सरल सी शायरी

by sksaini4 on July 01, 2011, 10:02:34 AM
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sksaini4
Ustaad ae Shayari
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सख़्त  थोड़ी  ज़ुबाँ  है  तो क्या है ?
आदमी   वो  मगर  काम  का है ||


देर   तक    वो    मुझे  देखता  है |
मेरे    बारे   में   क्या  सोचता  है ?


खोल  कर  माल  देखा  तो नकली |
चिपका   लेबल   बड़े नाम का है ||


झूठ   का   कर   रहा  ये  दिखावा |
सर ज़मीं  तक झुका  कर  मिला है ||


ज़हर  जिसमे  हसद    का  भरा  है |
वो   किसी   को  नहीं   छोड़ता  है ||


साँप   तो    छेड़ने   पर  ही  काटे |
आदमी    हर   समय  काटता  है ||


जान   अटकी   हुई   है   उसी  में |
बेटा   लेकर  के   बाइक  गया  है ||


है   पडौसी   की  आदत  बुरी  ये |
घर  से  निकलो  तभी  टोकता है ||


भूलने की   अजब   उसकी आदत |
नाम  बस  मेरा  ही  भूलता  है ||

                          डा०  सुरेन्द्र सैनी


चाँद  तारों  की   महफ़िल  सजी है |
आ   भी   जाओ  तुम्हारी कमी है ||


चाँद   की    मेज़बानी    में  पीलो |
चांदनी    रात    साक़ी   बनी  है ||


सोचता   है    मुझे   अजनबी    हूँ |
उस  सितमगर  की  ये   दिल्लगी है ||


उनसे   उनकी   शिकायत  तो कर  दी |
या   ख़ुदा  क्या   अजब   बेख़ुदी  है ||


बाँट   दो   सब   को   आकर  उजाले |
देखिये    हर   तरफ    तीरगी    है ||


जी   रहा   हूँ  मैं   फज़्ले  ख़ुदा  पर |
कुछ   दुआओं   ने   इमदाद  की है ||


झूठ    किसने    उड़ा  दी  ख़बर ये ?
मैंने  कहनी   ग़ज़ल   छोड़   दी है ||


                          डा० सुरेन्द्र सैनी


बेबसी    बेकली      बेकसी      है |
क्या   इसी  को   कहूँ ? जिंदगी  है ||


आ  गया  हूँ  मैं  ये  किस जगह पर |
हर    कोई    दीखता   अजनबी  है ||


ठीक   से   घर   अमीरों  के  बैठो |
इनका  सोफा  बड़ा    कीमती   है ||


आँख   उससे   मिलाना सम्भल  के |
वो    नज़र   का बड़ा  पारखी  है ||


मैंने   बेटी   को  दी  है  लियाक़त |
पर  पडोसी  ने  बस  कार  दी  है ||


मेरी   क़श्ती   को    देखा    उभरते |
मौज   फिर    आके  टकरा  गई है ||


वासना  है   हवस   और   वहशत |
नाम  इस  का  ही बस आशक़ी है ||


                       डा० सुरेन्द्र सैनी


आजकल  लोगों  में  अपना  हो  रहा  चर्चा   बहुत |
लोग  दानिशमंद हैं या  फिर मैं  ही हूँ अच्छा बहुत ||


दिल  लगाकर  आपसे  मैं  मुश्किलों में   पड़ गया |
लोग  कहते  हैं  कि  अब मैं  उड़  रहा ऊँचा बहुत ||


मेरे  नग़में   मेरे  छोटे  पन  में  दब  के  रह  गए |
वो रिसालों   में छपा  क्या उसका था    रुतबा बहुत ?


अब ज़रा  सख़्ती  दिखाने   का  सही  पल   आगया |
सामने  उनके  किया  हमने   अरे    सजदा  बहुत ||


हैं  नहीं  यूँ  हर  किसी  से  ठीक  यें   नज़दीकियाँ |
फ़ासला   भी   बीच  में  रक्खा  करो  थोड़ा  बहुत ||


तेरे  मेरे  तेरे  बीच  में  बस  एक  यही तो फर्क है |
मैं  तुझे  चाहा  बहुत  पर  तू  ने दिल तोडा बहुत ||


                                    डा० सुरेन्द्र सैनी


मुठ्ठी   में  कोई   आग   छुपा  कर  तो  देखिये |
दिल  में  किसी  दिलबर को  बसा  कर तो देखिये ||


हमने  पिए  हैं  अश्क़   तो   पी  लेगे  ज़हर  भी |
हाथों  से  अपने   आप  पिला  कर   तो  देखिये ||


आ   जायेगा   दातों    में   पसीना   ज़नाब   के |
बिगड़े  हुए  दिलबर  को  मना  कर   तो  देखिये ||


उम्मीद  का  दामन   कभी     छोडूगां   मैं  नहीं |
चट्टान  से  जिगर   को  हिला  कर  तो देखिये ||


गठरी  गु़नाह   की  कर  तो ली  तैयार  आपने |
कितना  है  इसमें  बोझ    उठा कर तो देखिये ?


