‎*** मैं कवी हूँ दोस्त..!! ***

by pratikdubey83 on December 20, 2011, 03:55:41 PM
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pratikdubey83
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मैं कवी हूँ दोस्त,
न जाने कितने शब्दों के मोती पिरो कर आ रहा हूँ...
कहीं गीत,कहीं गजल; कहीं कविताये लुटाकर आ रहा हूँ

कल ही की बात हैं यारां, तुझसे क्या छिपाना दिलदारा..
इक मुशायरे में बेहिसाब जान फूंक कर आया हूँ...
"इक बार और..!!" की हर ख्वाहिश पर,
नयी नज्म तराश कर आया हूँ...

कुछ दिन पहले कवी सम्मलेन का था आयोजन...
सभी ने किया था अपने छंदों का अद्भुत प्रदर्शन...
अपनी अलंकारिक रचनाओ की धुनी बिखेर दी मैंने...
उस प्रदर्शन को चार चाँद लगा कर आ रहा हूँ...

अब तुमसे क्या हरकत हैं मित्र..
बीते हफ्ते बना रहा सत्र आलिशान...
मराठी कविताओ के नाम लिख दी मैंने वो शाम...
अपनी मिट्टी का खूब सन्मान कर आय हूँ...

दिन-ब-दिन मैं लाजवाबी को शिकस्त दे रहा हूँ..
मैं तो कवी हूँ दोस्त,
न जाने कितने शब्दों के मोती पिरो कर आ रहा हूँ...

लेकिन मेरे यार; तुझसे परदा क्या हैं ..!
तेरी नजरो से मेरा मसला छुपा क्या हैं..!!
तू ही बता,घर में बच्चा खली पेट सो जाये तो...
ऐसी उकुबत में लिखूं इसमे उरूज ही क्या हैं..?

कल भी बेगम इब्तिला छिपा कर इब्तिसाम बिखेरती रही...
सिने में सिसक छिपाए,इज्तिराब को सहती रही...
लेकिन बेचारी को गुमान न हुआ,के शोहर शायर है उसका...
पगली,बारिश को बदली ही से छिपाती रही...

बारिश देख तो ली पर वजह से बेगुमान थ..
आधी रात तक इसी लिए नींद से तार्रुफ़ न था...
जाकर देखा जब रसोई में...चूल्हा ठंडा था...बर्तन भी कोई झूठा न था..
सनक सी दौड़ गयी तब जी को काँट कर...
मतलबी हूँ,जो सिर्फ कविताओ में जी रहा हूँ...
नादारी में लिप्त आँगन,भूखा सोया हैं और मैं..
नाशिनास,शब्दों के मोती पिरो रहा हूँ..

ज्यादा कुछ कहना नहीं हैं यार,
बस कुछ पैसे चाहिए थे उधार...
क्योकि फाँके पेट ज्यादा चलता नहीं संसार...
र्बैत का टूटा दिया तेल बिना दूर करता नहीं अन्धःकार..!

ज्यादा नहीं थोड़ी मोहलत मैं ही लौटा दूंगा..
जल्द ही कोई न कोई काम तलाश लूँगा..
इन शब्दों के अमिरी की राह में अब लाखों सुइयाँ चुभती हैं...
आज एहसास हुआ दोस्त ,गजलो-नज्मो से दिल बहलता हैं..
लेकिन चूल्हे की आग नहीं धधगती हैं....!

आज मैं इक निवाले को मोहताज बैठा हूँ...
और लोग कहते हैं..मैं बड़ा आमिर इंसान हूँ,
शब्दों के मोती पिरोता हूँ...
कभी गजल,कभी गीत कभी कविताये लुटता रहता हूँ.........!!!
===============================================
------------------------------------***प्रारब्ध***(२०/०६/२०११)------

-------शब्दार्थ..-------
उक़ूबत= यातना
उरूज= महानता
इब्तिला= दुर्भाग्य, कष्ट, पीड़ा
इब्तिसाम= मुस्कुराहट, उल्लास
इज़्तिराब= चिन्ता,बेचैनी
तार्रुफ़=भेट,पहचान
नादारी=गरीबी,निर्धनता
नाशिनास= अज्ञानी
फाँके=भूखे
र्बैत= घर,
 tearyeyed
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«Reply #1 on: December 20, 2011, 05:40:41 PM »
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BAHUT KHUB
मैं कवी हूँ दोस्त,
न जाने कितने शब्दों के मोती पिरो कर आ रहा हूँ...
कहीं गीत,कहीं गजल; कहीं कविताये लुटाकर आ रहा हूँ

कल ही की बात हैं यारां, तुझसे क्या छिपाना दिलदारा..
इक मुशायरे में बेहिसाब जान फूंक कर आया हूँ...
"इक बार और..!!" की हर ख्वाहिश पर,
नयी नज्म तराश कर आया हूँ...

