Ham ro ke thak chukey hain

by Anaarhi on December 12, 2011, 05:24:44 AM
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Anaarhi
Guest
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हम रो के थक चुके हैं वो उठ के जा चुके हैं,
इक दास्ताँ हकीकत को वो बना चुके हैं.

पकङे थे हाथ मैने जो हमसफ़र समझ कर,
हाथों में मेरे उनके दस्ताने आ चुके हैं.

मारे हैं अक्ल के जो वो दौङ में लगे हैं,
दीवाने मंजिलों को मुद्दत से पा चुके हैं.

हैं ग़र्द ख़ाक कितनी दामन में दाग़ कितने,
बदलेगें अब बदन को कपङे नहा चुके हैं.

अह् ले वफ़ा से पूछा रिश्ता वफ़ाओ दिल का,
नादाँनियोँ पे मेरी वो मुस्कुरा चुके हैं.

आया समझ किसी को रस्ता ना इस सफ़र का,
अह् ले जहाँ को सारे नक्शे दिखा चुके हैं.

क्या मुफ़्लिसी ए नीयत ईमान बिक रहा है,
्ज़र के गुलाम सारे बाज़ार आ चुके हैं.

वो और था ज़माना कीमत ज़मीर की थी,
जो माल था पुराना ताजिर* हटा चुके हैं.....(* व्यापारी)

तू उन से बच के रहिओ ए "पीर" बन अनाङी,
तेरे ईमान की वो कीमत लगा चुके हैं.

"अनाङी" २४/११/२०११
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SUB BHOOL CHUKEY by mudassirali in Ghazals
Woh jaa chukey hain, kaarwaan key saath chal, kaheen! by abdbundeli in Shayri for Dard -e- Judai
Saanse Thak Gayin Hain by Roja in Shayri-E-Dard
Hont thak gaye hain by awais_007 in Share:Miscellaneous Shayari
thak gayee hain aankhein by saahill in Shayri for Khumar -e- Ishq
khujli
Guest
«Reply #1 on: December 12, 2011, 05:27:05 AM »
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हम रो के थक चुके हैं वो उठ के जा चुके हैं,
इक दास्ताँ हकीकत को वो बना चुके हैं.

पकङे थे हाथ मैने जो हमसफ़र समझ कर,
हाथों में मेरे उनके दस्ताने आ चुके हैं.

मारे हैं अक्ल के जो वो दौङ में लगे हैं,
दीवाने मंजिलों को मुद्दत से पा चुके हैं.

हैं ग़र्द ख़ाक कितनी दामन में दाग़ कितने,
बदलेगें अब बदन को कपङे नहा चुके हैं.

अह् ले वफ़ा से पूछा रिश्ता वफ़ाओ दिल का,
नादाँनियोँ पे मेरी वो मुस्कुरा चुके हैं.

आया समझ किसी को रस्ता ना इस सफ़र का,
अह् ले जहाँ को सारे नक्शे दिखा चुके हैं.

क्या मुफ़्लिसी ए नीयत ईमान बिक रहा है,
्ज़र के गुलाम सारे बाज़ार आ चुके हैं.

वो और था ज़माना कीमत ज़मीर की थी,
जो माल था पुराना ताजिर* हटा चुके हैं.....(* व्यापारी)

तू उन से बच के रहिओ ए "पीर" बन अनाङी,
तेरे ईमान की वो कीमत लगा चुके हैं.

"अनाङी" २४/११/२०११


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sksaini4
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«Reply #2 on: December 12, 2011, 06:25:53 AM »
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sbechain
Guest
«Reply #3 on: December 12, 2011, 11:31:34 AM »
Reply with quote
हम रो के थक चुके हैं वो उठ के जा चुके हैं,
इक दास्ताँ हकीकत को वो बना चुके हैं.

पकङे थे हाथ मैने जो हमसफ़र समझ कर,
हाथों में मेरे उनके दस्ताने आ चुके हैं.

मारे हैं अक्ल के जो वो दौङ में लगे हैं,
दीवाने मंजिलों को मुद्दत से पा चुके हैं.

हैं ग़र्द ख़ाक कितनी दामन में दाग़ कितने,
बदलेगें अब बदन को कपङे नहा चुके हैं.

अह् ले वफ़ा से पूछा रिश्ता वफ़ाओ दिल का,
नादाँनियोँ पे मेरी वो मुस्कुरा चुके हैं.

आया समझ किसी को रस्ता ना इस सफ़र का,
अह् ले जहाँ को सारे नक्शे दिखा चुके हैं.

क्या मुफ़्लिसी ए नीयत ईमान बिक रहा है,
्ज़र के गुलाम सारे बाज़ार आ चुके हैं.

वो और था ज़माना कीमत ज़मीर की थी,
जो माल था पुराना ताजिर* हटा चुके हैं.....(* व्यापारी)

तू उन से बच के रहिओ ए "पीर" बन अनाङी,
तेरे ईमान की वो कीमत लगा चुके हैं.

"अनाङी" २४/११/२०११

good one.......!
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mkv
Guest
«Reply #4 on: December 15, 2011, 05:10:59 PM »
Reply with quote
हम रो के थक चुके हैं वो उठ के जा चुके हैं,
इक दास्ताँ हकीकत को वो बना चुके हैं.  Applause Applause Applause

पकङे थे हाथ मैने जो हमसफ़र समझ कर,
हाथों में मेरे उनके दस्ताने आ चुके हैं.

मारे हैं अक्ल के जो वो दौङ में लगे हैं,
दीवाने मंजिलों को मुद्दत से पा चुके हैं.

हैं ग़र्द ख़ाक कितनी दामन में दाग़ कितने,
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तेरे ईमान की वो कीमत लगा चुके हैं.  Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause

"अनाङी" २४/११/२०११

Bahut khoob
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