कोई ग़ैर तो नहीं है..............................अरुण मिश्र.

by arunmishra on February 19, 2012, 02:36:17 PM
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arunmishra
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कोई ग़ैर तो नहीं है...........

-अरुण मिश्र.
 
 इक अजीब कश्मकश है, कुछ  बोलूँ या न बोलूँ।
 कोई  ग़ैर  तो नहीं है,  कि मैं  उसके  राज़ खोलूँ॥

 माना  कि,  उसने   मुझसे  ना बोलने की  ठानी।
 ये तो  और भी नादानी जो न मैं भी उससे बोलूँ॥

 उसका सवाल,  उस सा  कोई दूसरा भी  है क्या?
 किसी  दूसरे  को  देखूँ ,  तब तो   ज़ुबान  खोलूँ॥

 गुस्से  में   ग़र्चे  उसने,  रुख  से  नक़ाब  पलटा।
 अब  है  जो  बही  गंगा  तो  क्यूँ  न  हाथ धो लूँ॥

 हर  बार  'अरुन'  उसके  सम्मुख  यही  दशा है।
 क्या धड़कनें  गिनूँ मैं,  क्या  नब्ज़   को टटोलूँ॥
                                    *


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sksaini4
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«Reply #1 on: February 19, 2012, 02:55:01 PM »
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Bahut khoob ehsaas hai Arun ji kyaa baat bahut dino ke baad aaye
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mkv
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«Reply #2 on: February 19, 2012, 05:16:21 PM »
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Bahut khoob Arun Sir
 इक अजीब कश्मकश है, कुछ  बोलूँ या न बोलूँ।
 कोई  ग़ैर  तो नहीं है,  कि मैं  उसके  राज़ खोलूँ॥
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MANOJ6568
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«Reply #3 on: February 19, 2012, 06:12:35 PM »
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NICE
कोई ग़ैर तो नहीं है...........

-अरुण मिश्र.
 
 इक अजीब कश्मकश है, कुछ  बोलूँ या न बोलूँ।
 कोई  ग़ैर  तो नहीं है,  कि मैं  उसके  राज़ खोलूँ॥

 माना  कि,  उसने   मुझसे  ना बोलने की  ठानी।
 ये तो  और भी नादानी जो न मैं भी उससे बोलूँ॥

 उसका सवाल,  उस सा  कोई दूसरा भी  है क्या?
 किसी  दूसरे  को  देखूँ ,  तब तो   ज़ुबान  खोलूँ॥

 गुस्से  में   ग़र्चे  उसने,  रुख  से  नक़ाब  पलटा।
 अब  है  जो  बही  गंगा  तो  क्यूँ  न  हाथ धो लूँ॥

 हर  बार  'अरुन'  उसके  सम्मुख  यही  दशा है।
 क्या धड़कनें  गिनूँ मैं,  क्या  नब्ज़   को टटोलूँ॥
                                    *


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F.H.SIDDIQUI
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«Reply #4 on: February 21, 2012, 02:48:34 PM »
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Bahut khub Arun ji. Bahti Ganga waale sher ka jawaab nahin.
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khamosh_aawaaz
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«Reply #5 on: February 22, 2012, 08:41:58 AM »
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कोई ग़ैर तो नहीं है...........

-अरुण मिश्र.
 
 इक अजीब कश्मकश है, कुछ  बोलूँ या न बोलूँ।
 कोई  ग़ैर  तो नहीं है,  कि मैं  उसके  राज़ खोलूँ॥

 माना  कि,  उसने   मुझसे  ना बोलने की  ठानी।
 ये तो  और भी नादानी जो न मैं भी उससे बोलूँ॥

 उसका सवाल,  उस सा  कोई दूसरा भी  है क्या?
 किसी  दूसरे  को  देखूँ ,  तब तो   ज़ुबान  खोलूँ॥

 गुस्से  में   ग़र्चे  उसने,  रुख  से  नक़ाब  पलटा।
 अब  है  जो  बही  गंगा  तो  क्यूँ  न  हाथ धो लूँ॥

 हर  बार  'अरुन'  उसके  सम्मुख  यही  दशा है।
 क्या धड़कनें  गिनूँ मैं,  क्या  नब्ज़   को टटोलूँ॥
                                    *


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Iftakhar Ahmad
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«Reply #6 on: March 08, 2012, 02:17:06 PM »
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Waah waah waah, kya baat hai. Bahut umda.
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arunmishra
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«Reply #7 on: April 30, 2012, 06:54:24 PM »
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प्रिय सैनी जी, mkv जी, मनोज जी, हसन जी, ख़ामोश आवाज़ जी एवं इफ्तखार अहमद जी, मैं आप सभी का आभारी हूँ|शुभकामनायें|
-अरुण मिश्र.
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