तेरी चूड़ियों की खनक ज़िन्दगी को सुर देती है,......poet: taasir siddiqui

by Taasir siddiqui on May 16, 2013, 03:08:13 PM
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Taasir siddiqui
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दिनके हंगामे जब सो जाएँ एक ख़याल तेरा जागता है;
सर पे चाँद लहराए तो तेरी यादों का सवेरा जागता है;

दिन की जब आखरी धुप शाम के आँचल से छने ,
एक धुंआ सा उठता है और मंज़र सुन्हेरा जागता है;

शाम ठहरी हुई गालों पर और माथे पे चाँद रहता है,
उसके रुख पर उजाला जुल्फों में अँधेरा जागता है;

तेरी चूड़ियों की खनक ज़िन्दगी को सुर देती है,
तेरे पायल की छमक से मुक़द्दर मेरा जागता है,

सौ गुलशन समाये हुए हैं तेरी शाख-ए-हुस्न पर,
तू बलखाये तो खुशबुओं का फरेरा जागता है;

Shayar: taasir siddiqui
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khujli
Guest
«Reply #1 on: May 16, 2013, 03:33:24 PM »
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दिनके हंगामे जब सो जाएँ एक ख़याल तेरा जागता है;
सर पे चाँद लहराए तो तेरी यादों का सवेरा जागता है;

दिन की जब आखरी धुप शाम के आँचल से छने ,
एक धुंआ सा उठता है और मंज़र सुन्हेरा जागता है;

शाम ठहरी हुई गालों पर और माथे पे चाँद रहता है,
उसके रुख पर उजाला जुल्फों में अँधेरा जागता है;

तेरी चूड़ियों की खनक ज़िन्दगी को सुर देती है,
तेरे पायल की छमक से मुक़द्दर मेरा जागता है,

सौ गुलशन समाये हुए हैं तेरी शाख-ए-हुस्न पर,
तू बलखाये तो खुशबुओं का फरेरा जागता है;

Shayar: taasir siddiqui



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aqsh
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«Reply #2 on: May 16, 2013, 07:29:47 PM »
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bahut khoob taasir siddiqui ji. achcha likhe ho. likhte rahiye. dheron daad.
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Sanjeev kash
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«Reply #3 on: May 16, 2013, 07:32:52 PM »
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Bahut Khub...
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mkv
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«Reply #4 on: May 16, 2013, 11:47:25 PM »
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सौ गुलशन समाये हुए हैं तेरी शाख-ए-हुस्न पर,
तू बलखाये तो खुशबुओं का फरेरा जागता है;

Bahut khoob Taasir jee

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nashwani
Guest
«Reply #5 on: May 16, 2013, 11:59:36 PM »
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दिनके हंगामे जब सो जाएँ एक ख़याल तेरा जागता है;
सर पे चाँद लहराए तो तेरी यादों का सवेरा जागता है;

दिन की जब आखरी धुप शाम के आँचल से छने ,
एक धुंआ सा उठता है और मंज़र सुन्हेरा जागता है;

शाम ठहरी हुई गालों पर और माथे पे चाँद रहता है,
उसके रुख पर उजाला जुल्फों में अँधेरा जागता है;

तेरी चूड़ियों की खनक ज़िन्दगी को सुर देती है,
तेरे पायल की छमक से मुक़द्दर मेरा जागता है,

सौ गुलशन समाये हुए हैं तेरी शाख-ए-हुस्न पर,
तू बलखाये तो खुशबुओं का फरेरा जागता है;

Shayar: taasir siddiqui


bahut achha likha hai taasir bhai..daad qubool kare..happy9
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Advo.RavinderaRavi
Guest
«Reply #6 on: May 17, 2013, 01:27:29 AM »
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Bahut Khoob.
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ghayal_shayar
Guest
«Reply #7 on: May 17, 2013, 02:11:07 PM »
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umda kosish hai saaheb likhte raheN...
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suman59
Guest
«Reply #8 on: May 17, 2013, 02:38:45 PM »
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wah wah  Clapping Smiley Clapping Smiley
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sbechain
Guest
«Reply #9 on: May 19, 2013, 03:41:18 AM »
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दिनके हंगामे जब सो जाएँ एक ख़याल तेरा जागता है;
सर पे चाँद लहराए तो तेरी यादों का सवेरा जागता है;

दिन की जब आखरी धुप शाम के आँचल से छने ,
एक धुंआ सा उठता है और मंज़र सुन्हेरा जागता है;

शाम ठहरी हुई गालों पर और माथे पे चाँद रहता है,
उसके रुख पर उजाला जुल्फों में अँधेरा जागता है;

तेरी चूड़ियों की खनक ज़िन्दगी को सुर देती है,
तेरे पायल की छमक से मुक़द्दर मेरा जागता है,

सौ गुलशन समाये हुए हैं तेरी शाख-ए-हुस्न पर,
तू बलखाये तो खुशबुओं का फरेरा जागता है;

Shayar: taasir siddiqui


wah wah wah.........!
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