यह दौरे जुर्म, 'अबद', कब क़फ़न में लिपटेगा ?

by abdbundeli on April 09, 2016, 12:23:55 PM
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abdbundeli
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तेरा एहसान है : ये गुलशने आबाद भी देख !
औ' जईफी में घिरा दौरे इन्क़लाब भी देख !!

तू बेवफ़ा है, बावफ़ा है, याकि क्या है तू ?
तू अपना हुस्न, मेरा हुस्ने एतमाद भी देख !

आज गुलशन में बहुत गुल हैं, तो काँटे भी हैं ;
नज़र का पर्दा हटा, हुस्ने नौ के बाद भी देख !

सुरूरे मौसमे बहार है अभी जारी ;
आ, खुमारी के साथ बरहमे जमाद भी देख !

कभी ज़िहाद का मानी था ताकते इन्शाँ ;
मौत ही मौत का मंज़र है, यह ज़िहाद भी देख !

खैरमकदम हो मौत का भी उम्र होने पर ;
तिफ्ल में ज़ौके अनासिर का इत्तिहाद भी देख !

दोस्तों में है कत्मे दुश्मनी, वफ़ा है गुनाह ;  
हर तरफ बढ़ रहे क़ज़्फ़ो क़तल फसाद भी देख !

बढ़ रहे रोज़ ब रोज़ वतनकुश जफ़ा के मुरीद ?
क़ौम को खोखला करते वो क़ौमज़ाद भी देख !

यह दौरे जुर्म, 'अबद', कब क़फ़न में लिपटेगा ?
ज़ख़्म से जूझ रही क़ौम ए नाशाद भी देख !  

(हुस्ने एतमाद=किसी पर हद से जियादः विश्वास; बरहमे जमाद=अस्त-व्यस्तता ग्रस्त  
जड़ता; ज़ौके अनासिर का इत्तिहाद=पञ्च तत्वों का एकत्व;
कत्मे दुश्मनी=गुपचुप बैर/शत्रुता; वतनकुश=राष्ट्रद्रोही;
क़ौम ए नाशाद=अस्वस्थ नागरिकता/राष्ट्रत्व    
क़ज़्फ़ो क़तल फसाद=पत्थरबाजी हत्या विप्लव)

- abd bundeli  
     
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«Reply #1 on: April 09, 2016, 08:13:21 PM »
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bahut bahut khoobsurat qalaam hai Bundeli Sahib dheron daad RAU ke saath.
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«Reply #2 on: April 10, 2016, 03:16:26 AM »
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waah waah bahut khoob
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abdbundeli
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«Reply #3 on: April 10, 2016, 06:39:28 AM »
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bahut bahut khoobsurat qalaam hai Bundeli Sahib dheron daad RAU ke saath.
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Shukriyah dost!
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abdbundeli
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«Reply #4 on: April 11, 2016, 09:01:20 AM »
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waah waah bahut khoob

Shukriyah, Rastogi ji!
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«Reply #5 on: April 11, 2016, 10:41:41 AM »
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waah waah wahhh Aur.......Waaaaaahhhhhh, bahot accha...

तेरा एहसान है : ये गुलशने आबाद भी देख !
औ' जईफी में घिरा दौरे इन्क़लाब भी देख !!

तू बेवफ़ा है, बावफ़ा है, याकि क्या है तू ?
तू अपना हुस्न, मेरा हुस्ने एतमाद भी देख !

आज गुलशन में बहुत गुल हैं, तो काँटे भी हैं ;
नज़र का पर्दा हटा, हुस्ने नौ के बाद भी देख !


सुरूरे मौसमे बहार है अभी जारी ;
आ, खुमारी के साथ बरहमे जमाद भी देख !


कभी ज़िहाद का मानी था ताकते इन्शाँ ;
मौत ही मौत का मंज़र है, यह ज़िहाद भी देख !


खैरमकदम हो मौत का भी उम्र होने पर ;
तिफ्ल में ज़ौके अनासिर का इत्तिहाद भी देख !

दोस्तों में है कत्मे दुश्मनी, वफ़ा है गुनाह ; 
हर तरफ बढ़ रहे क़ज़्फ़ो क़तल फसाद भी देख !

बढ़ रहे रोज़ ब रोज़ वतनकुश जफ़ा के मुरीद ?
क़ौम को खोखला करते वो क़ौमज़ाद भी देख !


यह दौरे जुर्म, 'अबद', कब क़फ़न में लिपटेगा ?
ज़ख़्म से जूझ रही क़ौम ए नाशाद भी देख !   

(हुस्ने एतमाद=किसी पर हद से जियादः विश्वास; बरहमे जमाद=अस्त-व्यस्तता ग्रस्त 
जड़ता; ज़ौके अनासिर का इत्तिहाद=पञ्च तत्वों का एकत्व;
कत्मे दुश्मनी=गुपचुप बैर/शत्रुता; वतनकुश=राष्ट्रद्रोही;
क़ौम ए नाशाद=अस्वस्थ नागरिकता/राष्ट्रत्व     
क़ज़्फ़ो क़तल फसाद=पत्थरबाजी हत्या विप्लव)

- abd bundeli   
     

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abdbundeli
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«Reply #6 on: April 11, 2016, 12:35:14 PM »
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waah waah wahhh Aur.......Waaaaaahhhhhh, bahot accha...


Pooja ji, dhher saare dhanyawaad! Aapne gour se padhhaa, aur gahraayi tak gayin!
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