SURESH SANGWAN
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उल्फ़त में ग़म के ख़ज़ाने क्या- क्या निकले हम अपनी आँखों को दिखाने क्या- क्या निकले
समझा था ये दिल तो उसे ही मंज़िल अपनी मंज़िल से आगे भी ठिकाने क्या- क्या निकले
हाय इक ज़रा मेरे लब खुलने की देर थी फिर महफ़िल में जाने फसाने क्या-क्या निकले
तेरी ख़ुश्बू में खो गये जो उन लम्हों से क़िताब-ए-हसरत में लिखाने क्या- क्या निकले
भरते थे जो दम कभी अपनी इक- इक बात का उसी जुबां से आज बहाने क्या- क्या निकले
ना जाना इक उम्र तक दिल जिगर सब चाक़ हैं हम चादर तक़िए और सिलाने क्या -क्या निकले
फूलों का इक शहर और झूलों का गांव भी 'सरु' खुशियों के वो पल बसाने क्या -क्या निकले
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marhoom bahayaat
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«Reply #1 on: June 13, 2015, 03:29:27 PM » |
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उल्फ़त में ग़म के ख़ज़ाने क्या- क्या निकले हम अपनी आँखों को दिखाने क्या- क्या निकले
समझा था ये दिल तो उसे ही मंज़िल अपनी मंज़िल से आगे भी ठिकाने क्या- क्या निकले
हाय इक ज़रा मेरे लब खुलने की देर थी फिर महफ़िल में जाने फसाने क्या-क्या निकले
तेरी ख़ुश्बू में खो गये जो उन लम्हों से क़िताब-ए-हसरत में लिखाने क्या- क्या निकले
भरते थे जो दम कभी अपनी इक- इक बात का उसी जुबां से आज बहाने क्या- क्या निकले
ना जाना इक उम्र तक दिल जिगर सब चाक़ हैं हम चादर तक़िए और सिलाने क्या -क्या निकले
फूलों का इक शहर और झूलों का गांव भी 'सरु' खुशियों के वो पल बसाने क्या -क्या निकले
excellent with rau,ma'am
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jeet jainam
Khaas Shayar
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my rule no type no life and ,i m happy single
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«Reply #2 on: June 13, 2015, 04:57:49 PM » |
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YashPal
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«Reply #3 on: June 13, 2015, 05:41:35 PM » |
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bahut sunder laajabab
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Advo.RavinderaRavi
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«Reply #4 on: June 13, 2015, 06:48:09 PM » |
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Bahut Khoob
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Satish Shukla
Khususi Shayar
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«Reply #6 on: June 14, 2015, 04:58:25 AM » |
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उल्फ़त में ग़म के ख़ज़ाने क्या- क्या निकले हम अपनी आँखों को दिखाने क्या- क्या निकले
समझा था ये दिल तो उसे ही मंज़िल अपनी मंज़िल से आगे भी ठिकाने क्या- क्या निकले
हाय इक ज़रा मेरे लब खुलने की देर थी फिर महफ़िल में जाने फसाने क्या-क्या निकले
तेरी ख़ुश्बू में खो गये जो उन लम्हों से क़िताब-ए-हसरत में लिखाने क्या- क्या निकले
भरते थे जो दम कभी अपनी इक- इक बात का उसी जुबां से आज बहाने क्या- क्या निकले
ना जाना इक उम्र तक दिल जिगर सब चाक़ हैं हम चादर तक़िए और सिलाने क्या -क्या निकले
फूलों का इक शहर और झूलों का गांव भी 'सरु' खुशियों के वो पल बसाने क्या -क्या निकले
Nice thoughts .... keep it up .... all the best.....Raqeeb
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SURESH SANGWAN
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«Reply #7 on: June 14, 2015, 05:45:58 AM » |
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हौसला अफज़ाही के लिये तहे दिल से बहुत 2 शुक्रिया ...........surindarn ji
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SURESH SANGWAN
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«Reply #8 on: June 14, 2015, 05:47:00 AM » |
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हौसला अफज़ाही के लिये तहे दिल से बहुत 2 शुक्रिया .........jeet ji..
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SURESH SANGWAN
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«Reply #9 on: June 14, 2015, 05:50:11 AM » |
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हौसला अफज़ाही के लिये तहे दिल से बहुत 2 शुक्रिया .........satish shukla ji.. Nice thoughts .... keep it up .... all the best.....Raqeeb
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SURESH SANGWAN
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«Reply #10 on: June 14, 2015, 05:53:43 AM » |
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हौसला अफज़ाही के लिये तहे दिल से बहुत 2 शुक्रिया ..........Ravi ji.Bahut Khoob
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SURESH SANGWAN
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«Reply #11 on: June 14, 2015, 06:01:25 AM » |
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हौसला अफज़ाही के लिये तहे दिल से बहुत 2 शुक्रिया ...........bahut sunder laajabab
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~Hriday~
Poetic Patrol
Mashhur Shayar
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kalam k chalne ko zamaana paagalpan samajhta hai.
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«Reply #12 on: June 14, 2015, 07:08:54 AM » |
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SURESH SANGWAN
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«Reply #13 on: June 14, 2015, 07:30:07 AM » |
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sksaini4
Ustaad ae Shayari
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«Reply #14 on: June 14, 2015, 01:44:32 PM » |
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waah waah beautiful
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