Teen Gazalen!

by abdbundeli on August 05, 2014, 06:10:20 AM
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abdbundeli
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1.

वस्ल से होंगे जवां दिन, कि, जो उन बिन निकले !
रात आने के लिये, लाज़िमी है, दिन निकले !!

चाहता था, कि, मेरे अश्क नमूँदार न हों ;
बारहा जब्त किया तर्ह से, लेकिन निकले !

वो मेरे अश्क थे अशीर, गोकि, थे बेआब ;  
बेसदा नालाँ-ए-बिस्मिल, गमे बातिन निकले !

काश, हर दिल की, जिगर की, मुराद हो पूरी !
क्या ही दुनिया हो, अगर, हर शमा से जिन निकले !!

वायदे वस्ल के तोड़ेंगे वो ? नामुमकिन था !
और वो, दौरे इश्क़, दिलरुबा साकिन निकले !!

इतनी परवाह भी न हो, 'अबद' को जीने की :
ज़ीस्त का दौरे सफर हरकते खूँ गिन निकले !

2.
जब कभी यारे बेवफ़ा का करम होता है :
बेवफ़ाई में, वफ़ाई का भरम होता है !

हम जिसे रात समझते थे, वो थी तारीकी;
रात बेचाँद रहे, नूरे सनम होता है !

कैसे चल देंगे किसी ग़ैर रासते पै हम ?
तुम न हो साथ अगर, साथ में ग़म होता है !

दूर तक नाम नहीं है कहीं ठिकाने का ;
नज़रे मैकश को, मैकदे का वहम होता है !

कब तलक यूँही बराबर सफ़र रखूँ जारी ?
कब 'अबद' देख, ख़त्म दौरे सितम होता है ?  

3.
सहर में खुशबू-ए-ताज़ा ये, क्या कहला के आती है ?
तुम्हें, लगता है, फिर, बादे सबा टहला के आती है !

इधर हमने, उधर तुमने, गुज़ारे हैं दहर रोते :
भला हो उस सदा का, जो, तुम्हें बहला के आती है !

किनारों पर खड़े हैं, बीच में है बह्र लहराता;
भला हो उस लहर का, जो, तुम्हें नहला के आती है !    

न मौक़ा था, न मौक़ा  है; कहीं तुम हो, कहीं हम हैं !
भला हो, उस हवा का, जो तुम्हें सहला के आती है !!

'अबद ' का हाल मत पूछो , उसे जीने दो तारीकी ;
कि,जब भी बर्क़ आती है, तुम्हें दहला के आती है !!

                    - अबद बुन्देली
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khamosh_aawaaz
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«Reply #1 on: August 05, 2014, 10:16:01 AM »
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1.

वस्ल से होंगे जवां दिन, कि, जो उन बिन निकले !
रात आने के लिये, लाज़िमी है, दिन निकले !!

चाहता था, कि, मेरे अश्क नमूँदार न हों ;
बारहा जब्त किया तर्ह से, लेकिन निकले !

वो मेरे अश्क थे अशीर, गोकि, थे बेआब ; 
बेसदा नालाँ-ए-बिस्मिल, गमे बातिन निकले !

काश, हर दिल की, जिगर की, मुराद हो पूरी !
क्या ही दुनिया हो, अगर, हर शमा से जिन निकले !!

वायदे वस्ल के तोड़ेंगे वो ? नामुमकिन था !
और वो, दौरे इश्क़, दिलरुबा साकिन निकले !!

इतनी परवाह भी न हो, 'अबद' को जीने की :
ज़ीस्त का दौरे सफर हरकते खूँ गिन निकले !

2.
जब कभी यारे बेवफ़ा का करम होता है :
बेवफ़ाई में, वफ़ाई का भरम होता है !

हम जिसे रात समझते थे, वो थी तारीकी;
रात बेचाँद रहे, नूरे सनम होता है !

कैसे चल देंगे किसी ग़ैर रासते पै हम ?
तुम न हो साथ अगर, साथ में ग़म होता है !

दूर तक नाम नहीं है कहीं ठिकाने का ;
नज़रे मैकश को, मैकदे का वहम होता है !

कब तलक यूँही बराबर सफ़र रखूँ जारी ?
कब 'अबद' देख, ख़त्म दौरे सितम होता है ? 

3.
सहर में खुशबू-ए-ताज़ा ये, क्या कहला के आती है ?
तुम्हें, लगता है, फिर, बादे सबा टहला के आती है !

