मेरी ग़ज़लें

by sksaini4 on July 02, 2011, 04:49:22 PM
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sksaini4
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यूँ  मनचाही  ज़माने  में  कभी    चाहत    नहीं   मिलती |
कभी    सूरत    नहीं मिलती   कभी   सीरत नहीं मिलती ||

सभी   तेरी  तरह   यूँ    बेतकल्लुफ़  तो    नहीं    होते |
सभी    कुछ   सामने  रखने से  भी  इज़्ज़त नहीं  मिलती ||

अजब  दस्तूर  है   हम    काम  की   क़ीमत   लगाते  हैं |
किसी   के काम   की   उसको   कभी उजरत  नहीं मिलती ||
   
जवानी  जी      रही  है   आज खा - खाकर  के  चाऊमिन |  
अगरचे  पेट   तो  भरता   है  पर  ताक़त    नहीं  मिलती ||

अचानक मिल गई    शोहरत तो है     कुछ    दाल में काला |
सदा       ईमानदारों     को    बड़ी  दौलत  नहीं  मिलती ||

संवरने   का  हो  जब     मौक़ा   संवरना उस  घड़ी  अच्छा |
निकल जब  वक़्त  जाता है तो फिर   ज़ीनत   नहीं  मिलती ||

बुलाने  मौत  जब  आई   तो  झट से चल दिये  संग    में |
कहाँ   तो   रोज़   कहते  थे  हमें  फ़ुरसत  नहीं   मिलती ||

ज़माने   की  अदालत   माफ़   कर   देगी    गुनाहों    को |
ख़ुदा  की  उस   अदालत  में   कभी  राहत  नहीं   मिलती ||

                                                                                                डा० सुरेन्द्र सैनी  

मुस्कुराने  की बात  करते   हो |
किस ज़माने  की बात करते हो ?

मौत  के  आप शामियानों  में |
सर  उठाने की बात करते हो ||

आसमाँ  पर  नसीब हो शायद |
आशियाने  की बात करते हो ||

क्यूँ मियाँ आप मेरे का़तिल से ?
दिल लगाने की बात करते हो ||

गूँगे बहरों की आम महफ़िल में |
कुछ सुनाने की  बात करते हो ||

पहले  यादों  पे हो गए क़ाबिज़ |
अब भुलाने की  बात करते हो ||

हम यहाँ आगए ये क्या कम है |
क्यूँ  फंसाने  की बात करते हो ?

मैं  तुम्हें  मान लूं ख़ुदा  कैसे ?
सर कटाने  की बात करते  हो ||

है ये  एहसास-ए-कमतरी शायद |
मुहँ छुपाने  की बात करते  हो ||

आज  ये कौन सी  शरारत   है ?
घर  बुलाने  की  बात करते हो ||

                        डा० सुरेन्द्र सैनी


 दर्दे दिल की  दवा कुछ  नहीं |
उनकी हाँ  के सिवा कुछ नहीं ||

आफ़तें   तोहमतें    ज़हमतें |
और उनसे  मिला कुछ  नहीं ||

किसकी  खायें  क़सम  दोस्तों ?
पास  अपने बचा  कुछ  नहीं ||

मैं   सरे   आम  लूटा   गया |
फिर भी  मैंने कहा कुछ  नहीं ||

अपनी  नज़रों  से जो गिर गया |
इससे बढ़ के  सज़ा कुछ  नहीं ||

                    डा० सुरेन्द्र सैनी



हमारा  हाल  चाल  अच्छा  है |
किसी का  ये ख़याल अच्छा है ||

सभी को  लाजवाब  कर  डाला |
किया उसने   सवाल अच्छा है ||

अभी भी लोग  एसा सोचते  हैं |
तेरा हुस्न-ओ-जमाल अच्छा है ||

पसीना  आ  रहा है पोंछ लीजे |
मियाँ  लेलो रुमाल अच्छा  है ||

दिलों  पे  डांके  डाल लेते हो |
तुम्हारा ये कमाल  अच्छा है ||

                     डा० सुरेन्द्र सैनी


वो  जिसका  क़ायदा  क़ानून सारा  छूट जाता  है |
उसीका घर कईं हिस्सों में इक दिन टूट जाता  है ||

सताती  इस तरह  माँ  बाप को औलाद नालायाक |
सड़क  पर  रोड रोलर जैसे पत्थर  कूट जाता है ||

मिला  है जो नसीबों  से हिफ़ाज़त  से  उसे रखो |
मुक़द्दर  पावँ के छालों सा  अक्सर  फूट जाता है ||

मसीहा   बनके   लोगों  से कराता है  क़दमबोसी |
यकायक वो शराफ़त से सभी  को लूट  जाता  है ||

सियासत मैकशी या इश्क़ का  जिसको लगे चस्का |
फ़लाना  ये  फ़लाना  वो सभी कुछ छूट जाता है ||

