इज्ज़त बचाए रखता है असरार की तरह......सादिक़ रिज़वी

by Sadiq Rizvi on October 30, 2011, 01:53:05 PM
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Sadiq Rizvi
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इज्ज़त बचाए रखता है असरार की तरह
फैलाता हाथ जो नहीं नादार की तरह

सब रिश्ते नाते ताक़ पर रखकर वो बज़्म में
अपनों से पेश आते हैं अगयार की तरह

कब टूट जाए ये तो नज़ाकत से है भरी
होती है सांस की कड़ी इक तार की तरह

दौरे खिज़ां में ज़ेरे-शजर पत्ते ज़र्द रू
बिखरे पड़े है चारसू बीमार की तरह

अहले खिरद को आता है पढ़ना किताबे रुख
करना न ज़िंदगी बुरे किरदार की तरह    

जिनकी पहुँच से दूर हक़ीक़त के ख्वाब हैं
जीवन में रंग भरते हैं फनकार की तरह

क्यों कर न चूम लेने को 'सादिक़' का दिल करे
गुलशन के गुल का रंग है रुखसार की तरह

                 --- सादिक़ रिज़वी

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Satish Shukla
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«Reply #1 on: October 30, 2011, 02:01:11 PM »
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Sadiq Rizvi Sahab,

Waah waah kamaal kee ghazal
kahee hai bahut khoob..kya kahne

Satish Shukla 'Raqeeb'
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SURESH SANGWAN
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«Reply #2 on: October 30, 2011, 02:38:07 PM »
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BAHUT KHOOB WELCOME TO YOINDIA.
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usha rajesh
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«Reply #3 on: October 30, 2011, 03:05:46 PM »
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इज्ज़त बचाए रखता है असरार की तरह
फैलाता हाथ जो नहीं नादार की तरह

सब रिश्ते नाते ताक़ पर रखकर वो बज़्म में
अपनों से पेश आते हैं अगयार की तरह

कब टूट जाए ये तो नज़ाकत से है भरी
होती है सांस की कड़ी इक तार की तरह

दौरे खिज़ां में ज़ेरे-शजर पत्ते ज़र्द रू
बिखरे पड़े है चारसू बीमार की तरह

अहले खिरद को आता है पढ़ना किताबे रुख
करना न ज़िंदगी बुरे किरदार की तरह   

जिनकी पहुँच से दूर हक़ीक़त के ख्वाब हैं
जीवन में रंग भरते हैं फनकार की तरह

क्यों कर न चूम लेने को 'सादिक़' का दिल करे
गुलशन के गुल का रंग है रुखसार की तरह

                 --- सादिक़ रिज़वी


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Mohammad Touhid
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«Reply #4 on: October 30, 2011, 03:38:06 PM »
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Sadik Sahab..... bahut khoob

millions of daaaaaaads....

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sksaini4
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«Reply #5 on: October 31, 2011, 03:53:24 AM »
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sadiq saheb dili mubarakbaad qubool keejiye shaandaar gazal kahi hai aapne
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mamta bajpai
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«Reply #6 on: November 05, 2011, 11:09:03 PM »
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इज्ज़त बचाए रखता है असरार की तरह
फैलाता हाथ जो नहीं नादार की तरह

सब रिश्ते नाते ताक़ पर रखकर वो बज़्म में
अपनों से पेश आते हैं अगयार की तरह

कब टूट जाए ये तो नज़ाकत से है भरी
होती है सांस की कड़ी इक तार की तरह

दौरे खिज़ां में ज़ेरे-शजर पत्ते ज़र्द रू
बिखरे पड़े है चारसू बीमार की तरह

अहले खिरद को आता है पढ़ना किताबे रुख
करना न ज़िंदगी बुरे किरदार की तरह   

जिनकी पहुँच से दूर हक़ीक़त के ख्वाब हैं
जीवन में रंग भरते हैं फनकार की तरह

क्यों कर न चूम लेने को 'सादिक़' का दिल करे
गुलशन के गुल का रंग है रुखसार की तरह

                 --- सादिक़ रिज़वी


jinkee pahunch se doorhaqeeqat ke khwaab hain
jeevan me rang bharte hain fankaar kee tarah
bahut khoob Sadiq saaheb!
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«Reply #7 on: November 11, 2011, 01:27:36 PM »
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इज्ज़त बचाए रखता है असरार की तरह
फैलाता हाथ जो नहीं नादार की तरह

सब रिश्ते नाते ताक़ पर रखकर वो बज़्म में
अपनों से पेश आते हैं अगयार की तरह

कब टूट जाए ये तो नज़ाकत से है भरी
होती है सांस की कड़ी इक तार की तरह

दौरे खिज़ां में ज़ेरे-शजर पत्ते ज़र्द रू
बिखरे पड़े है चारसू बीमार की तरह

अहले खिरद को आता है पढ़ना किताबे रुख
करना न ज़िंदगी बुरे किरदार की तरह   

जिनकी पहुँच से दूर हक़ीक़त के ख्वाब हैं
जीवन में रंग भरते हैं फनकार की तरह

क्यों कर न चूम लेने को 'सादिक़' का दिल करे
गुलशन के गुल का रंग है रुखसार की तरह

                 --- सादिक़ रिज़वी



Bahut Bahut Khoob Saadiq Ji Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley
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adil bechain
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«Reply #8 on: April 08, 2013, 06:19:23 PM »
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इज्ज़त बचाए रखता है असरार की तरह
फैलाता हाथ जो नहीं नादार की तरह

सब रिश्ते नाते ताक़ पर रखकर वो बज़्म में
अपनों से पेश आते हैं अगयार की तरह

कब टूट जाए ये तो नज़ाकत से है भरी
होती है सांस की कड़ी इक तार की तरह

दौरे खिज़ां में ज़ेरे-शजर पत्ते ज़र्द रू
बिखरे पड़े है चारसू बीमार की तरह

अहले खिरद को आता है पढ़ना किताबे रुख
करना न ज़िंदगी बुरे किरदार की तरह   

जिनकी पहुँच से दूर हक़ीक़त के ख्वाब हैं
जीवन में रंग भरते हैं फनकार की तरह

क्यों कर न चूम लेने को 'सादिक़' का दिल करे
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waaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaah maqta khoob raha
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ghayal_shayar
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«Reply #9 on: April 18, 2013, 09:17:43 AM »
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bahut umda likha hai rizvi saaheb, bas aage v yuNhi likhte raheN...
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