मेरी ग़ज़लें मेरे ख़्वाब

by sksaini4 on July 04, 2011, 06:17:47 AM
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sksaini4
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महफ़िलों  में  आया   जाया  कीजिये |
कुछ    तो लोगों पे  भरोसा कीजिये ||


जानते  हैं    सब   हक़ीक़त   आपकी |
आप    चाहे   लाख़    पर्दा  कीजिये ||


दूसरों    को   कोसना   आसान    है |
ख़ुद  के  बारे  में  भी  सोचा कीजिये ||


देख  फिर  किस  शान से मिलता है वो ?
प्यार   के   जज़्बात   पैदा   कीजिये ||


ख़ारा  पानी  मय   में  जायेगा  बदल |
यूँ   समंदर   में   न देखा  कीजिये ||


                             डा० सुरेन्द्र सैनी


कुछ देखा है ख़ास   तुम्हारी  आँखों में |
हमने  सारी  रात गुज़ारी आँखों   में ||


सारी   क़ायनात   नज़र आ   जायेगी |
देखो तो  इक  बार हमारी  आँखों  में ||


इनका  हो बस काम   सदा राहत देना |
अच्छी  है न  आग दुलारी आँखों  में ||


किस  पंछी  को  आज जुदा होना होगा ?
लेकर  घूमे मौत  शिकारी  आँखों  में ||


धोखा  हम  हर  बार नहीं खा सकतें हैं |
क्यूँ  झोके   रे धूल मदारी  आँखों में ||


                            डा० सुरेन्द्र सैनी  


दौर - ए- वहशत हुआ है शुरू |
खाक़  में  मिल  रही  आबरू ||


ज़ीस्त की  कर  रहा    आरज़ू |
मौत  के होके मैं रू - ब- रू ||


उड़  गईं  इस  क़दर  धज्जियाँ |
कौन   दामन    करेगा    रफ़ू ?


यूँ  तो  दुनिया  में लाखों हसीं |
पर    कहाँ   आपसा   खू़बरू ?


तेरी  नज़रों  में मैं कुछ   नहीं |
मेरी  नज़रों  में इक तू हो तू ||


                          डा० सुरेन्द्र सैनी  




आबले      इक   समंदर   लिए   पावँ   में |
तुझको   ढूंढा   किये    शहर   में  गावँ  में ||


तू    न   पहचाने   मुझको    अलग  बात  है |
और    सब   जानते    हैं   तेरे   गावँ   में ||


जिस  जगह  पर  हुआ   अपना  पहला  मिलन |
इक   कशिश   सी   है  अनजानी  उस ठावँ में ||


उनकी    नज़रें   बदलती   रहीं     इस  तरह |
जैसे   बदले   हैं   मौसम    पहलगावँ    में ||


आज   उसके   वही     लोग   क़ातिल   हुए |
कल  जो  बैठे  थे  उस  पेड़   की   छावँ में ||


लाख़   चाहा     संभलना     मगर    देखिये |
आ   गए   ज़िन्दगी    हम    तेरे  दावँ  में ||


                                  डा० सुरेन्द्र सैनी  


इतना  हमको  दे बता तू  ए  चमन के  बागबाँ |
हर  जगह  लाशें  बिछीं हैं क़ब्र  हम खोदे  कहाँ ?


रहनुमाँ  पत्थर    बने हैं गिर  रही हैं  बिजलियाँ |
ख़ाक़ हमको कर    ही देगीं  आपकी  खामोशियाँ ||


बेवजह  हर  वक़्त  की  ये   छेड़खानी   छोड़  दो |
क्यों  मिटाने  पर तुले   हो   क़ौम का  नामोनिशाँ ?


बात सच कह दी  किसी ने  तो  वो दुश्मन होगया |
जिस ने कर ली  जीहुज़ूरी हो गया वो जाने - जाँ ||


गोश्त   रिश्तेदार   नोचें   ख़ूँ   पिए औलाद   ये |
ज़ुल्म  अपनों  के  सहे  जाती हैं   बूढी  हड्डियाँ ||


                                       डा० सुरेन्द्र सैनी  
                                                               
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khujli
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«Reply #1 on: July 04, 2011, 09:05:45 AM »
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महफ़िलों  में  आया   जाया  कीजिये |
कुछ    तो लोगों पे  भरोसा कीजिये ||


