ग़ज़ल (कृष्ण सुकुमार)

by Krishna Sukumar on April 30, 2013, 11:48:06 PM
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Krishna Sukumar
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पहुँचना  चाहता है  एक  बालक  जिन  शरारों तक
अभी भी वक़्त है  पहुँचा  है वो  केवल विचारों तक

जहाँ  डूबा हुआ हूँ मैं  वो  दरिया  है  सराबों  का
फ़क़त इक प्यास का आलम ही तारी है किनारों तक

मैं अपने काफ़िले से  फिर बिछड़ कर रह गया पीछे
मुहब्बत!  तेज़ चल,  पहुँचा दे मेरे घुड़सवारों तक

असर  खुद में  करूँ पैदा  मैं फूलों और ख़ुशबू का
मुझे  माहौल  रखना  है  बहारों का   बहारों तक

ग़ज़ल कहता हूँ मैं, अल्फाज़ मुझसे प्यार करते हैं
बिठा कर मुझको कांधों पर  घुमाते हैं सितारों तक

कृष्ण सुकुमार

चेतावनी:
  मेरे द्वारा योइंडिया पर जो भी ग़ज़ल या अन्य रचना पूर्व में पोस्ट की जा चुकी है या भविष्य में पोस्ट की जाएगी, किसी न किसी पत्र-पत्रिका  या पुस्तक संकलन  में पूर्व-प्रकाशित होती है तथा उन सभी के कॉपीराइट्स (सर्वाधिकार) मेरे पास सुरक्षित हैं। अत: बिना मेरी पूर्व-स्वीकृति के मेरी किसी भी ग़ज़ल या अन्य रचना के किसी भी अंश का किसी भी रूप में पुनर्प्रकाशन या नक़ल की अनुमति नहीं है। कृपया कॉपीराइट्स (सर्वाधिकार) का उल्लंघन न करें।
कृष्ण सुकुमार
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aqsh
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«Reply #1 on: May 01, 2013, 12:32:02 AM »
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bahut khoob.... dheron daad...
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suman59
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«Reply #2 on: May 01, 2013, 01:25:42 AM »
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पहुँचना  चाहता है  एक  बालक  जिन  शरारों तक
अभी भी वक़्त है  पहुँचा  है वो  केवल विचारों तक

जहाँ  डूबा हुआ हूँ मैं  वो  दरिया  है  सराबों  का
फ़क़त इक प्यास का आलम ही तारी है किनारों तक

मैं अपने काफ़िले से  फिर बिछड़ कर रह गया पीछे
मुहब्बत!  तेज़ चल,  पहुँचा दे मेरे घुड़सवारों तक

असर  खुद में  करूँ पैदा  मैं फूलों और ख़ुशबू का
मुझे  माहौल  रखना  है  बहारों का   बहारों तक

ग़ज़ल कहता हूँ मैं, अल्फाज़ मुझसे प्यार करते हैं
बिठा कर मुझको कांधों पर  घुमाते हैं सितारों तक

कृष्ण सुकुमार

चेतावनी:
  मेरे द्वारा योइंडिया पर जो भी ग़ज़ल या अन्य रचना पूर्व में पोस्ट की जा चुकी है या भविष्य में पोस्ट की जाएगी, किसी न किसी पत्र-पत्रिका  या पुस्तक संकलन  में पूर्व-प्रकाशित होती है तथा उन सभी के कॉपीराइट्स (सर्वाधिकार) मेरे पास सुरक्षित हैं। अत: बिना मेरी पूर्व-स्वीकृति के मेरी किसी भी ग़ज़ल या अन्य रचना के किसी भी अंश का किसी भी रूप में पुनर्प्रकाशन या नक़ल की अनुमति नहीं है। कृपया कॉपीराइट्स (सर्वाधिकार) का उल्लंघन न करें।
कृष्ण सुकुमार


wah wah bahut umda. bahut daad
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Iftakhar Ahmad
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«Reply #3 on: May 01, 2013, 02:02:17 AM »
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Waah waah waah waah shaandaar ghazal Sukumaar jee, bahut hi khoob, maza aa gaya padh kar.
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Sudhir Ashq
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«Reply #4 on: May 01, 2013, 11:46:41 AM »
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sbechain
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«Reply #5 on: May 01, 2013, 09:49:08 PM »
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पहुँचना  चाहता है  एक  बालक  जिन  शरारों तक
अभी भी वक़्त है  पहुँचा  है वो  केवल विचारों तक

जहाँ  डूबा हुआ हूँ मैं  वो  दरिया  है  सराबों  का
फ़क़त इक प्यास का आलम ही तारी है किनारों तक

मैं अपने काफ़िले से  फिर बिछड़ कर रह गया पीछे
मुहब्बत!  तेज़ चल,  पहुँचा दे मेरे घुड़सवारों तक

असर  खुद में  करूँ पैदा  मैं फूलों और ख़ुशबू का
मुझे  माहौल  रखना  है  बहारों का   बहारों तक

ग़ज़ल कहता हूँ मैं, अल्फाज़ मुझसे प्यार करते हैं
बिठा कर मुझको कांधों पर  घुमाते हैं सितारों तक

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wah wah wah............! ek rau bhi meri taraf se
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sksaini4
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«Reply #6 on: May 03, 2013, 02:32:21 PM »
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ab bhaai aap to daad se pare kee cheez ho aapko kyaa daad doon
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ahujagd
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«Reply #7 on: May 03, 2013, 02:37:10 PM »
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bahut achhe sukumar ji ati sundar gazal, dili daad kubool keejiye
ghanshamdas ahuja
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With a Quick-Reply you can use bulletin board code and smileys as you would in a normal post, but much more conveniently.


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