कुछ दिन पहले कवी सम्मलेन का था आयोजन...
सभी ने किया था अपने छंदों का अद्भुत प्रदर्शन...
अपनी अलंकारिक रचनाओ की धुनी बिखेर दी मैंने...
उस प्रदर्शन को चार चाँद लगा कर आ रहा हूँ...

अब तुमसे क्या हरकत हैं मित्र..
बीते हफ्ते बना रहा सत्र आलिशान...
मराठी कविताओ के नाम लिख दी मैंने वो शाम...
अपनी मिट्टी का खूब सन्मान कर आय हूँ...

दिन-ब-दिन मैं लाजवाबी को शिकस्त दे रहा हूँ..
मैं तो कवी हूँ दोस्त,
न जाने कितने शब्दों के मोती पिरो कर आ रहा हूँ...

लेकिन मेरे यार; तुझसे परदा क्या हैं ..!
तेरी नजरो से मेरा मसला छुपा क्या हैं..!!
तू ही बता,घर में बच्चा खली पेट सो जाये तो...
ऐसी उकुबत में लिखूं इसमे उरूज ही क्या हैं..?

कल भी बेगम इब्तिला छिपा कर इब्तिसाम बिखेरती रही...
सिने में सिसक छिपाए,इज्तिराब को सहती रही...
लेकिन बेचारी को गुमान न हुआ,के शोहर शायर है उसका...
पगली,बारिश को बदली ही से छिपाती रही...

बारिश देख तो ली पर वजह से बेगुमान थ..
आधी रात तक इसी लिए नींद से तार्रुफ़ न था...
जाकर देखा जब रसोई में...चूल्हा ठंडा था...बर्तन भी कोई झूठा न था..
सनक सी दौड़ गयी तब जी को काँट कर...
मतलबी हूँ,जो सिर्फ कविताओ में जी रहा हूँ...
नादारी में लिप्त आँगन,भूखा सोया हैं और मैं..
नाशिनास,शब्दों के मोती पिरो रहा हूँ..

ज्यादा कुछ कहना नहीं हैं यार,
बस कुछ पैसे चाहिए थे उधार...
क्योकि फाँके पेट ज्यादा चलता नहीं संसार...
र्बैत का टूटा दिया तेल बिना दूर करता नहीं अन्धःकार..!

ज्यादा नहीं थोड़ी मोहलत मैं ही लौटा दूंगा..
जल्द ही कोई न कोई काम तलाश लूँगा..
इन शब्दों के अमिरी की राह में अब लाखों सुइयाँ चुभती हैं...
आज एहसास हुआ दोस्त ,गजलो-नज्मो से दिल बहलता हैं..
लेकिन चूल्हे की आग नहीं धधगती हैं....!

आज मैं इक निवाले को मोहताज बैठा हूँ...
और लोग कहते हैं..मैं बड़ा आमिर इंसान हूँ,
शब्दों के मोती पिरोता हूँ...
कभी गजल,कभी गीत कभी कविताये लुटता रहता हूँ.........!!!
===============================================
------------------------------------***प्रारब्ध***(२०/०६/२०११)------

-------शब्दार्थ..-------
उक़ूबत= यातना
उरूज= महानता
इब्तिला= दुर्भाग्य, कष्ट, पीड़ा
इब्तिसाम= मुस्कुराहट, उल्लास
इज़्तिराब= चिन्ता,बेचैनी
तार्रुफ़=भेट,पहचान
नादारी=गरीबी,निर्धनता
नाशिनास= अज्ञानी
फाँके=भूखे
र्बैत= घर,
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mkv
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«Reply #2 on: December 21, 2011, 02:40:17 AM »
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Bahut khoob likha hai pratik ji  Applause Applause Applause

Par aage se apni creations ko sahi head me post kare. ye ghazal nahi.
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pratikdubey83
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«Reply #3 on: December 21, 2011, 02:50:31 AM »
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aabhari hoon.....

aap ne kaha us baat ka ehsas mujhe bhi hua....lekin maine kai bar koshish ki naye topic me ye kavita post karne ki...par wo  error bata rah tha...aap ka margadarshan ho to mujhe aanad hoga....

ahi aya hoon is page par ...thik se option mil nahhi pa rahe hain...!!!
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«Reply #4 on: December 21, 2011, 03:33:42 AM »
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Beautiful !
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«Reply #5 on: December 21, 2011, 07:20:07 AM »
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«Reply #6 on: December 22, 2011, 03:05:30 PM »
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 Applause Applause Applause Applause यॉइंडिया के पन्नो पर आपके सशक्त हस्ताक्षर है ये रचना, साधुवाद
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«Reply #7 on: December 22, 2011, 03:36:28 PM »
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मैं कवी हूँ दोस्त,
न जाने कितने शब्दों के मोती पिरो कर आ रहा हूँ...
कहीं गीत,कहीं गजल; कहीं कविताये लुटाकर आ रहा हूँ

कल ही की बात हैं यारां, तुझसे क्या छिपाना दिलदारा..
इक मुशायरे में बेहिसाब जान फूंक कर आया हूँ...
"इक बार और..!!" की हर ख्वाहिश पर,
नयी नज्म तराश कर आया हूँ...