जानते  हैं    सब   हक़ीक़त   आपकी |
आप    चाहे   लाख़    पर्दा  कीजिये ||


दूसरों    को   कोसना   आसान    है |
ख़ुद  के  बारे  में  भी  सोचा कीजिये ||


देख  फिर  किस  शान से मिलता है वो ?
प्यार   के   जज़्बात   पैदा   कीजिये ||


ख़ारा  पानी  मय   में  जायेगा  बदल |
यूँ   समंदर   में   न देखा  कीजिये ||


                             डा० सुरेन्द्र सैनी


कुछ देखा है ख़ास   तुम्हारी  आँखों में |
हमने  सारी  रात गुज़ारी आँखों   में ||


सारी   क़ायनात   नज़र आ   जायेगी |
देखो तो  इक  बार हमारी  आँखों  में ||


इनका  हो बस काम   सदा राहत देना |
अच्छी  है न  आग दुलारी आँखों  में ||


किस  पंछी  को  आज जुदा होना होगा ?
लेकर  घूमे मौत  शिकारी  आँखों  में ||


धोखा  हम  हर  बार नहीं खा सकतें हैं |
क्यूँ  झोके   रे धूल मदारी  आँखों में ||


                            डा० सुरेन्द्र सैनी 


दौर - ए- वहशत हुआ है शुरू |
खाक़  में  मिल  रही  आबरू ||


ज़ीस्त की  कर  रहा    आरज़ू |
मौत  के होके मैं रू - ब- रू ||


उड़  गईं  इस  क़दर  धज्जियाँ |
कौन   दामन    करेगा    रफ़ू ?


यूँ  तो  दुनिया  में लाखों हसीं |
पर    कहाँ   आपसा   खू़बरू ?


तेरी  नज़रों  में मैं कुछ   नहीं |
मेरी  नज़रों  में इक तू हो तू ||


                          डा० सुरेन्द्र सैनी 




आबले      इक   समंदर   लिए   पावँ   में |
तुझको   ढूंढा   किये    शहर   में  गावँ  में ||


तू    न   पहचाने   मुझको    अलग  बात  है |
और    सब   जानते    हैं   तेरे   गावँ   में ||


जिस  जगह  पर  हुआ   अपना  पहला  मिलन |
इक   कशिश   सी   है  अनजानी  उस ठावँ में ||


उनकी    नज़रें   बदलती   रहीं     इस  तरह |
जैसे   बदले   हैं   मौसम    पहलगावँ    में ||


आज   उसके   वही     लोग   क़ातिल   हुए |
कल  जो  बैठे  थे  उस  पेड़   की   छावँ में ||


लाख़   चाहा     संभलना     मगर    देखिये |
आ   गए   ज़िन्दगी    हम    तेरे  दावँ  में ||


                                  डा० सुरेन्द्र सैनी 


इतना  हमको  दे बता तू  ए  चमन के  बागबाँ |
हर  जगह  लाशें  बिछीं हैं क़ब्र  हम खोदे  कहाँ ?


रहनुमाँ  पत्थर    बने हैं गिर  रही हैं  बिजलियाँ |
ख़ाक़ हमको कर    ही देगीं  आपकी  खामोशियाँ ||


बेवजह  हर  वक़्त  की  ये   छेड़खानी   छोड़  दो |
क्यों  मिटाने  पर तुले   हो   क़ौम का  नामोनिशाँ ?


बात सच कह दी  किसी ने  तो  वो दुश्मन होगया |
जिस ने कर ली  जीहुज़ूरी हो गया वो जाने - जाँ ||


गोश्त   रिश्तेदार   नोचें   ख़ूँ   पिए औलाद   ये |
ज़ुल्म  अपनों  के  सहे  जाती हैं   बूढी  हड्डियाँ ||


                                       डा० सुरेन्द्र सैनी 
                                                               



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«Reply #2 on: July 04, 2011, 09:59:50 AM »
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मोहब्बतों के साथ शुक्रिया
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mamta bajpai
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«Reply #3 on: July 04, 2011, 10:00:44 AM »
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Saini jee! aap ko paRhaa ..or mutasir hue baghair naa rah sake.......gazaloN kaa har sher daad kaa mustahiq.....lafzoN par behtareen pakad .....aalaa soch kaa muzaahiraa kartaa ek ek sher............aap ke is sookshmtar deewaan ke liye dheroN daad qubool farmaayeN......
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«Reply #4 on: February 08, 2012, 03:54:42 AM »
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Mamta ji bahut shukriya
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sbechain
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«Reply #5 on: February 11, 2012, 12:11:48 PM »
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महफ़िलों  में  आया   जाया  कीजिये |
कुछ    तो लोगों पे  भरोसा कीजिये ||


