ग़ज़ल

by Krishna Sukumar on March 25, 2013, 01:55:17 AM
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Krishna Sukumar
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बिछड़ना  जिसका  लाज़िम है  उसे अपना समझ बैठा                
मैं अपने साये को इस  जिस्म का हिस्सा  समझ बैठा

ये  मेरी प्यास  का  जादू  मुझे  सह्रा  में ले आया                
सराबों की  चमकती  रेत  को   दर्या  समझ  बैठा                

हक़ीक़त  जानता हूँ  फिर भी  धोका खा ही जाता हूँ
तसल्ली दी  गयी  झूठी  जिसे  वादा  समझ  बैठा    

वो मेरे  साथ था  दिन-रात  अपने काम की ख़ातिर
ग़लतफ़हमी  में  उससे मैं  कोई  रिश्ता समझ बैठा    

ज़रा सी  साफ़गोई  जान  की  दुश्मन  बनी  मेरी
उसे नंगा कहा  तो  वो  मुझे  ख़तरा  समझ बैठा    

वो पत्थर बन के मेरी  सिम्त इस अंदाज़ से उछला
की  जैसे  टूट  जाऊंगा  मुझे   शीशा समझ बैठा    

मैं  ख़ुद से  रूबरू होने को भी  तैयार  था लेकिन
वो पत्थर था जिसे  धोके  से  आईना समझ बैठा  

कृष्ण सुकुमार


     लाज़िम - ज़रूरी/निश्चित
     सह्रा - जंगल/बियावान
     सराबों - मृगतृष्णाओं

चेतावनी: मेरे द्वारा योइंडिया पर जो भी ग़ज़ल या अन्य रचना पूर्व में पोस्ट की जा चुकी है या भविष्य में पोस्ट की जाएगी, किसी न किसी पत्र-पत्रिका में पूर्व-प्रकाशित होती है तथा उन सभी के कॉपीराइट्स (सर्वाधिकार) मेरे पास सुरक्षित हैं। अत: बिना मेरी पूर्व-स्वीकृति के मेरी किसी भी ग़ज़ल या अन्य रचना के किसी भी अंश का किसी भी रूप में पुनर्प्रकाशन या नक़ल की अनुमति नहीं है। कृपया कॉपीराइट्स (सर्वाधिकार) का उल्लंघन न करें। कृष्ण सुकुमार
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khamosh_aawaaz
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«Reply #1 on: March 25, 2013, 01:57:23 AM »
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बिछड़ना  जिसका  लाज़िम है  उसे अपना समझ बैठा              लाज़िम - ज़रूरी/निश्चित
मैं अपने साये को इस  जिस्म का हिस्सा  समझ बैठा

ये  मेरी प्यास  का  जादू  मुझे  सह्रा  में ले आया              सह्रा - जंगल/बियावान
सराबों की  चमकती  रेत  को   दर्या  समझ  बैठा              color=green]  सराबों - मृगतृष्णाओं


हक़ीक़त  जानता हूँ  फिर भी  धोका खा ही जाता हूँ
तसल्ली दी  गयी  झूठी  जिसे  वादा  समझ  बैठा   

वो मेरे  साथ था  दिन-रात  अपने काम की ख़ातिर
ग़लतफ़हमी  में  उससे मैं  कोई  रिश्ता समझ बैठा   

ज़रा सी  साफ़गोई  जान  की  दुश्मन  बनी  मेरी
उसे नंगा कहा  तो  वो  मुझे  ख़तरा  समझ बैठा   

वो पत्थर बन के मेरी  सिम्त इस अंदाज़ से उछला
की  जैसे  टूट  जाऊंगा  मुझे   शीशा समझ बैठा   

मैं  ख़ुद से  रूबरू होने को भी  तैयार  था लेकिन
वो पत्थर था जिसे  धोके  से  आईना समझ बैठा    [/b][/font][/size]

[/color]
कृष्ण सुकुमार


veriiiiiiiiii gud
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Advo.RavinderaRavi
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«Reply #2 on: March 25, 2013, 01:58:57 AM »
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So Nice
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sbechain
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«Reply #3 on: March 25, 2013, 02:19:59 AM »
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बिछड़ना  जिसका  लाज़िम है  उसे अपना समझ बैठा               
मैं अपने साये को इस  जिस्म का हिस्सा  समझ बैठा

ये  मेरी प्यास  का  जादू  मुझे  सह्रा  में ले आया                 
सराबों की  चमकती  रेत  को   दर्या  समझ  बैठा                

हक़ीक़त  जानता हूँ  फिर भी  धोका खा ही जाता हूँ
तसल्ली दी  गयी  झूठी  जिसे  वादा  समझ  बैठा    

वो मेरे  साथ था  दिन-रात  अपने काम की ख़ातिर
ग़लतफ़हमी  में  उससे मैं  कोई  रिश्ता समझ बैठा    