                                        डा० सुरेन्द्र सैनी


ख़ुद को समझा तो ख़ुद बुरा निकला |
उसको समझा तो वो  ख़ुदा निकला ||

दिल से   उसको सदा भुलाने का वो |
वो  ग़लत   मेरा  फ़ैसला निकला ||

जिससे    पूछा  कुसूर किसका  है ?
वो    तरफ़दार    उसीका निकला ||

साफ़गोई     गुनाह     है समझा |
जब   ख़तावार    आईना निकला ||

तुझको  पाना  था  पा  लिया होता |
मैं   इरादों  का   खोखला निकला ||

दस्तकें  दी   हैं  मंजिलों  ने  पर |
ये  नसीब अपना  ही बुरा निकला ||

                          डा० सुरेन्द्र सैनी

ज़िन्दगी    की   डगर   देखिये |
हर   क़दम   पे है डर  देखिये ||

कट   गए  कितने सर   देखिये ?
सुर्ख़ियों   में    ख़बर  देखिये ||

ख़स्ता  दीवार -ओ - दर  देखिये |
मेरे   दिल   का  नगर देखिये ||

जीस्त   मेरी    संवर   जायेगी |
आप  इक  पल   इधर  देखिये ||

आप  ही  आप  इस  दिल में हैं |
देखिये    झांक   कर   देखिये ||

                           डा० सुरेन्द्र सैनी

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SURESH SANGWAN
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«Reply #1 on: July 02, 2011, 05:39:49 PM »
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sk saini ji sab ek se badhkar ek hain.bahut achhi aur baar baar padhne aur samajhne layak.
 Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley
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F.H.SIDDIQUI
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«Reply #2 on: July 02, 2011, 06:10:42 PM »
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Bahut khoob,Saini ji.Iss khoobsurat khazaane ke saath kahaa.n thhe abtak?Hasan
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Satish Shukla
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«Reply #3 on: July 03, 2011, 05:35:13 AM »
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Dr Surendra Ji,

Ek se badhkar ek...

Waah waah bahut khoob, Kerala ke temple kee
tarah aapne YO ke members ko bhee aapne ek ton
sona ek saath de diya..

Bahut bahut bahdhayee..aur shubhkaamnaayen..

Satish Shukla 'Raqeeb'

Sa
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khujli
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«Reply #4 on: July 03, 2011, 05:55:02 AM »
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यूँ  मनचाही  ज़माने  में  कभी    चाहत    नहीं   मिलती |
कभी    सूरत    नहीं मिलती   कभी   सीरत नहीं मिलती ||

सभी   तेरी  तरह   यूँ    बेतकल्लुफ़  तो    नहीं    होते |
सभी    कुछ   सामने  रखने से  भी  इज़्ज़त नहीं  मिलती ||

अजब  दस्तूर  है   हम    काम  की   क़ीमत   लगाते  हैं |
किसी   के काम   की   उसको   कभी उजरत  नहीं मिलती ||
   
जवानी  जी      रही  है   आज खा - खाकर  के  चाऊमिन | 
अगरचे  पेट   तो  भरता   है  पर  ताक़त    नहीं  मिलती ||

अचानक मिल गई    शोहरत तो है     कुछ    दाल में काला |
सदा       ईमानदारों     को    बड़ी  दौलत  नहीं  मिलती ||

संवरने   का  हो  जब     मौक़ा   संवरना उस  घड़ी  अच्छा |
निकल जब  वक़्त  जाता है तो फिर   ज़ीनत   नहीं  मिलती ||

बुलाने  मौत  जब  आई   तो  झट से चल दिये  संग    में |
कहाँ   तो   रोज़   कहते  थे  हमें  फ़ुरसत  नहीं   मिलती ||

ज़माने   की  अदालत   माफ़   कर   देगी    गुनाहों    को |
ख़ुदा  की  उस   अदालत  में   कभी  राहत  नहीं   मिलती ||

                                                                                                डा० सुरेन्द्र सैनी 

मुस्कुराने  की बात  करते   हो |
किस ज़माने  की बात करते हो ?

मौत  के  आप शामियानों  में |
सर  उठाने की बात करते हो ||

आसमाँ  पर  नसीब हो शायद |
आशियाने  की बात करते हो ||

क्यूँ मियाँ आप मेरे का़तिल से ?
दिल लगाने की बात करते हो ||

गूँगे बहरों की आम महफ़िल में |
कुछ सुनाने की  बात करते हो ||

पहले  यादों  पे हो गए क़ाबिज़ |
अब भुलाने की  बात करते हो ||

हम यहाँ आगए ये क्या कम है |
क्यूँ  फंसाने  की बात करते हो ?