जानते  हैं    सब   हक़ीक़त   आपकी |
आप    चाहे   लाख़    पर्दा  कीजिये ||


दूसरों    को   कोसना   आसान    है |
ख़ुद  के  बारे  में  भी  सोचा कीजिये ||


देख  फिर  किस  शान से मिलता है वो ?
प्यार   के   जज़्बात   पैदा   कीजिये ||


ख़ारा  पानी  मय   में  जायेगा  बदल |
यूँ   समंदर   में   न देखा  कीजिये ||


                             डा० सुरेन्द्र सैनी


कुछ देखा है ख़ास   तुम्हारी  आँखों में |
हमने  सारी  रात गुज़ारी आँखों   में ||


सारी   क़ायनात   नज़र आ   जायेगी |
देखो तो  इक  बार हमारी  आँखों  में ||


इनका  हो बस काम   सदा राहत देना |
अच्छी  है न  आग दुलारी आँखों  में ||


किस  पंछी  को  आज जुदा होना होगा ?
लेकर  घूमे मौत  शिकारी  आँखों  में ||


धोखा  हम  हर  बार नहीं खा सकतें हैं |
क्यूँ  झोके   रे धूल मदारी  आँखों में ||


                            डा० सुरेन्द्र सैनी  


दौर - ए- वहशत हुआ है शुरू |
खाक़  में  मिल  रही  आबरू ||


ज़ीस्त की  कर  रहा    आरज़ू |
मौत  के होके मैं रू - ब- रू ||


उड़  गईं  इस  क़दर  धज्जियाँ |
कौन   दामन    करेगा    रफ़ू ?


यूँ  तो  दुनिया  में लाखों हसीं |
पर    कहाँ   आपसा   खू़बरू ?


तेरी  नज़रों  में मैं कुछ   नहीं |
मेरी  नज़रों  में इक तू हो तू ||


                          डा० सुरेन्द्र सैनी  




आबले      इक   समंदर   लिए   पावँ   में |
तुझको   ढूंढा   किये    शहर   में  गावँ  में ||


तू    न   पहचाने   मुझको    अलग  बात  है |
और    सब   जानते    हैं   तेरे   गावँ   में ||


जिस  जगह  पर  हुआ   अपना  पहला  मिलन |
इक   कशिश   सी   है  अनजानी  उस ठावँ में ||


उनकी    नज़रें   बदलती   रहीं     इस  तरह |
जैसे   बदले   हैं   मौसम    पहलगावँ    में ||


आज   उसके   वही     लोग   क़ातिल   हुए |
कल  जो  बैठे  थे  उस  पेड़   की   छावँ में ||


लाख़   चाहा     संभलना     मगर    देखिये |
आ   गए   ज़िन्दगी    हम    तेरे  दावँ  में ||


                                  डा० सुरेन्द्र सैनी  


इतना  हमको  दे बता तू  ए  चमन के  बागबाँ |
हर  जगह  लाशें  बिछीं हैं क़ब्र  हम खोदे  कहाँ ?


रहनुमाँ  पत्थर    बने हैं गिर  रही हैं  बिजलियाँ |
ख़ाक़ हमको कर    ही देगीं  आपकी  खामोशियाँ ||


बेवजह  हर  वक़्त  की  ये   छेड़खानी   छोड़  दो |
क्यों  मिटाने  पर तुले   हो   क़ौम का  नामोनिशाँ ?


बात सच कह दी  किसी ने  तो  वो दुश्मन होगया |
जिस ने कर ली  जीहुज़ूरी हो गया वो जाने - जाँ ||


गोश्त   रिश्तेदार   नोचें   ख़ूँ   पिए औलाद   ये |
ज़ुल्म  अपनों  के  सहे  जाती हैं   बूढी  हड्डियाँ ||


                                       डा० सुरेन्द्र सैनी  
                                                              


      kis kis kalaam ki tarif karoon.
      kiti dafa her sher padhoon.
      itne qeemti ehsaas hain sab mein.
      kise pakdoon kise qaid karoon.



  saini ji simply wonderful


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«Reply #6 on: February 11, 2012, 12:51:23 PM »
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Sheba ji bahut bahut shukriya
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himanshuIITR
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«Reply #7 on: May 03, 2012, 04:13:18 AM »
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 Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley

sir  bahut sare taliyan
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«Reply #8 on: May 03, 2012, 06:08:11 AM »
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thanks himanshu ji
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