ज़रा सी  साफ़गोई  जान  की  दुश्मन  बनी  मेरी
उसे नंगा कहा  तो  वो  मुझे  ख़तरा  समझ बैठा    

वो पत्थर बन के मेरी  सिम्त इस अंदाज़ से उछला
की  जैसे  टूट  जाऊंगा  मुझे   शीशा समझ बैठा    

मैं  ख़ुद से  रूबरू होने को भी  तैयार  था लेकिन
वो पत्थर था जिसे  धोके  से  आईना समझ बैठा  

कृष्ण सुकुमार

[/b]
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wah wah bahut hi khoob......!
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Iftakhar Ahmad
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«Reply #4 on: March 25, 2013, 06:00:44 AM »
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Ammmmmmmmmmmmazing, excellent, bahut hi khoob Sukumar Jee, YOINDIA pe aate rahiye aur hameiN apni aisi hi khoobsoorat ghazloN se nawaazte rahiye. DheroN daad aur ek Rau qubool kijiye meri taraf se.
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«Reply #5 on: March 25, 2013, 11:30:09 AM »
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Bahut Achchha Likha Hai. Dhero daad.
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Bishwajeet Anand Bsu
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«Reply #6 on: March 25, 2013, 01:34:40 PM »
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dheron Daad.....bahut hi khoobsoorat Ghazal hai...wah wah wah
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Jaikumar Rana
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«Reply #7 on: March 25, 2013, 01:38:26 PM »
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Bahut bahut khoob! Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause
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sksaini4
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«Reply #8 on: March 25, 2013, 03:07:20 PM »
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bahut khoob apnee pahchaan banaa lo hajoor bahut bahut mubaarak
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suman59
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«Reply #9 on: March 25, 2013, 03:10:04 PM »
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बिछड़ना  जिसका  लाज़िम है  उसे अपना समझ बैठा               
मैं अपने साये को इस  जिस्म का हिस्सा  समझ बैठा

ये  मेरी प्यास  का  जादू  मुझे  सह्रा  में ले आया                 
सराबों की  चमकती  रेत  को   दर्या  समझ  बैठा               

हक़ीक़त  जानता हूँ  फिर भी  धोका खा ही जाता हूँ
तसल्ली दी  गयी  झूठी  जिसे  वादा  समझ  बैठा   

वो मेरे  साथ था  दिन-रात  अपने काम की ख़ातिर
ग़लतफ़हमी  में  उससे मैं  कोई  रिश्ता समझ बैठा   

ज़रा सी  साफ़गोई  जान  की  दुश्मन  बनी  मेरी
उसे नंगा कहा  तो  वो  मुझे  ख़तरा  समझ बैठा   

वो पत्थर बन के मेरी  सिम्त इस अंदाज़ से उछला
की  जैसे  टूट  जाऊंगा  मुझे   शीशा समझ बैठा   

मैं  ख़ुद से  रूबरू होने को भी  तैयार  था लेकिन
वो पत्थर था जिसे  धोके  से  आईना समझ बैठा   

कृष्ण सुकुमार


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wah wah bahut bahut khoob likha hai sukumar jee.  icon_salut icon_salut
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ghayal_shayar
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«Reply #10 on: March 25, 2013, 03:11:54 PM »
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bahut umda likha hai krishna ji, kahin kahin typos haiN, par aapke matle ne to bas dil hi jeet liya, umeed karta hun ki aage v aapko padhte rehne ka mauka milta rahegaa... meri taraf se ek rau bhi qubool farmaaiye...
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aqsh
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«Reply #11 on: March 25, 2013, 03:43:47 PM »
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 Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Thumbs UP Thumbs UP Thumbs UP Thumbs UP Thumbs UP Thumbs UP Thumbs UP
Bahut hi umda peshkash rahi. mujhe aapki yeh ghazal bahut bahut pasand aayi. dili mubarakbad ko qubool kare.
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ParwaaZ
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«Reply #12 on: March 25, 2013, 04:25:27 PM »
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Krishnaa Jee Aadaab!


Behad khoobsurat gazal kahi hai aapne jee behad umdaa khayaal aur behad
gazab ke ashaar rahe... Usual Smile

Sabhi ashaar laa jawaab rahe janab.. Humari dheroN dili daad O mubbarakbad kabul kijiye... Usual Smile


Likhate rahiye... Bazm meiN aate rahiye...
Shaad O aabaad rahiye...

Khuda Hafez.. Usual Smile

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Krishna Sukumar
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«Reply #13 on: March 25, 2013, 09:35:02 PM »
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veriiiiiiiiii gud

iss hausla afzai ke liye mera hardik abhaar!
KRISHNA SUKUMAR

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Krishna Sukumar
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«Reply #14 on: March 25, 2013, 09:36:51 PM »
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So Nice
Aapka bahut-bahut shukriya.
Krishna Sukumar
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