कोई फूटी किरन माह से........................अरुण मिश्र.

by arunmishra on April 28, 2013, 04:55:36 PM
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arunmishra
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ग़ज़ल


कोई फूटी किरन माह से....

-अरुण मिश्र.

इक जरा,   इक जरा,   इक  जरा।
मुस्करा,     मुस्करा,     मुस्करा।।
 
इक तबस्सुम ने, मुझको  किया।
उम्र   भर  के    लिये,  सिरफिरा।।
 
चाँदनी      खिलखिलाती     रही।
रात   भर,   पर   कहाँ   जी  भरा।।
 
मेरे     अरमाँ,     मचलते     हुये।
तेरा     अन्दाज़,     शोख़ी    भरा।।
 
सारी   कोशिश,   धरी   रह  गयी।
रह    गया    इल्म    सारा,   धरा।।
 
जितना   ही    हम   छुपाते   गये।
उतना    खुलता   गया,   माज़रा।।
 
पुतलियाँ    हौले   से   हँस   उठीं।
लब  थिरक  कर,  खिंचे  हैं  जरा।।
 
कोई     फूटी   किरन,   माह   से।
कोई    झरना,    कहीं   पे    झरा।।
 
काश !  टूटे   कभी  न,   ‘अरुन’।
इन    तिलिस्मात   का,   दायरा।।
                    *

ग़ज़ल, (२००२), अरुण मिश्र, कोई फूटी किरन माह से
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«Reply #1 on: April 28, 2013, 05:20:09 PM »
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ग़ज़ल


कोई फूटी किरन माह से....

-अरुण मिश्र.

इक जरा,   इक जरा,   इक  जरा।
मुस्करा,     मुस्करा,     मुस्करा।।
 
इक तबस्सुम ने, मुझको  किया।
उम्र   भर  के    लिये,  सिरफिरा।।
 
चाँदनी      खिलखिलाती     रही।
रात   भर,   पर   कहाँ   जी  भरा।।
 
मेरे     अरमाँ,     मचलते     हुये।
तेरा     अन्दाज़,     शोख़ी    भरा।।
 
सारी   कोशिश,   धरी   रह  गयी।
रह    गया    इल्म    सारा,   धरा।।
 
जितना   ही    हम   छुपाते   गये।
उतना    खुलता   गया,   माज़रा।।
 
पुतलियाँ    हौले   से   हँस   उठीं।
लब  थिरक  कर,  खिंचे  हैं  जरा।।
 
कोई     फूटी   किरन,   माह   से।
कोई    झरना,    कहीं   पे    झरा।।
 
काश !  टूटे   कभी  न,   ‘अरुन’।
इन    तिलिस्मात   का,   दायरा।।
                    *

ग़ज़ल, (२००२), अरुण मिश्र, कोई फूटी किरन माह से
Arun Ji Kya Khoob Likhte Ho. Jawab nahin.
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zarraa
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«Reply #2 on: April 28, 2013, 05:25:53 PM »
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Bahaut hi sundar rachna hai Arun ji ....komal bhaavnaaon ka tilismaatee bayaan !!! Dheron daad aur mubaarakbaad !!
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mkv
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«Reply #3 on: April 28, 2013, 05:58:51 PM »
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Lajavaab...Arun sir
matle se jo parwaan chada..to chadta hi gaya..
maza aa gaya..
aajkal sabhi pasandeeda bahr hai ye.
ghazab dha diya aapne..
wah wah wah..
saadar
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RAJAN KONDAL
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«Reply #4 on: April 28, 2013, 06:24:57 PM »
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bhut khub ji........
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F.H.SIDDIQUI
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«Reply #5 on: April 28, 2013, 06:56:00 PM »
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BAHUT BAHUT KHOOB , ARUN JI . BAHUT BADHAAI.
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«Reply #6 on: April 28, 2013, 08:52:41 PM »
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Wah,
ग़ज़ल


कोई फूटी किरन माह से....

-अरुण मिश्र.

इक जरा,   इक जरा,   इक  जरा।
मुस्करा,     मुस्करा,     मुस्करा।।
 
इक तबस्सुम ने, मुझको  किया।
उम्र   भर  के    लिये,  सिरफिरा।।
 
चाँदनी      खिलखिलाती     रही।
रात   भर,   पर   कहाँ   जी  भरा।।
 
मेरे     अरमाँ,     मचलते     हुये।
तेरा     अन्दाज़,     शोख़ी    भरा।।
 
सारी   कोशिश,   धरी   रह  गयी।
रह    गया    इल्म    सारा,   धरा।।
 
जितना   ही    हम   छुपाते   गये।
उतना    खुलता   गया,   माज़रा।।
 
पुतलियाँ    हौले   से   हँस   उठीं।
लब  थिरक  कर,  खिंचे  हैं  जरा।।
 
कोई     फूटी   किरन,   माह   से।
कोई    झरना,    कहीं   पे    झरा।।
 
काश !  टूटे   कभी  न,   ‘अरुन’।
इन    तिलिस्मात   का,   दायरा।।
                    *

ग़ज़ल, (२००२), अरुण मिश्र, कोई फूटी किरन माह से
Wah,Wah,Wah Arunji,Kamaal kar diya aapne.Very nice ghazal.
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nandbahu
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«Reply #7 on: April 28, 2013, 09:08:11 PM »
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bahut khoob
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Bhupinder Kaur
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«Reply #8 on: April 28, 2013, 11:42:03 PM »
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ग़ज़ल


कोई फूटी किरन माह से....

-अरुण मिश्र.

इक जरा,   इक जरा,   इक  जरा।
मुस्करा,     मुस्करा,     मुस्करा।।
 
इक तबस्सुम ने, मुझको  किया।
उम्र   भर  के    लिये,  सिरफिरा।।
 
चाँदनी      खिलखिलाती     रही।
रात   भर,   पर   कहाँ   जी  भरा।।
 
मेरे     अरमाँ,     मचलते     हुये।
तेरा     अन्दाज़,     शोख़ी    भरा।।
 
सारी   कोशिश,   धरी   रह  गयी।
रह    गया    इल्म    सारा,   धरा।।
 
जितना   ही    हम   छुपाते   गये।
उतना    खुलता   गया,   माज़रा।।
 
पुतलियाँ    हौले   से   हँस   उठीं।
लब  थिरक  कर,  खिंचे  हैं  जरा।।
 
कोई     फूटी   किरन,   माह   से।
कोई    झरना,    कहीं   पे    झरा।।
 
काश !  टूटे   कभी  न,   ‘अरुन’।
इन    तिलिस्मात   का,   दायरा।।
                    *

ग़ज़ल, (२००२), अरुण मिश्र, कोई फूटी किरन माह से
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aqsh
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«Reply #9 on: April 29, 2013, 12:34:05 PM »
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bahut pyaari ghazal rahi. padhkar bahut khushi hui. aapko bahut bahut mubarak ho.
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Iftakhar Ahmad
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«Reply #10 on: April 30, 2013, 02:45:28 AM »
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Bahut hi khoob ghazal Arun Jee.
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