                                डा० सुरेन्द्र सैनी




किस   तरफ    से   इशारे   हुए |
आप   दुश्मन    हमारे      हुए ||


मुझको      देकर     फ़रेब-ए-वफ़ा |
फूल    भी    तो    शरारे    हुए ||


छोड़ दी   जिसने   शर्म -ओ -हया |
उसके     रौशन   सितारे    हुए ||


ज़ीस्त   क्या   है  पता  तब  चला |
मौत    के   जब   नज़ारे    हुए ||


है   सियासत   में    इतना  मज़ा |
सारे     रिश्तें    किनारे     हुए ||


                                                         डा० सुरेन्द्र सैनी


जो रौनक - ए - महफ़िल थी   वो  जिस  पल चली गई |
उस   पल   से    क़ायनात   की  हलचल  चली  गई ||


जाहिद    हुए     सरकार   में    शामिल   तो  देखिये |
हम    मैकशों    के   हाथ   से   बोतल   चली  गई ||


ढेरों    इनआम    मिल     गए सय्याद    को    मगर |
इंसाफ़     मांगती     हुई     बुलबुल      चली   गई ||


ग्रंथों   में   छापी   जा   रही    कौवों     की  कावं-कावं |
गुमनाम     कूकती     हुई    कोयल    चली      गई ||


शाम - ओ- सहर    सिसक   रहीं   रोती    रही   शफ़क़ |
देकर    जिन्हें    उदासियाँ   वो     कल   चली    गई ||


                                          डा० सुरेन्द्र सैनी


एक   था  वो   हमारा  ज़माना |
एक  है  ये  तुम्हारा   ज़माना ||


पार    हद  सब   किये जा रहा है |
ज़ुर्म  की   आज   सारा  ज़माना ||


मुफ़लिसी  में  हुआ क्या वो पैदा |
मुफ़लिसी  में गुज़ारा    ज़माना ||


उसको   सूली  चढ़ाया   गया  है |
जिस किसी ने   सुधारा  ज़माना ||


इसको   देखोगे  जैसी   नज़र  से |
देगा   वैसा   नज़ारा     ज़माना ||


आपकी    मुस्कुराहट  पे   करदूं |
मैं  निछावर  ये  सारा  ज़माना ||


क्या  कभी   वो घडी  आ सकेगी |
ज़मज़मासंज   हो सारा   ज़माना ||




ज़मज़मासंज -- गीत गाता हुआ


                                                         डा० सुरेन्द्र सैनी


वादे     लेकर     के     सारे    बेकार   के |
दर   से    झोली    भर   लाये  सरकार  के ||      


मुफ़लिस  घर   का   खा़विन्द  तो   मजबूर है |
कैसे   बेग़म   को   दे  दो  पल   प्यार  के ||


कैसे - कैसे   लीडर   चुन    कर  भेजे    हैं |
वोटर   शायद    चूक  गए   इस   बार  के ||


होटल  जाने    पर     आमादा    बच्चों  को |
मैंने   समझाया    दो    थप्पड़   मार   के ||


मस्ज़िद   कोई   टूटी  है  इस    पार    यदि |
मंदिर   भी    तो    टूटें   हैं  उस  पार  के ||


ख़ुद का  हाल - ए - दिल   कहना  है नादानी |
घर  पे   जब  पहुंचे  हो    इक  बीमार  के ||


चारागर  ने    फल   खाना    बतलाया    है |
पर   क्या  हैं  अब  अच्छे  फल   बाज़ार के ||


                                                                        डा० सुरेन्द्र सैनी


ज़ख़्म   कितने   खा  चुके  उनको  गिनाते  जाइए ?
और    अपने   हाल    पे  आँसूं  बहाते   जाइए ||


जाते - जाते  इक   ग़ज़ल   हमको सुनाते  जाइए |
जिंदगी का  सच   ज़रा   सबको   बताते  जाइए ||


आज  की  तहज़ीब  है बस रास्ता मिलने  के  बाद |
रहबरों के नक़्श - ए -पाँ ख़ुद ही  मिटाते  जाइए ||


इक न  इक  दिन  आपकी  सरकार बन ही जायेगी |
वोटरों   को   बस   ज़रा   दारु   पिलाते जाइए ||


याद   क्या   कोई   करेगा     आपकी   क़ुर्बानियाँ ?
आप तो  बस  सर  झुकाकर  सर   कटाते  जाइए ||


कान   में   डाले   रुई   सरकार   बैठी   है  यहाँ |
बीन   अपनी   भैंस   के   आगे   बजाते  जाइए ||


                                                                              डा० सुरेन्द्र सैनी


अपने अख़लाक़ से  जुदा होकर |
क्या  मिलेगा  तुझे बड़ा होकर ?


आदमीयत न  पास  है जिसके |
पुजना  चाहे  वही ख़ुदा होकर ||


ख़ूब  इनआम  है वफ़ा  का ये |
सब से मैं रह गया बुरा होकर ||


चोट  खाए  हुओं  पे हँसता  है |
तू भी  तो देख आशना  होकर ||


रोज़  की  वारदात क़ातिल की |
रह गई एक सिलसिला होकर ||


                                                        डा० सुरेन्द्र सैनी
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raajaindra
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«Reply #1 on: July 01, 2011, 12:05:03 PM »
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sbechain
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«Reply #2 on: October 09, 2011, 08:16:56 AM »
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सख़्त  थोड़ी  ज़ुबाँ  है  तो क्या है ?
आदमी   वो  मगर  काम  का है ||


देर   तक    वो    मुझे  देखता  है |
मेरे    बारे   में   क्या  सोचता  है ?


