This story is a fictional story...no relations with any real life incident...written by pure fantasy mind....no characters,places,events related to the reality if that happens that maybe co-incident...for weakened heart pls don't read as this story is pure scary horror one.....padhkar ise enjoy kijiye share kijiye naa ki copy karne jaisi koi harqat kijiye वर्मा डिटेक्टिव एजेंसी में करीब सुबह ७ बजे से ही चीफ के केबिन में बैठा....उसका सबसे काबिल और सीनियर डिटेक्टिव अरुण बक्शी था l उसे कल रात को ही चीफ का कॉल आया था जिस बिनाह पे उसे अगले दिन ही हाज़िरी देनी थी l अरुण बक्शी वक़्त का पाबंद था और साथ ही साथ पुलिस के कई पेचीदा केसेस को भी उसने अबतक सॉल्व कर दिखाया था जिस वजह से वर्मा डिटेक्टिव एजेंसी में उसका रुतबा चीफ के बाद सेकंड हेड के तौर पे था....उम्र लगभग ३० साल थी और चेहरे पे एक अलग ही रौब उभरा हुआ हमेशा रहता था....कॉफ़ी का कप जैसे ही खाली हुआ था I उसी पल चीफ ने अपने कदम केबिन द्वार से अंदर रखे....अरुण ने उठते ही उन्हें गुडमॉर्निंग कहा तो चीफ ने उसे हाथ दिखाके बैठ जाने का इशारा किया और मुस्कुराते हुए अपने चेयर पे विराजमान होता तत्काल सिगरेट सुलगाया उसने एक बार पलटकर अरुण की ओर देखा और सिगरेट उसे ऑफर करने के लहज़े से सवालात किया...जिसके जवाब में अरुण ने शुक्रिया जताते हुए ना में हाथ हिलाया।
"कहिये सर ऐसी क्या वजह आयी की आज आपको मेरी याद आयी इस फर्म में तो मेरी जगह लेने वाले और भी कई काबिल डिटेक्टिव्स हो चुके"........मुस्कुराते हुए अरुण ने चीफ से कहा।
"हाहाहा देखो अरुण मैं जनता हूँ तुम्हारे काम करने का तरीका अलग है जो मुझे हमेशा से इम्प्रेस करते आया है...और अभी तुम्हारे आगे फर्म के बाकी डिटेक्टिव्स इतने एडवांस नहीं हुए उन्हें भी बहुत केसेस को सॉल्व करना है तब जाके उनमें से कोई तुम्हारी जगह ले पायेगा".....चीफ ने भी मुस्कुराते हुए कहा जिसे सुन अपनी तारीफ में अरुण फूलो न समाया उसे फक्र था अपने पेशे और अपने तजुर्बे पर और उससे भी ज़्यादा वर्मा डिटेक्टिव एजेंसी का हिस्सा होने पर।
"कल आप मुझे कोई केस के बाबत कुछ बता रहे थे आखिर ऐसी क्या वजह है? जो मेरा इस केस को हैंडल करना इतना जरुरी हो गया।"
"देखो अरुण क्या तुम मेरे इस सवाल का जवाब देना बेहतर समझोगे की क्या तुम्हें भूत प्रेत पिसाच शैतान चुड़ैल इनसब पे यकीन है तुम्हें लगेगा तुम्हारा ये चीफ तुमसे क्या अजीब सा सवालात कर रहा है पर मैं ये जवाब तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूँ।"
"सर,पहली बात पुलिस और डिटेक्टिव की इन्वेस्टीगेशन में कानून,इन्साफ और इंसानी साजिश को छोड़कर किसी भी चीज़ो पे विश्वास नहीं किया जाता भूत प्रेत हाहाहा मैं इनपे कत्तई यकीन नहीं करता और न ही मानता हूँ ये होती है तो क्या मेरे नए केस में कुछ ऐसा ही मसला है".........अरुण ने दिलचस्पी से चीफ की तरफ देखते हुए कहा
"नहीं अरुण ये मैं नहीं कहता ये केस कहता है....दरअसल ये केस काफी कॉम्प्लिकेटेड है और अभी हाल ही में हुए मर्डर ने इसका अट्रैक्शन हमारे नज़रो में किया है...अगर ये केस सॉल्व हो गया तोह मान जाना की वर्मा डिटेक्टिव एजेंसी की लोकप्रियता और भी बढ़ जायेगी और ये एजेंसी ओवर टॉप पर होगी"
"मैं तो हमेशा से इस एजेंसी के लिए यही उम्मीद करता रहता हूँ सर"
"उम्मीद नहीं अरुण आई वांट रिजल्ट्स खैर केस की तरफ ध्यान देते हुए मैं तुम्हें इस केस के बारें में कुछ चंद बातें बताना चाहता हूँ....डेड लेक का नाम तो सुना ही होगा तुमने".........अरुण ने गौर करते हुए जैसे अध्यन किया
"जो हमारे शहर से १२० किलोमीटर दूर सुनसान जंगल और हाईवे के बीच पड़ता है....उस जगह का नाम डेड लेक आज से नहीं तबसे है जबसे अंग्रेज़ो का मुकम्मल इस शहर में राज था....डेड लेक में एक पुराना झील पड़ता है और ठीक उसके सामने एक पुराना सा वीरान कॉटेज जो कभी उस घर के मालिक और मालकिन का रेजिडेंस होया करता था शहर से दूर उस वीराने में उस कपल ने क्यों घर बनाया ये आज भी एक रहस्य ही बना हुआ है आज से करीब ३० साल पहले दोनों की एक रहस्मयी तौर से मृत्यु हो गयी थी घर में सिवाए खून के उनकी लाश तक न पायी गयी। लेकिन ये इस केस से जुड़ा दूसरा वाक़्या है उसके बाद वहा इन तीस सालो में कोई नहीं गया लेकिन हाल ही में हुए एक मर्डर ने इस केस को दोबारा रीओपन कर दिया है एक ५० वर्षीय आदमी जिसकी गाड़ी बीच हाईवे पे ख़राब हुयी पनाह के तौर पे उसने उस वीरान कॉटेज में हिम्मत से दस्तक दिया और अगली सुबह किसी हाईवे से गुज़रते मुसाफिर को उसकी गाडी वीरानो में खरी दिखाई दी जब उसने मुयाना किया तो पाया की उस कॉटेज के ठीक सामने बहुत ही बुरी हालत में एक लाश पड़ी हुयी थी उसके ऑर्गन्स बाहर थे जैसे जिस्म को खूब बेदर्दी से किसी धारधार हथ्यारो से फाड़ा हो कॉटेज जिसे मोहरबंद पुलिस ने आज से करीब ३० साल पहले लगाया हुआ था वह दरवाजा खुला था और अंदर जाने की हिम्मत उस मुसाफिर को नहीं हुयी क्यूंकि वो वैसे ही लाश को देखके डर गया था और उसी पल उलटे पाव गाडी में लौटते हुए पुलिस को तुरंत फ़ोन पे सूचित किया ।
"जब आपने कहा दूसरा वाक़्या तो पहले वाक़्या से आपका क्या मतलब?"..........अरुण ने तत्काल सवाल किया