इधर हमने, उधर तुमने, गुज़ारे हैं दहर रोते :
भला हो उस सदा का, जो, तुम्हें बहला के आती है !

किनारों पर खड़े हैं, बीच में है बह्र लहराता;
भला हो उस लहर का, जो, तुम्हें नहला के आती है !     

न मौक़ा था, न मौक़ा  है; कहीं तुम हो, कहीं हम हैं !
भला हो, उस हवा का, जो तुम्हें सहला के आती है !!

'अबद ' का हाल मत पूछो , उसे जीने दो तारीकी ;
कि,जब भी बर्क़ आती है, तुम्हें दहला के आती है !!

                    - अबद बुन्देली




veriiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiii iiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiii-naaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaice -ABD har ghazal 1 rau kii haqdaar hai per aap ek hii saath likh baithe to 1-hii rau mile gaa
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Advo.RavinderaRavi
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«Reply #2 on: August 05, 2014, 11:41:24 AM »
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1.

वस्ल से होंगे जवां दिन, कि, जो उन बिन निकले !
रात आने के लिये, लाज़िमी है, दिन निकले !!

चाहता था, कि, मेरे अश्क नमूँदार न हों ;
बारहा जब्त किया तर्ह से, लेकिन निकले !

वो मेरे अश्क थे अशीर, गोकि, थे बेआब ; 
बेसदा नालाँ-ए-बिस्मिल, गमे बातिन निकले !

काश, हर दिल की, जिगर की, मुराद हो पूरी !
क्या ही दुनिया हो, अगर, हर शमा से जिन निकले !!

वायदे वस्ल के तोड़ेंगे वो ? नामुमकिन था !
और वो, दौरे इश्क़, दिलरुबा साकिन निकले !!

इतनी परवाह भी न हो, 'अबद' को जीने की :
ज़ीस्त का दौरे सफर हरकते खूँ गिन निकले !

2.
जब कभी यारे बेवफ़ा का करम होता है :
बेवफ़ाई में, वफ़ाई का भरम होता है !

हम जिसे रात समझते थे, वो थी तारीकी;
रात बेचाँद रहे, नूरे सनम होता है !

कैसे चल देंगे किसी ग़ैर रासते पै हम ?
तुम न हो साथ अगर, साथ में ग़म होता है !

दूर तक नाम नहीं है कहीं ठिकाने का ;
नज़रे मैकश को, मैकदे का वहम होता है !

कब तलक यूँही बराबर सफ़र रखूँ जारी ?
कब 'अबद' देख, ख़त्म दौरे सितम होता है ? 

3.
सहर में खुशबू-ए-ताज़ा ये, क्या कहला के आती है ?
तुम्हें, लगता है, फिर, बादे सबा टहला के आती है !

इधर हमने, उधर तुमने, गुज़ारे हैं दहर रोते :
भला हो उस सदा का, जो, तुम्हें बहला के आती है !

किनारों पर खड़े हैं, बीच में है बह्र लहराता;
भला हो उस लहर का, जो, तुम्हें नहला के आती है !     

न मौक़ा था, न मौक़ा  है; कहीं तुम हो, कहीं हम हैं !
भला हो, उस हवा का, जो तुम्हें सहला के आती है !!

'अबद ' का हाल मत पूछो , उसे जीने दो तारीकी ;
कि,जब भी बर्क़ आती है, तुम्हें दहला के आती है !!

                    - अबद बुन्देली


Bahut Khoob.......Rau Qabool kareinnnnnnnnnnnnnnnnnn.
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abdbundeli
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«Reply #3 on: August 05, 2014, 12:28:56 PM »
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veriiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiii iiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiii-naaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaice -ABD har ghazal 1 rau kii haqdaar hai per aap ek hii saath likh baithe to 1-hii rau mile gaa

Shukriyah,Khamosh ji! Bahut-bahut shukriyah!
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abdbundeli
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«Reply #4 on: August 05, 2014, 12:29:56 PM »
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Bahut Khoob.......Rau Qabool kareinnnnnnnnnnnnnnnnnn.

Bahut-bahut shukriyah, Ravi ji!
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sksaini4
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«Reply #5 on: August 05, 2014, 03:48:59 PM »
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«Reply #6 on: August 05, 2014, 10:46:57 PM »
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1.

वस्ल से होंगे जवां दिन, कि, जो उन बिन निकले !
रात आने के लिये, लाज़िमी है, दिन निकले !!