खोल  कर  माल  देखा  तो नकली |
चिपका   लेबल   बड़े नाम का है ||


झूठ   का   कर   रहा  ये  दिखावा |
सर ज़मीं  तक झुका  कर  मिला है ||


ज़हर  जिसमे  हसद    का  भरा  है |
वो   किसी   को  नहीं   छोड़ता  है ||


साँप   तो    छेड़ने   पर  ही  काटे |
आदमी    हर   समय  काटता  है ||


जान   अटकी   हुई   है   उसी  में |
बेटा   लेकर  के   बाइक  गया  है ||


है   पडौसी   की  आदत  बुरी  ये |
घर  से  निकलो  तभी  टोकता है ||


भूलने की   अजब   उसकी आदत |
नाम  बस  मेरा  ही  भूलता  है ||

                          डा०  सुरेन्द्र सैनी


चाँद  तारों  की   महफ़िल  सजी है |
आ   भी   जाओ  तुम्हारी कमी है ||


चाँद   की    मेज़बानी    में  पीलो |
चांदनी    रात    साक़ी   बनी  है ||


सोचता   है    मुझे   अजनबी    हूँ |
उस  सितमगर  की  ये   दिल्लगी है ||


उनसे   उनकी   शिकायत  तो कर  दी |
या   ख़ुदा  क्या   अजब   बेख़ुदी  है ||


बाँट   दो   सब   को   आकर  उजाले |
देखिये    हर   तरफ    तीरगी    है ||


जी   रहा   हूँ  मैं   फज़्ले  ख़ुदा  पर |
कुछ   दुआओं   ने   इमदाद  की है ||


झूठ    किसने    उड़ा  दी  ख़बर ये ?
मैंने  कहनी   ग़ज़ल   छोड़   दी है ||


                          डा० सुरेन्द्र सैनी


बेबसी    बेकली      बेकसी      है |
क्या   इसी  को   कहूँ ? जिंदगी  है ||


आ  गया  हूँ  मैं  ये  किस जगह पर |
हर    कोई    दीखता   अजनबी  है ||


ठीक   से   घर   अमीरों  के  बैठो |
इनका  सोफा  बड़ा    कीमती   है ||



आँख   उससे   मिलाना सम्भल  के |
वो    नज़र   का बड़ा  पारखी  है ||



मैंने   बेटी   को  दी  है  लियाक़त |
पर  पडोसी  ने  बस  कार  दी  है ||



मेरी   क़श्ती   को    देखा    उभरते |
मौज   फिर    आके  टकरा  गई है ||
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वासना  है   हवस   और   वहशत |
नाम  इस  का  ही बस आशक़ी है ||


                       डा० सुरेन्द्र सैनी


आजकल  लोगों  में  अपना  हो  रहा  चर्चा   बहुत |
लोग  दानिशमंद हैं या  फिर मैं  ही हूँ अच्छा बहुत || Laughing hard Laughing hard Laughing hard Laughing hard Laughing hard Laughing hard Laughing hard


दिल  लगाकर  आपसे  मैं  मुश्किलों में   पड़ गया |
लोग  कहते  हैं  कि  अब मैं  उड़  रहा ऊँचा बहुत ||


मेरे  नग़में   मेरे  छोटे  पन  में  दब  के  रह  गए |
वो रिसालों   में छपा  क्या उसका था    रुतबा बहुत ?


अब ज़रा  सख़्ती  दिखाने   का  सही  पल   आगया |
सामने  उनके  किया  हमने   अरे    सजदा  बहुत ||


हैं  नहीं  यूँ  हर  किसी  से  ठीक  यें   नज़दीकियाँ |
फ़ासला   भी   बीच  में  रक्खा  करो  थोड़ा  बहुत ||
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तेरे  मेरे  तेरे  बीच  में  बस  एक  यही तो फर्क है |
मैं  तुझे  चाहा  बहुत  पर  तू  ने दिल तोडा बहुत ||


                                    डा० सुरेन्द्र सैनी


मुठ्ठी   में  कोई   आग   छुपा  कर  तो  देखिये |
दिल  में  किसी  दिलबर को  बसा  कर तो देखिये ||
drunken_smilie


हमने  पिए  हैं  अश्क़   तो   पी  लेगे  ज़हर  भी |
हाथों  से  अपने   आप  पिला  कर   तो  देखिये ||


आ   जायेगा   दातों    में   पसीना   ज़नाब   के |
बिगड़े  हुए  दिलबर  को  मना  कर   तो  देखिये ||
Laughing hard Laughing hard Laughing hard Laughing hard Laughing hard


उम्मीद  का  दामन   कभी     छोडूगां   मैं  नहीं |
चट्टान  से  जिगर   को  हिला  कर  तो देखिये ||


गठरी  गु़नाह   की  कर  तो ली  तैयार  आपने |
कितना  है  इसमें  बोझ    उठा कर तो देखिये ?



