SURESH SANGWAN
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कोई मंज़िल भी नहीं कहीं मुझे जाना भी नहीं तेरी ख़ातिर ऐ ज़िंदगी मैं दीवाना भी नहीं
पुराने क़िस्सों की अब दुहाई ना दिया कर मुझे पहले वाला तो ऐ दोस्त अब ज़माना भी नहीं
संगमरमर का ताज कोई बनवाउँ जीते जी मेरे शहर के आसपास तो मकराना भी नहीं
लपेटकर रख लोगे जब चाहो पतंग नहीं हूँ मैं होश में हूँ और अब मौसम आशिकाना भी नहीं
जमाने भर की ज़िम्मेदारियों का बोझ डाल के तुम खुल के हँसो और मुझे मुस्कुराना भी नहीं
गुबार-ए-दुनियाँ कभी जब भारी कर देती है सर टेक लूं सुकून से ऐसा कोई शाना भी नहीं
दवा करने की न दर्द सहने की ताक़त रही'सरु' तू रूठा ही बेहतर है तुझे मनाना भी नहीं
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prashad
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«Reply #2 on: June 29, 2014, 12:19:14 AM » |
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bahut khoob
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deepraghav
Shayari Qadrdaan
Rau: 0
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Waqt Bitaya:2 days, 19 hours and 53 minutes.
Posts: 257 Member Since: Feb 2014
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«Reply #4 on: June 29, 2014, 12:59:55 AM » |
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Kya bat hai sir ji...bahut khoob kaha
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ParwaaZ
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«Reply #5 on: June 29, 2014, 02:04:20 AM » |
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Suresh jee Aadaab ...!
Waah waah waah jee kia kahne aapke aNdaaz e bayaaN aur khoobsurat khayaaloN ke ... bade hi umdaa sher huye haiN ..
Matla aur maqta hume behad umdaa lage ... Is khoob kalaam par humari hazaaroN dili daad O mubbarakbad kabul kijiye ...
Likhte rahiye ... Bazm ko aur bhi roshan karte rahiye ... Shaad O aabaad rahiye ...
Khuda Hafez ...
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parinde
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«Reply #10 on: June 29, 2014, 01:21:26 PM » |
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SURESH SANGWAN
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«Reply #12 on: June 29, 2014, 01:23:11 PM » |
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SURESH SANGWAN
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«Reply #13 on: June 29, 2014, 01:24:01 PM » |
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SURESH SANGWAN
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«Reply #14 on: June 29, 2014, 01:24:37 PM » |
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हौसला अफजाही के लिए और अपना क़ीमती वक़्त देने का बहुत बहुत शुक्रिया......prasad ji bahut khoob
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