SURESH SANGWAN
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ग़ज़ल पर ग़ज़ल मैं तुझको सोचकर लिखती रही मेरी ज़िंदगी तुझे मैं उम्र भर लिखती रही
क़िताब- ए- हसरत और मेरे अश्क़ों की सियाही क़लम से दिल के ख्वाबों का शहर लिखती रही
ये आँखें बरसी वस्ल में कभी हिज्र में रोई हर अंदाज़ में अपना तेरी नज़र लिखती रही
नादानी लिखती रही हैरानी लिखती रही पानी कभी पत्थर पे तेरा असर लिखती रही
बात उठे उठकर चले मगर पहुँचे कहीं नहीं तेरे मेरे बीच रहे इस क़दर लिखती रही
दुनियाँ की भीड़ में हर कोई चाँद तो नहीं रात के आँगन में तारों का सफ़र लिखती रही
तेरी मजबूरियाँ रही हों ये और बात है वक़्त-बेवक़्त'सरु'तुझे अपनी ख़बर लिखती रही
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dksaxenabsnl
YOS Friend of the Month
Yoindian Shayar
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खुश रहो खुश रहने दो l
Posts: 4127 Member Since: Feb 2013
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«Reply #2 on: August 13, 2014, 04:02:58 AM » |
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sahal
Umda Shayar
Rau: 109
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love is in the Air,but CuPiD is alone here.
Posts: 4410 Member Since: Sep 2012
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«Reply #4 on: August 13, 2014, 05:12:59 AM » |
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बात उठे उठकर चले मगर पहुँचे कहीं नहीं तेरे मेरे बीच रहे इस क़दर लिखती रही तेरी मजबूरियाँ रही हों ये और बात है वक़्त-बेवक़्त'सरु'तुझे अपनी ख़बर लिखती रही WAAH WAAH LAJAWAAB SARU JEE BOHUT HI KHOOB LIKHA HAI DAAD EK RAU KE HAQDAAR
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SURESH SANGWAN
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«Reply #6 on: August 13, 2014, 12:03:31 PM » |
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हौसला अफज़ाही के लिये तहे दिल से बहुत 2 शुक्रिया .........surindarn ji..
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SURESH SANGWAN
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«Reply #8 on: August 13, 2014, 12:05:36 PM » |
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हौसला अफज़ाही के लिये तहे दिल से बहुत 2 शुक्रिया ..........sahal ji .बात उठे उठकर चले मगर पहुँचे कहीं नहीं तेरे मेरे बीच रहे इस क़दर लिखती रही तेरी मजबूरियाँ रही हों ये और बात है वक़्त-बेवक़्त'सरु'तुझे अपनी ख़बर लिखती रही WAAH WAAH LAJAWAAB SARU JEE BOHUT HI KHOOB LIKHA HAI DAAD EK RAU KE HAQDAAR
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SURESH SANGWAN
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«Reply #9 on: August 13, 2014, 12:09:46 PM » |
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हौसला अफज़ाही के लिये तहे दिल से बहुत 2 शुक्रिया ..........mann ji.
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SURESH SANGWAN
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«Reply #10 on: August 13, 2014, 12:11:54 PM » |
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हौसला अफज़ाही के लिये तहे दिल से बहुत 2 शुक्रिया .........dksaxena ji..
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amit_prakash_meet
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«Reply #11 on: August 14, 2014, 04:16:46 AM » |
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F.H.SIDDIQUI
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«Reply #12 on: August 14, 2014, 05:23:12 AM » |
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beautiful
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mkv
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«Reply #13 on: August 14, 2014, 06:48:25 AM » |
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क़िताब- ए- हसरत और मेरे अश्क़ों की सियाही क़लम से दिल के ख्वाबों का शहर लिखती रही
bahut badhiya
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