                                डा० सुरेन्द्र सैनी




किस   तरफ    से   इशारे   हुए |
आप   दुश्मन    हमारे      हुए ||


मुझको      देकर     फ़रेब-ए-वफ़ा |
फूल    भी    तो    शरारे    हुए ||


छोड़ दी   जिसने   शर्म -ओ -हया |
उसके     रौशन   सितारे    हुए ||
Thumbs UP


ज़ीस्त   क्या   है  पता  तब  चला |
मौत    के   जब   नज़ारे    हुए ||


है   सियासत   में    इतना  मज़ा |
सारे     रिश्तें    किनारे     हुए ||


                                                         डा० सुरेन्द्र सैनी


जो रौनक - ए - महफ़िल थी   वो  जिस  पल चली गई |
उस   पल   से    क़ायनात   की  हलचल  चली  गई ||


जाहिद    हुए     सरकार   में    शामिल   तो  देखिये |
हम    मैकशों    के   हाथ   से   बोतल   चली  गई ||
Laughing hard Laughing hard Laughing hard Laughing hard Laughing hard


ढेरों    इनआम    मिल     गए सय्याद    को    मगर |
इंसाफ़     मांगती     हुई     बुलबुल      चली   गई ||


ग्रंथों   में   छापी   जा   रही    कौवों     की  कावं-कावं |
गुमनाम     कूकती     हुई    कोयल    चली      गई ||


शाम - ओ- सहर    सिसक   रहीं   रोती    रही   शफ़क़ |
देकर    जिन्हें    उदासियाँ   वो     कल   चली    गई ||


                                          डा० सुरेन्द्र सैनी


एक   था  वो   हमारा  ज़माना |
एक  है  ये  तुम्हारा   ज़माना ||


पार    हद  सब   किये जा रहा है |
ज़ुर्म  की   आज   सारा  ज़माना ||


मुफ़लिसी  में  हुआ क्या वो पैदा |
मुफ़लिसी  में गुज़ारा    ज़माना ||


उसको   सूली  चढ़ाया   गया  है |
जिस किसी ने   सुधारा  ज़माना ||


इसको   देखोगे  जैसी   नज़र  से |
देगा   वैसा   नज़ारा     ज़माना ||


आपकी    मुस्कुराहट  पे   करदूं |
मैं  निछावर  ये  सारा  ज़माना ||


क्या  कभी   वो घडी  आ सकेगी |
ज़मज़मासंज   हो सारा   ज़माना ||




ज़मज़मासंज -- गीत गाता हुआ


                                                         डा० सुरेन्द्र सैनी


वादे     लेकर     के     सारे    बेकार   के |
दर   से    झोली    भर   लाये  सरकार  के ||     


मुफ़लिस  घर   का   खा़विन्द  तो   मजबूर है |
कैसे   बेग़म   को   दे  दो  पल   प्यार  के ||


कैसे - कैसे   लीडर   चुन    कर  भेजे    हैं |
वोटर   शायद    चूक  गए   इस   बार  के ||


होटल  जाने    पर     आमादा    बच्चों  को |
मैंने   समझाया    दो    थप्पड़   मार   के ||


मस्ज़िद   कोई   टूटी  है  इस    पार    यदि |
मंदिर   भी    तो    टूटें   हैं  उस  पार  के ||


ख़ुद का  हाल - ए - दिल   कहना  है नादानी |
घर  पे   जब  पहुंचे  हो    इक  बीमार  के ||


चारागर  ने    फल   खाना    बतलाया    है |
पर   क्या  हैं  अब  अच्छे  फल   बाज़ार के ||


                                                                        डा० सुरेन्द्र सैनी


ज़ख़्म   कितने   खा  चुके  उनको  गिनाते  जाइए ?
और    अपने   हाल    पे  आँसूं  बहाते   जाइए ||


जाते - जाते  इक   ग़ज़ल   हमको सुनाते  जाइए |
जिंदगी का  सच   ज़रा   सबको   बताते  जाइए ||


आज  की  तहज़ीब  है बस रास्ता मिलने  के  बाद |
रहबरों के नक़्श - ए -पाँ ख़ुद ही  मिटाते  जाइए ||


इक न  इक  दिन  आपकी  सरकार बन ही जायेगी |
वोटरों   को   बस   ज़रा   दारु   पिलाते जाइए ||


याद   क्या   कोई   करेगा     आपकी   क़ुर्बानियाँ ?
आप तो  बस  सर  झुकाकर  सर   कटाते  जाइए ||


कान   में   डाले   रुई   सरकार   बैठी   है  यहाँ |
बीन   अपनी   भैंस   के   आगे   बजाते  जाइए ||


                                                                              डा० सुरेन्द्र सैनी


अपने अख़लाक़ से  जुदा होकर |
क्या  मिलेगा  तुझे बड़ा होकर ?


आदमीयत न  पास  है जिसके |
पुजना  चाहे  वही ख़ुदा होकर ||


ख़ूब  इनआम  है वफ़ा  का ये |
सब से मैं रह गया बुरा होकर ||


चोट  खाए  हुओं  पे हँसता  है |
तू भी  तो देख आशना  होकर ||


रोज़  की  वारदात क़ातिल की |
रह गई एक सिलसिला होकर ||


                                                        डा० सुरेन्द्र सैनी

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«Reply #3 on: October 21, 2011, 06:28:33 PM »
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ALFAAS HAI INMEI BAHUT KAM
SHAYERI MEI HAI MAGER DUM
सख़्त  थोड़ी  ज़ुबाँ  है  तो क्या है ?
आदमी   वो  मगर  काम  का है ||


देर   तक    वो    मुझे  देखता  है |
मेरे    बारे   में   क्या  सोचता  है ?