कुछ दिन पहले कवी सम्मलेन का था आयोजन...
सभी ने किया था अपने छंदों का अद्भुत प्रदर्शन...
अपनी अलंकारिक रचनाओ की धुनी बिखेर दी मैंने...
उस प्रदर्शन को चार चाँद लगा कर आ रहा हूँ...

अब तुमसे क्या हरकत हैं मित्र..
बीते हफ्ते बना रहा सत्र आलिशान...
मराठी कविताओ के नाम लिख दी मैंने वो शाम...
अपनी मिट्टी का खूब सन्मान कर आय हूँ...

दिन-ब-दिन मैं लाजवाबी को शिकस्त दे रहा हूँ..
मैं तो कवी हूँ दोस्त,
न जाने कितने शब्दों के मोती पिरो कर आ रहा हूँ...

लेकिन मेरे यार; तुझसे परदा क्या हैं ..!
तेरी नजरो से मेरा मसला छुपा क्या हैं..!!
तू ही बता,घर में बच्चा खली पेट सो जाये तो...
ऐसी उकुबत में लिखूं इसमे उरूज ही क्या हैं..?

कल भी बेगम इब्तिला छिपा कर इब्तिसाम बिखेरती रही...
सिने में सिसक छिपाए,इज्तिराब को सहती रही...
लेकिन बेचारी को गुमान न हुआ,के शोहर शायर है उसका...
पगली,बारिश को बदली ही से छिपाती रही...

बारिश देख तो ली पर वजह से बेगुमान थ..
आधी रात तक इसी लिए नींद से तार्रुफ़ न था...
जाकर देखा जब रसोई में...चूल्हा ठंडा था...बर्तन भी कोई झूठा न था..
सनक सी दौड़ गयी तब जी को काँट कर...
मतलबी हूँ,जो सिर्फ कविताओ में जी रहा हूँ...
नादारी में लिप्त आँगन,भूखा सोया हैं और मैं..
नाशिनास,शब्दों के मोती पिरो रहा हूँ..

ज्यादा कुछ कहना नहीं हैं यार,
बस कुछ पैसे चाहिए थे उधार...
क्योकि फाँके पेट ज्यादा चलता नहीं संसार...
र्बैत का टूटा दिया तेल बिना दूर करता नहीं अन्धःकार..!

ज्यादा नहीं थोड़ी मोहलत मैं ही लौटा दूंगा..
जल्द ही कोई न कोई काम तलाश लूँगा..
इन शब्दों के अमिरी की राह में अब लाखों सुइयाँ चुभती हैं...
आज एहसास हुआ दोस्त ,गजलो-नज्मो से दिल बहलता हैं..
लेकिन चूल्हे की आग नहीं धधगती हैं....!

आज मैं इक निवाले को मोहताज बैठा हूँ...
और लोग कहते हैं..मैं बड़ा आमिर इंसान हूँ,
शब्दों के मोती पिरोता हूँ...
कभी गजल,कभी गीत कभी कविताये लुटता रहता हूँ.........!!!
===============================================
------------------------------------***प्रारब्ध***(२०/०६/२०११)------

-------शब्दार्थ..-------
उक़ूबत= यातना
उरूज= महानता
इब्तिला= दुर्भाग्य, कष्ट, पीड़ा
इब्तिसाम= मुस्कुराहट, उल्लास
इज़्तिराब= चिन्ता,बेचैनी
तार्रुफ़=भेट,पहचान
नादारी=गरीबी,निर्धनता
नाशिनास= अज्ञानी
फाँके=भूखे
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 tearyeyed


Kya kahoon main Yeh Padhkar..Har Lafz Dil Ko cheerta Hua nazar Aaaya..Aap Sar Jhuka Kar salaam Karta Hoon Prateekdubey ji, Bahut kam Aisa Hota hai ke Aap Koi Rachna padh kar Apni Aankhon Ko Nam paayer..

Daad To nahi de Sakta par Haan Duayen De Sakta Hoon..Rabb Kare Yeh Sirf Kavita Ho koi Haqeeqat Nahi...

 Hats off to you! Hats off to you! Hats off to you! Hats off to you! Hats off to you! Hats off to you!
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pratikdubey83
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«Reply #8 on: December 23, 2011, 05:58:22 AM »
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Kyu mujhe itna bada rehe hain sar ji.....aap ne jo pyar bhara abhipray diya...mujhe ye kisi oscer award jitna hi mehetwapurn hain...!!! ap ko pranam
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