याद आती है अभी तक पहली रात

by Ram Krishan Rastogi on October 25, 2014, 07:15:10 AM
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Ram Krishan Rastogi
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[size=15दोस्तों,अभी कुछ घंटे पहले श्री रविंदर सागर जी की 'वो पहली रात' पढ़ी थी मेरे मन मे भी कुछ उदगार जगे, इस शीर्षक पर मैने भी एक गजल लिख डाली| शायद आपको पसंद आये न आये मै नही जानता पर अपने विचारों से अवश्य अवगत कराए|धन्यवाद


याद है वो पहली रात,हमे अभी तलक
कैसे भूल जाए,उस रात की वो झलक

जब कोई बाते करता है,पहली रात की हमसे
सामने सारे सीन आ जाते,झुकाते ही  पलक

वो सहमी सहमी आई,मेरे सोने के कमरे तक
मै भी सहम गया,जब दरवाजे पर हुई दस्तक

सेज फूलो से ऐसी सजी थी ,जैसे चमन खिला हो
सेज पर बैठते लगा जैसे कोई भवरा करता है भनक

मेरे लबो ने उसके लबो को चूमा इस कदर
जैसे कोई तितली फूलो पर कर रही मटक

मेरी बाहों ने उसकी बाहों को सहारा इस तरह
जैसे कोई भूखा परिंदा निवाला लेता है झटक

उसकी आँखे देख रही थी जैसे कुछ पूछ रही बाते
मै कुछ घबरा सा गया,जैसे मन मे हो कोई खटक

घूँघट उठाया तो, निकला चाँद सा ऐसा चेहरा
जैसे कोई बिजली आसमां मे दिखा रही हो चमक

ऐसी थी रस्तोगी की पहली रात,जब ये याद आती है
सब कुछ भूल जाता हूँ,मगर आ जाती चेहरे पर चमक

आर के रस्तोगी







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Advo.RavinderaRavi
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«Reply #1 on: October 25, 2014, 09:31:24 AM »
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[size=15दोस्तों,अभी कुछ घंटे पहले श्री रविंदर सागर जी की 'वो पहली रात' पढ़ी थी मेरे मन मे भी कुछ उदगार जगे, इस शीर्षक पर मैने भी एक गजल लिख डाली| शायद आपको पसंद आये न आये मै नही जानता पर अपने विचारों से अवश्य अवगत कराए|धन्यवाद

याद है वो पहली रात,हमे अभी तलक
कैसे भूल जाए,उस रात की वो झलक

जब कोई बाते करता है,पहली रात की हमसे
सामने सारे सीन आ जाते,झुकाते ही  पलक

वो सहमी सहमी आई,मेरे सोने के कमरे तक
मै भी सहम गया,जब दरवाजे पर हुई दस्तक

सेज फूलो से ऐसी सजी थी ,जैसे चमन खिला हो
सेज पर बैठते लगा जैसे कोई भवरा करता है भनक

मेरे लबो ने उसके लबो को चूमा इस कदर
जैसे कोई तितली फूलो पर कर रही मटक

मेरी बाहों ने उसकी बाहों को सहारा इस तरह
जैसे कोई भूखा परिंदा निवाला लेता है झटक

उसकी आँखे देख रही थी जैसे कुछ पूछ रही बाते
मै कुछ घबरा सा गया,जैसे मन मे हो कोई खटक

घूँघट उठाया तो, निकला चाँद सा ऐसा चेहरा
जैसे कोई बिजली आसमां मे दिखा रही हो चमक

ऐसी थी रस्तोगी की पहली रात,जब ये याद आती है
सब कुछ भूल जाता हूँ,मगर आ जाती चेहरे पर चमक

आर के रस्तोगी







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भाई राम कृशन रस्तोगी जी,

भाई वाह बहुत ही खूबसूरत अंदाज़ में आपने ज़ज़्बातों को पिरोया है,इस पर एक राउ क़बूल करें आशा है आप यूँही अपनी खूबसूरत रचनाओं से इस गुलशन को महकाते रहेंगे.
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Ram Krishan Rastogi
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«Reply #2 on: October 25, 2014, 10:40:09 AM »
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भाई रवींदर रवि जी आपने मेरी गजल पढ़ी और एक राऊ की इनायत की इसके  लिये मै आपका  दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ |अगर कोई गलती दिखाई दे उसे भी बतलाये  ताकि और सुधार  कर सकू | आपका आर के रस्तोगी



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sksaini4
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«Reply #3 on: October 25, 2014, 12:13:43 PM »
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waaaaaaaah  wwwwwwwwaaaaaaaaaahhhhh  waahh
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amit_prakash_meet
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«Reply #4 on: October 25, 2014, 12:52:15 PM »
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वाह.....

क्या चित्रण किया है आपने.....

बहुत खूब.....

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Ram Krishan Rastogi
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«Reply #5 on: October 25, 2014, 01:14:49 PM »
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अमित जी ,आपके कोम्प्लिमेंट के लिये शुक्रया |मैने तो कुछ भी अपनी तरफ से नही लिखा |केवल आँखों देखा बयाँ किया | आर के रस्तोगी  
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jeet jainam
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«Reply #6 on: October 26, 2014, 04:29:59 PM »
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behtreen peshkash waaaaaahhhhhhhhhh dheroooooooooo daaaaaaaaaddddddd
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Ram Krishan Rastogi
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«Reply #7 on: October 26, 2014, 05:39:44 PM »
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हौसला अफजाई के लिये शुक्रया आर के रस्तोगी
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