खोल  कर  माल  देखा  तो नकली |
चिपका   लेबल   बड़े नाम का है ||


झूठ   का   कर   रहा  ये  दिखावा |
सर ज़मीं  तक झुका  कर  मिला है ||


ज़हर  जिसमे  हसद    का  भरा  है |
वो   किसी   को  नहीं   छोड़ता  है ||


साँप   तो    छेड़ने   पर  ही  काटे |
आदमी    हर   समय  काटता  है ||


जान   अटकी   हुई   है   उसी  में |
बेटा   लेकर  के   बाइक  गया  है ||


है   पडौसी   की  आदत  बुरी  ये |
घर  से  निकलो  तभी  टोकता है ||


भूलने की   अजब   उसकी आदत |
नाम  बस  मेरा  ही  भूलता  है ||

                          डा०  सुरेन्द्र सैनी


चाँद  तारों  की   महफ़िल  सजी है |
आ   भी   जाओ  तुम्हारी कमी है ||


चाँद   की    मेज़बानी    में  पीलो |
चांदनी    रात    साक़ी   बनी  है ||


सोचता   है    मुझे   अजनबी    हूँ |
उस  सितमगर  की  ये   दिल्लगी है ||


उनसे   उनकी   शिकायत  तो कर  दी |
या   ख़ुदा  क्या   अजब   बेख़ुदी  है ||


बाँट   दो   सब   को   आकर  उजाले |
देखिये    हर   तरफ    तीरगी    है ||


जी   रहा   हूँ  मैं   फज़्ले  ख़ुदा  पर |
कुछ   दुआओं   ने   इमदाद  की है ||


झूठ    किसने    उड़ा  दी  ख़बर ये ?
मैंने  कहनी   ग़ज़ल   छोड़   दी है ||


                          डा० सुरेन्द्र सैनी


बेबसी    बेकली      बेकसी      है |
क्या   इसी  को   कहूँ ? जिंदगी  है ||


आ  गया  हूँ  मैं  ये  किस जगह पर |
हर    कोई    दीखता   अजनबी  है ||


ठीक   से   घर   अमीरों  के  बैठो |
इनका  सोफा  बड़ा    कीमती   है ||


आँख   उससे   मिलाना सम्भल  के |
वो    नज़र   का बड़ा  पारखी  है ||


मैंने   बेटी   को  दी  है  लियाक़त |
पर  पडोसी  ने  बस  कार  दी  है ||


मेरी   क़श्ती   को    देखा    उभरते |
मौज   फिर    आके  टकरा  गई है ||


वासना  है   हवस   और   वहशत |
नाम  इस  का  ही बस आशक़ी है ||


                       डा० सुरेन्द्र सैनी


आजकल  लोगों  में  अपना  हो  रहा  चर्चा   बहुत |
लोग  दानिशमंद हैं या  फिर मैं  ही हूँ अच्छा बहुत ||


दिल  लगाकर  आपसे  मैं  मुश्किलों में   पड़ गया |
लोग  कहते  हैं  कि  अब मैं  उड़  रहा ऊँचा बहुत ||


मेरे  नग़में   मेरे  छोटे  पन  में  दब  के  रह  गए |
वो रिसालों   में छपा  क्या उसका था    रुतबा बहुत ?


अब ज़रा  सख़्ती  दिखाने   का  सही  पल   आगया |
सामने  उनके  किया  हमने   अरे    सजदा  बहुत ||


हैं  नहीं  यूँ  हर  किसी  से  ठीक  यें   नज़दीकियाँ |
फ़ासला   भी   बीच  में  रक्खा  करो  थोड़ा  बहुत ||


तेरे  मेरे  तेरे  बीच  में  बस  एक  यही तो फर्क है |
मैं  तुझे  चाहा  बहुत  पर  तू  ने दिल तोडा बहुत ||


                                    डा० सुरेन्द्र सैनी


मुठ्ठी   में  कोई   आग   छुपा  कर  तो  देखिये |
दिल  में  किसी  दिलबर को  बसा  कर तो देखिये ||


हमने  पिए  हैं  अश्क़   तो   पी  लेगे  ज़हर  भी |
हाथों  से  अपने   आप  पिला  कर   तो  देखिये ||


आ   जायेगा   दातों    में   पसीना   ज़नाब   के |
बिगड़े  हुए  दिलबर  को  मना  कर   तो  देखिये ||


उम्मीद  का  दामन   कभी     छोडूगां   मैं  नहीं |
चट्टान  से  जिगर   को  हिला  कर  तो देखिये ||


गठरी  गु़नाह   की  कर  तो ली  तैयार  आपने |
कितना  है  इसमें  बोझ    उठा कर तो देखिये ?


