मिरी हर साँस वापिस आ रही है,

by Anaarhi on September 18, 2012, 06:32:28 AM
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Anaarhi
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तुम्हारे इश्क की है इंतिहा क्या,
टलेगी जान लेकर ही बला क्या.

ज़माना ठग लिया बातों से साहब,
ज़बाँ से बांधता है वो हवा क्या.

मिरि ठोकर पे अज़्मत सल्तनत की,
मिरा सर कट गया, कद घट सका क्या.

ख़ुदाई से जिसे फ़ुरसत नहीं है,
वो तक़दीरें सँवारेगा भला क्या.

मढ़ा सोना हो जिसके गुम्बदों पर,
ग़रीबों कि सुनेगा वो भला क्या.

तराशे तो हज़ारो बुत थे तूने,
कोई पत्थर बना उनमें ख़ुदा क्या.

मिरी हर साँस वापिस आ रही है,
"यहाँ से बंद है हर रास्ता क्या."

ज़ुबाँ तालू से क्यों चिपकी हुई है,
ज़मीं को आसमाँ कहना पङा क्या.

तुझे दिखता है बस कानो से अपने,
मिरे बारे में तूने अब सुना क्या.

न आदम जात के जो काम आए,
हुनरमंदी का ऐसी फायदा क्या.

बिकाऊ हो गए ईमान सारे,
बढ़ी बाज़ार में कद्रे वफा क्या.

तू काहे छांनता है राख ग़ाफ़िल,
जला है साथ मिट्टी के भला क्या.

'परम' तुम को तो रोटी की पङी है,
सुनोगे जिन्दगी का फलसफा क्या…

….."परम" २४/०८/२०१२

जहाँ भैंसों से लाठी हों ज़ियादः,
वहाँ सर फूटने के और सिवा क्या.
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sksaini4
Ustaad ae Shayari
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«Reply #1 on: September 18, 2012, 06:36:20 AM »
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waah waah anaarhi saheb kamaal kee peshkash dheron daad
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Ritesh Modi
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«Reply #2 on: September 18, 2012, 06:39:06 AM »
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very very nice....
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khamosh_aawaaz
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«Reply #3 on: September 18, 2012, 11:55:31 AM »
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तुम्हारे इश्क की है इंतिहा क्या,
टलेगी जान लेकर ही बला क्या.

ज़माना ठग लिया बातों से साहब,
ज़बाँ से बांधता है वो हवा क्या.

मिरि ठोकर पे अज़्मत सल्तनत की,
मिरा सर कट गया, कद घट सका क्या.

ख़ुदाई से जिसे फ़ुरसत नहीं है,
वो तक़दीरें सँवारेगा भला क्या.

मढ़ा सोना हो जिसके गुम्बदों पर,
ग़रीबों कि सुनेगा वो भला क्या.

तराशे तो हज़ारो बुत थे तूने,
कोई पत्थर बना उनमें ख़ुदा क्या.

मिरी हर साँस वापिस आ रही है,
"यहाँ से बंद है हर रास्ता क्या."

ज़ुबाँ तालू से क्यों चिपकी हुई है,
ज़मीं को आसमाँ कहना पङा क्या.

तुझे दिखता है बस कानो से अपने,
मिरे बारे में तूने अब सुना क्या.

न आदम जात के जो काम आए,
हुनरमंदी का ऐसी फायदा क्या.

बिकाऊ हो गए ईमान सारे,
बढ़ी बाज़ार में कद्रे वफा क्या.

तू काहे छांनता है राख ग़ाफ़िल,
जला है साथ मिट्टी के भला क्या.

'परम' तुम को तो रोटी की पङी है,
सुनोगे जिन्दगी का फलसफा क्या…

….."परम" २४/०८/२०१२

जहाँ भैंसों से लाठी हों ज़ियादः,
वहाँ सर फूटने के और सिवा क्या.


veriiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiii iiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiii iiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiii iiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiii---------naaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaiceeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeee--1 rau
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suman59
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«Reply #4 on: September 19, 2012, 04:04:05 AM »
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very nice  Thumbs UP
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Anaarhi
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«Reply #5 on: September 20, 2012, 04:04:44 AM »
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waah waah anaarhi saheb kamaal kee peshkash dheron daad
Thanks Dr. Saini Sahab...aap ko khyaal pasand aaye ...mehnat safal huee...
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SARVESH RASTOGI
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«Reply #6 on: September 26, 2012, 10:25:18 AM »
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Bhai waah Anaarhi Saheb, kya khoob kalam chalayee hai-
Madha sona ho jiske gumbadon me
Gharibon ki sunega wo bhala kya
WAAH WAAH
SARVESH RASTOGI
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