Anaarhi log jo hotey hain

by Anaarhi on July 06, 2011, 06:32:32 AM
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Anaarhi
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ये बंद होते दरवाज़े सब- इक यही इशारा करते हैं
बस्ती में वीराना-ए-हस्ती है - कहीं और बसारा करते हैं

दर्द मिला न टीस उठी न दिल को ही कोई घाव लगा,
इक बार में हासिल कुछ न हुआ - ये सफ़र दोबारा करतें हैं.

छोड़ दे अब इस महफ़िल को - इतना भी इसपे भरम न रख,
कदर दान ये यार नहीं - ना ही मान तुम्हारा करते हैं.

समझ के आब-ए-गुनाह जिसे - हम छोड़ आए मयखानें में,
पी पी के उसे सब काफिर यार- सेहत दो चारा करते हैं.

इस दैर-औ-हरम के चक्कर में - अब तक जन्म गंवा दिया,
मैकदे में जाके शेख जी -  चलो बाकी गुजारा करते हैं.

तकदीर के टूटे बरतन में - जो डालूं सो बह जाता है,
देख तारों की ओर हम - क्या रोज़ निहार करते हैं.

ए कायनात के रहनुमां - तेरी फिरका परस्ती ज़ाहिर है,
तू उनको ही सब देता है - जो पाप हज़ारा करते हैं.

दुनियां में ग़ौर से देखें तो - मन मौज जुगाड़ी करता है,
"आनाड़ी" लोग जो होते हैं - मन मार गुज़ारा करते हैं.

"अनाड़ी"
15 sept 2010
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Hotey hain mukhaatib bhi, to, leytey hain pheyr mukh! by abdbundeli in Shayri-E-Dard
QATL HOTEY HUE ...DEKHA TO SABHI NE LEKIN by Syed Mohd Mahzar in Miscellaneous Shayri
khujli
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«Reply #1 on: July 06, 2011, 06:42:13 AM »
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ये बंद होते दरवाज़े सब- इक यही इशारा करते हैं
बस्ती में वीराना-ए-हस्ती है - कहीं और बसारा करते हैं

दर्द मिला न टीस उठी न दिल को ही कोई घाव लगा,
इक बार में हासिल कुछ न हुआ - ये सफ़र दोबारा करतें हैं.

छोड़ दे अब इस महफ़िल को - इतना भी इसपे भरम न रख,
कदर दान ये यार नहीं - ना ही मान तुम्हारा करते हैं.

समझ के आब-ए-गुनाह जिसे - हम छोड़ आए मयखानें में,
पी पी के उसे सब काफिर यार- सेहत दो चारा करते हैं.

इस दैर-औ-हरम के चक्कर में - अब तक जन्म गंवा दिया,
मैकदे में जाके शेख जी -  चलो बाकी गुजारा करते हैं.

तकदीर के टूटे बरतन में - जो डालूं सो बह जाता है,
देख तारों की ओर हम - क्या रोज़ निहार करते हैं.

ए कायनात के रहनुमां - तेरी फिरका परस्ती ज़ाहिर है,
तू उनको ही सब देता है - जो पाप हज़ारा करते हैं.

दुनियां में ग़ौर से देखें तो - मन मौज जुगाड़ी करता है,
"आनाड़ी" लोग जो होते हैं - मन मार गुज़ारा करते हैं.

"अनाड़ी"
15 sept 2010

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