चली हवा तो रुकी कश्तियां लगीं हिलने............अरुण मिश्र.

by arunmishra on December 30, 2011, 06:20:52 PM
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arunmishra
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ग़ज़ल  

-अरुण मिश्र.

चली हवा तो,  रुकी कश्तियां, लगीं हिलने।  
घटायें फिर से, तेरी यादों की,  लगीं घिरने॥
   
तुम्हारे टाँके  बटन,  औ'  तेरा बुना  स्वेटर।  
बदन पे मेरे,  तेरी उँगलियाँ,  लगीं  फिरने॥
   
हरा  है  हो रहा,  फिर से  शज़र  उमीदों का।  
उदासियों  की  ज़र्द  पत्तियां,  लगीं  गिरने॥
   
समाईं  झील सी  आँखें, जो  मेरी आँखों में।  
हसीन ख़्वाबों की हैं मछलियां लगीं तिरने॥
   
'अरून'  जो अब्र हैं  छाये, तेरे  तसव्वुर  के।  
फुहारें रस की हैं  अ'शआर से, लगीं गिरने॥
                         *
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adil bechain
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«Reply #1 on: December 31, 2011, 09:41:22 AM »
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ग़ज़ल   

-अरुण मिश्र.

चली हवा तो,  रुकी कश्तियां, लगीं हिलने। 
घटायें फिर से, तेरी यादों की,  लगीं घिरने॥
   
तुम्हारे टाँके  बटन,  औ'  तेरा बुना  स्वेटर। 
बदन पे मेरे,  तेरी उँगलियाँ,  लगीं  फिरने॥

   
हरा  है  हो रहा,  फिर से  शज़र  उमीदों का। 
उदासियों  की  ज़र्द  पत्तियां,  लगीं  गिरने॥
   
समाईं  झील सी  आँखें, जो  मेरी आँखों में। 
हसीन ख़्वाबों की हैं मछलियां लगीं तिरने॥
   
'अरून'  जो अब्र हैं  छाये, तेरे  तसव्वुर  के। 
फुहारें रस की हैं  अ'शआर से, लगीं गिरने॥
                         *



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«Reply #2 on: December 31, 2011, 09:53:55 AM »
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bahut khoob srimaan arun ji navvarsh ki shubhkaamnaayen
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mkv
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«Reply #3 on: December 31, 2011, 03:00:16 PM »
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Kya Baat hai..Bahut khoob
Umda peshkash..
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sbechain
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«Reply #4 on: January 08, 2012, 11:04:43 AM »
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ग़ज़ल  

-अरुण मिश्र.

चली हवा तो,  रुकी कश्तियां, लगीं हिलने।  
घटायें फिर से, तेरी यादों की,  लगीं घिरने॥
  
तुम्हारे टाँके  बटन,  औ'  तेरा बुना  स्वेटर।  
बदन पे मेरे,  तेरी उँगलियाँ,  लगीं  फिरने॥
  
हरा  है  हो रहा,  फिर से  शज़र  उमीदों का।  
उदासियों  की  ज़र्द  पत्तियां,  लगीं  गिरने॥

  
समाईं  झील सी  आँखें, जो  मेरी आँखों में।  
हसीन ख़्वाबों की हैं मछलियां लगीं तिरने॥
  
'अरून'  जो अब्र हैं  छाये, तेरे  तसव्वुर  के।  
फुहारें रस की हैं  अ'शआर से, लगीं गिरने॥
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bahut khoob arun ji
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khamosh_aawaaz
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«Reply #5 on: January 10, 2012, 02:01:26 PM »
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ग़ज़ल   

-अरुण मिश्र.

चली हवा तो,  रुकी कश्तियां, लगीं हिलने। 
घटायें फिर से, तेरी यादों की,  लगीं घिरने॥
   
तुम्हारे टाँके  बटन,  औ'  तेरा बुना  स्वेटर। 
बदन पे मेरे,  तेरी उँगलियाँ,  लगीं  फिरने॥
   
हरा  है  हो रहा,  फिर से  शज़र  उमीदों का। 
उदासियों  की  ज़र्द  पत्तियां,  लगीं  गिरने॥
   
समाईं  झील सी  आँखें, जो  मेरी आँखों में। 
हसीन ख़्वाबों की हैं मछलियां लगीं तिरने॥
   
'अरून'  जो अब्र हैं  छाये, तेरे  तसव्वुर  के। 
फुहारें रस की हैं  अ'शआर से, लगीं गिरने॥
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deepika_divya
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«Reply #6 on: January 10, 2012, 02:33:03 PM »
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bahoot Bahoot Khoobsoorat ghzal likhi hai Arun ji.. Bahoot Umda.. Aisa vyateet ho raha hai jaise aisa drishaya aankho ke asaamne ho.. bahoto Khoob

Nysha
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