देखता हूँ मैं अक्सर गौर से जमाने को.................अरुण मिश्र

by arunmishra on May 08, 2012, 12:57:50 PM
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arunmishra
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ग़ज़ल
 
देखता हूँ मैं अक्सर गौर से जमाने को.........

-अरुण मिश्र  

देखता  हूँ   मैं  अक्सर,  गौर  से   जमाने    को।
हँस  के  दिल लगाने को, फिर  फ़रेब  खाने को॥

दिल पे चोट लगती है, फिर भी दिल मचलता है।
मीठे-मीठे  वादे  को ,  दिलशिकन   बहाने  को॥

इन  नज़र  के तीरों की , माना है  बहुत शोहरत।
मैं ही क्या  मिला  तुझको , तीर  आज़माने को??

देख  इन  शरीफों  को,  किसका मन नहीं मचले?
कीच  में   लिपटने   को,   इत्र   में   नहाने   को॥

इन्तजामे - कुदरत  है,   दाँत   दो  तरह  के   हैं।
ढेर  सारे  खाने  को ,   एक - दो    दिखाने   को॥

पाप   की   बहे   गंगा,   आदमी     खड़ा    नंगा।
हैं  यहाँ  सभी   आतुर ,   डुबकियाँ   लगाने  को॥

आप'अरुन' दुनिया में,किसको समझिये अपना।
शुक्रिया   मगर  कहिये,  इस   यतीमखाने   को॥
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sksaini4
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«Reply #1 on: May 08, 2012, 01:05:01 PM »
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bahut hee behatreen peshkash hazaaron daad
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soudagar
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«Reply #2 on: May 08, 2012, 01:34:54 PM »
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bahut hi behtareen peshkash hai ji ek dum lajawab............dhero daad..


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F.H.SIDDIQUI
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«Reply #3 on: May 08, 2012, 01:41:25 PM »
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Arun ji ,khubsurat ghazal ke liye  tah e dil 
se  mubarakbaad  aur daad. Hasan
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justtauseef
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«Reply #4 on: May 08, 2012, 01:42:35 PM »
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nice!
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Anahita
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«Reply #5 on: May 08, 2012, 03:42:32 PM »
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livingbytheday
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«Reply #6 on: May 09, 2012, 10:29:21 AM »
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beautiful
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adil bechain
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«Reply #7 on: May 09, 2012, 10:47:51 AM »
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ग़ज़ल
 
देखता हूँ मैं अक्सर गौर से जमाने को.........

-अरुण मिश्र   

देखता  हूँ   मैं  अक्सर,  गौर  से   जमाने    को।
हँस  के  दिल लगाने को, फिर  फ़रेब  खाने को॥

दिल पे चोट लगती है, फिर भी दिल मचलता है।
मीठे-मीठे  वादे  को ,  दिलशिकन   बहाने  को॥

इन  नज़र  के तीरों की , माना है  बहुत शोहरत।
मैं ही क्या  मिला  तुझको , तीर  आज़माने को??

देख  इन  शरीफों  को,  किसका मन नहीं मचले?
कीच  में   लिपटने   को,   इत्र   में   नहाने   को॥

इन्तजामे - कुदरत  है,   दाँत   दो  तरह  के   हैं।
ढेर  सारे  खाने  को ,   एक - दो    दिखाने   को॥

पाप   की   बहे   गंगा,   आदमी     खड़ा    नंगा।
हैं  यहाँ  सभी   आतुर ,   डुबकियाँ   लगाने  को॥

आप'अरुन' दुनिया में,किसको समझिये अपना।
शुक्रिया   मगर  कहिये,  इस   यतीमखाने   को॥
                 *


waaaaaaaaaaaaaaaaaaaah
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sbechain
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«Reply #8 on: May 09, 2012, 06:05:48 PM »
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ग़ज़ल
 
देखता हूँ मैं अक्सर गौर से जमाने को.........

-अरुण मिश्र  

देखता  हूँ   मैं  अक्सर,  गौर  से   जमाने    को।
हँस  के  दिल लगाने को, फिर  फ़रेब  खाने को॥

दिल पे चोट लगती है, फिर भी दिल मचलता है।
मीठे-मीठे  वादे  को ,  दिलशिकन   बहाने  को॥

इन  नज़र  के तीरों की , माना है  बहुत शोहरत।
मैं ही क्या  मिला  तुझको , तीर  आज़माने को??

देख  इन  शरीफों  को,  किसका मन नहीं मचले?
कीच  में   लिपटने   को,   इत्र   में   नहाने   को॥

इन्तजामे - कुदरत  है,   दाँत   दो  तरह  के   हैं।
ढेर  सारे  खाने  को ,   एक - दो    दिखाने   को॥

पाप   की   बहे   गंगा,   आदमी     खड़ा    नंगा।
हैं  यहाँ  सभी   आतुर ,   डुबकियाँ   लगाने  को॥

आप'अरुन' दुनिया में,किसको समझिये अपना।
शुक्रिया   मगर  कहिये,  इस   यतीमखाने   को॥
                 *


bahut khoob......!
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