                                डा० सुरेन्द्र सैनी




किस   तरफ    से   इशारे   हुए |
आप   दुश्मन    हमारे      हुए ||


मुझको      देकर     फ़रेब-ए-वफ़ा |
फूल    भी    तो    शरारे    हुए ||


छोड़ दी   जिसने   शर्म -ओ -हया |
उसके     रौशन   सितारे    हुए ||


ज़ीस्त   क्या   है  पता  तब  चला |
मौत    के   जब   नज़ारे    हुए ||


है   सियासत   में    इतना  मज़ा |
सारे     रिश्तें    किनारे     हुए ||


                                                         डा० सुरेन्द्र सैनी


जो रौनक - ए - महफ़िल थी   वो  जिस  पल चली गई |
उस   पल   से    क़ायनात   की  हलचल  चली  गई ||


जाहिद    हुए     सरकार   में    शामिल   तो  देखिये |
हम    मैकशों    के   हाथ   से   बोतल   चली  गई ||


ढेरों    इनआम    मिल     गए सय्याद    को    मगर |
इंसाफ़     मांगती     हुई     बुलबुल      चली   गई ||


ग्रंथों   में   छापी   जा   रही    कौवों     की  कावं-कावं |
गुमनाम     कूकती     हुई    कोयल    चली      गई ||


शाम - ओ- सहर    सिसक   रहीं   रोती    रही   शफ़क़ |
देकर    जिन्हें    उदासियाँ   वो     कल   चली    गई ||


                                          डा० सुरेन्द्र सैनी


एक   था  वो   हमारा  ज़माना |
एक  है  ये  तुम्हारा   ज़माना ||


पार    हद  सब   किये जा रहा है |
ज़ुर्म  की   आज   सारा  ज़माना ||


मुफ़लिसी  में  हुआ क्या वो पैदा |
मुफ़लिसी  में गुज़ारा    ज़माना ||


उसको   सूली  चढ़ाया   गया  है |
जिस किसी ने   सुधारा  ज़माना ||


इसको   देखोगे  जैसी   नज़र  से |
देगा   वैसा   नज़ारा     ज़माना ||


आपकी    मुस्कुराहट  पे   करदूं |
मैं  निछावर  ये  सारा  ज़माना ||


क्या  कभी   वो घडी  आ सकेगी |
ज़मज़मासंज   हो सारा   ज़माना ||




ज़मज़मासंज -- गीत गाता हुआ


                                                         डा० सुरेन्द्र सैनी


वादे     लेकर     के     सारे    बेकार   के |
दर   से    झोली    भर   लाये  सरकार  के ||      


मुफ़लिस  घर   का   खा़विन्द  तो   मजबूर है |
कैसे   बेग़म   को   दे  दो  पल   प्यार  के ||


कैसे - कैसे   लीडर   चुन    कर  भेजे    हैं |
वोटर   शायद    चूक  गए   इस   बार  के ||


होटल  जाने    पर     आमादा    बच्चों  को |
मैंने   समझाया    दो    थप्पड़   मार   के ||


मस्ज़िद   कोई   टूटी  है  इस    पार    यदि |
मंदिर   भी    तो    टूटें   हैं  उस  पार  के ||


ख़ुद का  हाल - ए - दिल   कहना  है नादानी |
घर  पे   जब  पहुंचे  हो    इक  बीमार  के ||


चारागर  ने    फल   खाना    बतलाया    है |
पर   क्या  हैं  अब  अच्छे  फल   बाज़ार के ||


                                                                        डा० सुरेन्द्र सैनी


ज़ख़्म   कितने   खा  चुके  उनको  गिनाते  जाइए ?
और    अपने   हाल    पे  आँसूं  बहाते   जाइए ||


जाते - जाते  इक   ग़ज़ल   हमको सुनाते  जाइए |
जिंदगी का  सच   ज़रा   सबको   बताते  जाइए ||


आज  की  तहज़ीब  है बस रास्ता मिलने  के  बाद |
रहबरों के नक़्श - ए -पाँ ख़ुद ही  मिटाते  जाइए ||


इक न  इक  दिन  आपकी  सरकार बन ही जायेगी |
वोटरों   को   बस   ज़रा   दारु   पिलाते जाइए ||


याद   क्या   कोई   करेगा     आपकी   क़ुर्बानियाँ ?
आप तो  बस  सर  झुकाकर  सर   कटाते  जाइए ||


कान   में   डाले   रुई   सरकार   बैठी   है  यहाँ |
बीन   अपनी   भैंस   के   आगे   बजाते  जाइए ||


                                                                              डा० सुरेन्द्र सैनी


अपने अख़लाक़ से  जुदा होकर |
क्या  मिलेगा  तुझे बड़ा होकर ?


आदमीयत न  पास  है जिसके |
पुजना  चाहे  वही ख़ुदा होकर ||


ख़ूब  इनआम  है वफ़ा  का ये |
सब से मैं रह गया बुरा होकर ||


चोट  खाए  हुओं  पे हँसता  है |
तू भी  तो देख आशना  होकर ||


रोज़  की  वारदात क़ातिल की |
रह गई एक सिलसिला होकर ||


                                                        डा० सुरेन्द्र सैनी
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«Reply #4 on: February 05, 2012, 10:08:49 AM »
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«Reply #5 on: February 05, 2012, 10:11:17 AM »
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सख़्त  थोड़ी  ज़ुबाँ  है  तो क्या है ?
आदमी   वो  मगर  काम  का है ||


देर   तक    वो    मुझे  देखता  है |
मेरे    बारे   में   क्या  सोचता  है ?