मैं  तुम्हें  मान लूं ख़ुदा  कैसे ?
सर कटाने  की बात करते  हो ||

है ये  एहसास-ए-कमतरी शायद |
मुहँ छुपाने  की बात करते  हो ||

आज  ये कौन सी  शरारत   है ?
घर  बुलाने  की  बात करते हो ||

                        डा० सुरेन्द्र सैनी


 दर्दे दिल की  दवा कुछ  नहीं |
उनकी हाँ  के सिवा कुछ नहीं ||

आफ़तें   तोहमतें    ज़हमतें |
और उनसे  मिला कुछ  नहीं ||

किसकी  खायें  क़सम  दोस्तों ?
पास  अपने बचा  कुछ  नहीं ||

मैं   सरे   आम  लूटा   गया |
फिर भी  मैंने कहा कुछ  नहीं ||

अपनी  नज़रों  से जो गिर गया |
इससे बढ़ के  सज़ा कुछ  नहीं ||

                    डा० सुरेन्द्र सैनी



हमारा  हाल  चाल  अच्छा  है |
किसी का  ये ख़याल अच्छा है ||

सभी को  लाजवाब  कर  डाला |
किया उसने   सवाल अच्छा है ||

अभी भी लोग  एसा सोचते  हैं |
तेरा हुस्न-ओ-जमाल अच्छा है ||

पसीना  आ  रहा है पोंछ लीजे |
मियाँ  लेलो रुमाल अच्छा  है ||

दिलों  पे  डांके  डाल लेते हो |
तुम्हारा ये कमाल  अच्छा है ||

                     डा० सुरेन्द्र सैनी


वो  जिसका  क़ायदा  क़ानून सारा  छूट जाता  है |
उसीका घर कईं हिस्सों में इक दिन टूट जाता  है ||

सताती  इस तरह  माँ  बाप को औलाद नालायाक |
सड़क  पर  रोड रोलर जैसे पत्थर  कूट जाता है ||

मिला  है जो नसीबों  से हिफ़ाज़त  से  उसे रखो |
मुक़द्दर  पावँ के छालों सा  अक्सर  फूट जाता है ||

मसीहा   बनके   लोगों  से कराता है  क़दमबोसी |
यकायक वो शराफ़त से सभी  को लूट  जाता  है ||

सियासत मैकशी या इश्क़ का  जिसको लगे चस्का |
फ़लाना  ये  फ़लाना  वो सभी कुछ छूट जाता है ||

                                        डा० सुरेन्द्र सैनी


ख़ुद को समझा तो ख़ुद बुरा निकला |
उसको समझा तो वो  ख़ुदा निकला ||

दिल से   उसको सदा भुलाने का वो |
वो  ग़लत   मेरा  फ़ैसला निकला ||

जिससे    पूछा  कुसूर किसका  है ?
वो    तरफ़दार    उसीका निकला ||

साफ़गोई     गुनाह     है समझा |
जब   ख़तावार    आईना निकला ||

तुझको  पाना  था  पा  लिया होता |
मैं   इरादों  का   खोखला निकला ||

दस्तकें  दी   हैं  मंजिलों  ने  पर |
ये  नसीब अपना  ही बुरा निकला ||

                          डा० सुरेन्द्र सैनी

ज़िन्दगी    की   डगर   देखिये |
हर   क़दम   पे है डर  देखिये ||

कट   गए  कितने सर   देखिये ?
सुर्ख़ियों   में    ख़बर  देखिये ||

ख़स्ता  दीवार -ओ - दर  देखिये |
मेरे   दिल   का  नगर देखिये ||

जीस्त   मेरी    संवर   जायेगी |
आप  इक  पल   इधर  देखिये ||

आप  ही  आप  इस  दिल में हैं |
देखिये    झांक   कर   देखिये ||

                           डा० सुरेन्द्र सैनी




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ParwaaZ
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«Reply #5 on: July 03, 2011, 08:24:10 PM »
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Aadaab Janab Saini Sahaab!

Aapka YOINDIA ke mehfil meiN swagat hai... !

Aik se badhkar aik kalaam se aapne mehfil saja di hai.. Usual Smile
Sabhi kalaam daad o mubbarakbad ke mushtahiq hai..


Humari dili daad O mubarakbad kabul kijiye... Usual Smile
Aate rahiye... Likhate rahiye...

Khush O aabaad rahiye..
Khuda Hafez Usual Smile         

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«Reply #6 on: July 04, 2011, 10:40:44 AM »
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मोहब्बतों के साथ शुक्रिया
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«Reply #7 on: February 06, 2012, 04:37:25 AM »
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Suresh ji bahut bahut shukriya
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«Reply #8 on: February 06, 2012, 04:38:14 AM »
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«Reply #9 on: February 06, 2012, 04:47:58 AM »
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«Reply #10 on: February 06, 2012, 04:48:40 AM »
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«Reply #11 on: February 06, 2012, 04:49:24 AM »
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saahill
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«Reply #12 on: February 06, 2012, 05:02:19 AM »
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sir i cant read ur post on mobile
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«Reply #13 on: February 06, 2012, 06:46:32 AM »
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himanshuIITR
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«Reply #14 on: April 30, 2012, 09:30:09 AM »
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waah itnee saari ik saath kamal hai sir ji
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With a Quick-Reply you can use bulletin board code and smileys as you would in a normal post, but much more conveniently.


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