चाहता था, कि, मेरे अश्क नमूँदार न हों ;
बारहा जब्त किया तर्ह से, लेकिन निकले !

वो मेरे अश्क थे अशीर, गोकि, थे बेआब ; 
बेसदा नालाँ-ए-बिस्मिल, गमे बातिन निकले !

काश, हर दिल की, जिगर की, मुराद हो पूरी !
क्या ही दुनिया हो, अगर, हर शमा से जिन निकले !!

वायदे वस्ल के तोड़ेंगे वो ? नामुमकिन था !
और वो, दौरे इश्क़, दिलरुबा साकिन निकले !!

इतनी परवाह भी न हो, 'अबद' को जीने की :
ज़ीस्त का दौरे सफर हरकते खूँ गिन निकले !

2.
जब कभी यारे बेवफ़ा का करम होता है :
बेवफ़ाई में, वफ़ाई का भरम होता है !

हम जिसे रात समझते थे, वो थी तारीकी;
रात बेचाँद रहे, नूरे सनम होता है !

कैसे चल देंगे किसी ग़ैर रासते पै हम ?
तुम न हो साथ अगर, साथ में ग़म होता है !

दूर तक नाम नहीं है कहीं ठिकाने का ;
नज़रे मैकश को, मैकदे का वहम होता है !

कब तलक यूँही बराबर सफ़र रखूँ जारी ?
कब 'अबद' देख, ख़त्म दौरे सितम होता है ? 

3.
सहर में खुशबू-ए-ताज़ा ये, क्या कहला के आती है ?
तुम्हें, लगता है, फिर, बादे सबा टहला के आती है !

इधर हमने, उधर तुमने, गुज़ारे हैं दहर रोते :
भला हो उस सदा का, जो, तुम्हें बहला के आती है !

किनारों पर खड़े हैं, बीच में है बह्र लहराता;
भला हो उस लहर का, जो, तुम्हें नहला के आती है !     

न मौक़ा था, न मौक़ा  है; कहीं तुम हो, कहीं हम हैं !
भला हो, उस हवा का, जो तुम्हें सहला के आती है !!

'अबद ' का हाल मत पूछो , उसे जीने दो तारीकी ;
कि,जब भी बर्क़ आती है, तुम्हें दहला के आती है !!

                    - अबद बुन्देली


Kyaa baat hai Janaabnihaayat umdah peshkash hai, dheron daad.
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amit_prakash_meet
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«Reply #7 on: August 06, 2014, 06:20:15 AM »
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वाह....वाह.....वाह....

बहुत ही उम्दा पेशकश......

ढेरों ढेरों दाद.......
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mann.mann
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«Reply #8 on: August 06, 2014, 07:21:28 AM »
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waaaaahhhhhh wwaaaaahhhhh..... bahut khub abdji.....

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abdbundeli
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«Reply #9 on: August 06, 2014, 10:31:11 AM »
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nice  nice nice

Thanks! Thanks!! Thanks!!!
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abdbundeli
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«Reply #10 on: August 06, 2014, 10:32:39 AM »
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Kyaa baat hai Janaabnihaayat umdah peshkash hai, dheron daad.
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Loads of thanks, Surindran ji!
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abdbundeli
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«Reply #11 on: August 06, 2014, 10:33:48 AM »
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वाह....वाह.....वाह....

बहुत ही उम्दा पेशकश......

ढेरों ढेरों दाद.......

Bahut-bahut shukriyah, Amit ji!
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abdbundeli
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«Reply #12 on: August 06, 2014, 10:34:54 AM »
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waaaaahhhhhh wwaaaaahhhhh..... bahut khub abdji.....

 Applause Applause Applause Applause Applause

Bahut-bahut shukriyah, Mann ji!
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sanchit
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«Reply #13 on: August 06, 2014, 03:30:53 PM »
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Bundeli ji har ek ghazal subhanallah... behad umdaa... pehli ghazal ka matla to bahut hi khoobsurat hai... dheron daad ke saath ek rau kubul kijiye...
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abdbundeli
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«Reply #14 on: August 07, 2014, 10:28:51 AM »
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Bundeli ji har ek ghazal subhanallah... behad umdaa... pehli ghazal ka matla to bahut hi khoobsurat hai... dheron daad ke saath ek rau kubul kijiye...

Bahut-bahut shukriyah, Sanchit ji!
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