खोल  कर  माल  देखा  तो नकली |
चिपका   लेबल   बड़े नाम का है ||


झूठ   का   कर   रहा  ये  दिखावा |
सर ज़मीं  तक झुका  कर  मिला है ||


ज़हर  जिसमे  हसद    का  भरा  है |
वो   किसी   को  नहीं   छोड़ता  है ||


साँप   तो    छेड़ने   पर  ही  काटे |
आदमी    हर   समय  काटता  है ||


जान   अटकी   हुई   है   उसी  में |
बेटा   लेकर  के   बाइक  गया  है ||


है   पडौसी   की  आदत  बुरी  ये |
घर  से  निकलो  तभी  टोकता है ||


भूलने की   अजब   उसकी आदत |
नाम  बस  मेरा  ही  भूलता  है ||

                          डा०  सुरेन्द्र सैनी


चाँद  तारों  की   महफ़िल  सजी है |
आ   भी   जाओ  तुम्हारी कमी है ||


चाँद   की    मेज़बानी    में  पीलो |
चांदनी    रात    साक़ी   बनी  है ||


सोचता   है    मुझे   अजनबी    हूँ |
उस  सितमगर  की  ये   दिल्लगी है ||


उनसे   उनकी   शिकायत  तो कर  दी |
या   ख़ुदा  क्या   अजब   बेख़ुदी  है ||


बाँट   दो   सब   को   आकर  उजाले |
देखिये    हर   तरफ    तीरगी    है ||


जी   रहा   हूँ  मैं   फज़्ले  ख़ुदा  पर |
कुछ   दुआओं   ने   इमदाद  की है ||


झूठ    किसने    उड़ा  दी  ख़बर ये ?
मैंने  कहनी   ग़ज़ल   छोड़   दी है ||


                          डा० सुरेन्द्र सैनी


बेबसी    बेकली      बेकसी      है |
क्या   इसी  को   कहूँ ? जिंदगी  है ||


आ  गया  हूँ  मैं  ये  किस जगह पर |
हर    कोई    दीखता   अजनबी  है ||


ठीक   से   घर   अमीरों  के  बैठो |
इनका  सोफा  बड़ा    कीमती   है ||


आँख   उससे   मिलाना सम्भल  के |
वो    नज़र   का बड़ा  पारखी  है ||


मैंने   बेटी   को  दी  है  लियाक़त |
पर  पडोसी  ने  बस  कार  दी  है ||


मेरी   क़श्ती   को    देखा    उभरते |
मौज   फिर    आके  टकरा  गई है ||


वासना  है   हवस   और   वहशत |
नाम  इस  का  ही बस आशक़ी है ||


                       डा० सुरेन्द्र सैनी


आजकल  लोगों  में  अपना  हो  रहा  चर्चा   बहुत |
लोग  दानिशमंद हैं या  फिर मैं  ही हूँ अच्छा बहुत ||


दिल  लगाकर  आपसे  मैं  मुश्किलों में   पड़ गया |
लोग  कहते  हैं  कि  अब मैं  उड़  रहा ऊँचा बहुत ||


मेरे  नग़में   मेरे  छोटे  पन  में  दब  के  रह  गए |
वो रिसालों   में छपा  क्या उसका था    रुतबा बहुत ?


अब ज़रा  सख़्ती  दिखाने   का  सही  पल   आगया |
सामने  उनके  किया  हमने   अरे    सजदा  बहुत ||


हैं  नहीं  यूँ  हर  किसी  से  ठीक  यें   नज़दीकियाँ |
फ़ासला   भी   बीच  में  रक्खा  करो  थोड़ा  बहुत ||


तेरे  मेरे  तेरे  बीच  में  बस  एक  यही तो फर्क है |
मैं  तुझे  चाहा  बहुत  पर  तू  ने दिल तोडा बहुत ||


                                    डा० सुरेन्द्र सैनी


मुठ्ठी   में  कोई   आग   छुपा  कर  तो  देखिये |
दिल  में  किसी  दिलबर को  बसा  कर तो देखिये ||


हमने  पिए  हैं  अश्क़   तो   पी  लेगे  ज़हर  भी |
हाथों  से  अपने   आप  पिला  कर   तो  देखिये ||


आ   जायेगा   दातों    में   पसीना   ज़नाब   के |
बिगड़े  हुए  दिलबर  को  मना  कर   तो  देखिये ||


उम्मीद  का  दामन   कभी     छोडूगां   मैं  नहीं |
चट्टान  से  जिगर   को  हिला  कर  तो देखिये ||


गठरी  गु़नाह   की  कर  तो ली  तैयार  आपने |
कितना  है  इसमें  बोझ    उठा कर तो देखिये ?


                                डा० सुरेन्द्र सैनी




किस   तरफ    से   इशारे   हुए |
आप   दुश्मन    हमारे      हुए ||


मुझको      देकर     फ़रेब-ए-वफ़ा |
फूल    भी    तो    शरारे    हुए ||


छोड़ दी   जिसने   शर्म -ओ -हया |
उसके     रौशन   सितारे    हुए ||


ज़ीस्त   क्या   है  पता  तब  चला |
मौत    के   जब   नज़ारे    हुए ||


है   सियासत   में    इतना  मज़ा |
सारे     रिश्तें    किनारे     हुए ||


                                                         डा० सुरेन्द्र सैनी


जो रौनक - ए - महफ़िल थी   वो  जिस  पल चली गई |
उस   पल   से    क़ायनात   की  हलचल  चली  गई ||


जाहिद    हुए     सरकार   में    शामिल   तो  देखिये |
हम    मैकशों    के   हाथ   से   बोतल   चली  गई ||


ढेरों    इनआम    मिल     गए सय्याद    को    मगर |
इंसाफ़     मांगती     हुई     बुलबुल      चली   गई ||


ग्रंथों   में   छापी   जा   रही    कौवों     की  कावं-कावं |
गुमनाम     कूकती     हुई    कोयल    चली      गई ||


शाम - ओ- सहर    सिसक   रहीं   रोती    रही   शफ़क़ |
देकर    जिन्हें    उदासियाँ   वो     कल   चली    गई ||


                                          डा० सुरेन्द्र सैनी


एक   था  वो   हमारा  ज़माना |
एक  है  ये  तुम्हारा   ज़माना ||


पार    हद  सब   किये जा रहा है |
ज़ुर्म  की   आज   सारा  ज़माना ||


मुफ़लिसी  में  हुआ क्या वो पैदा |
मुफ़लिसी  में गुज़ारा    ज़माना ||


उसको   सूली  चढ़ाया   गया  है |
जिस किसी ने   सुधारा  ज़माना ||


इसको   देखोगे  जैसी   नज़र  से |
देगा   वैसा   नज़ारा     ज़माना ||


आपकी    मुस्कुराहट  पे   करदूं |
मैं  निछावर  ये  सारा  ज़माना ||


क्या  कभी   वो घडी  आ सकेगी |
ज़मज़मासंज   हो सारा   ज़माना ||




ज़मज़मासंज -- गीत गाता हुआ


                                                         डा० सुरेन्द्र सैनी


वादे     लेकर     के     सारे    बेकार   के |
दर   से    झोली    भर   लाये  सरकार  के ||     


मुफ़लिस  घर   का   खा़विन्द  तो   मजबूर है |
कैसे   बेग़म   को   दे  दो  पल   प्यार  के ||


कैसे - कैसे   लीडर   चुन    कर  भेजे    हैं |
वोटर   शायद    चूक  गए   इस   बार  के ||


होटल  जाने    पर     आमादा    बच्चों  को |
मैंने   समझाया    दो    थप्पड़   मार   के ||


मस्ज़िद   कोई   टूटी  है  इस    पार    यदि |
मंदिर   भी    तो    टूटें   हैं  उस  पार  के ||


ख़ुद का  हाल - ए - दिल   कहना  है नादानी |
घर  पे   जब  पहुंचे  हो    इक  बीमार  के ||


चारागर  ने    फल   खाना    बतलाया    है |
पर   क्या  हैं  अब  अच्छे  फल   बाज़ार के ||


                                                                        डा० सुरेन्द्र सैनी


ज़ख़्म   कितने   खा  चुके  उनको  गिनाते  जाइए ?
और    अपने   हाल    पे  आँसूं  बहाते   जाइए ||


जाते - जाते  इक   ग़ज़ल   हमको सुनाते  जाइए |
जिंदगी का  सच   ज़रा   सबको   बताते  जाइए ||


आज  की  तहज़ीब  है बस रास्ता मिलने  के  बाद |
रहबरों के नक़्श - ए -पाँ ख़ुद ही  मिटाते  जाइए ||


इक न  इक  दिन  आपकी  सरकार बन ही जायेगी |
वोटरों   को   बस   ज़रा   दारु   पिलाते जाइए ||


याद   क्या   कोई   करेगा     आपकी   क़ुर्बानियाँ ?
आप तो  बस  सर  झुकाकर  सर   कटाते  जाइए ||


कान   में   डाले   रुई   सरकार   बैठी   है  यहाँ |
बीन   अपनी   भैंस   के   आगे   बजाते  जाइए ||


                                                                              डा० सुरेन्द्र सैनी


अपने अख़लाक़ से  जुदा होकर |
क्या  मिलेगा  तुझे बड़ा होकर ?


आदमीयत न  पास  है जिसके |
पुजना  चाहे  वही ख़ुदा होकर ||


ख़ूब  इनआम  है वफ़ा  का ये |
सब से मैं रह गया बुरा होकर ||


चोट  खाए  हुओं  पे हँसता  है |
तू भी  तो देख आशना  होकर ||


रोज़  की  वारदात क़ातिल की |
रह गई एक सिलसिला होकर ||


                                                        डा० सुरेन्द्र सैनी


waaaaaaaaaaaaaaaaaaaah kya khoob collection hai saini sahab ek se badh kar ek.
        inhein alag- alag  likthe to aur bhi achchcha hota
Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause
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mkv
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«Reply #6 on: February 05, 2012, 10:17:16 AM »
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Bahut behatrin Sir
is guldastey me ek se badhkar ek khayaal chipe hai...bahut khoob
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«Reply #7 on: February 06, 2012, 04:22:59 AM »
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«Reply #8 on: February 06, 2012, 04:23:25 AM »
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saahill
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«Reply #9 on: February 06, 2012, 04:28:21 AM »
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saini sir hum parh nahi paye apki yeh post
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«Reply #10 on: February 06, 2012, 06:45:46 AM »
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himanshuIITR
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«Reply #11 on: April 30, 2012, 05:07:54 AM »
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waqai bahut he saral par dil ko chhone wali shayre hai sir
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«Reply #12 on: April 30, 2012, 06:18:16 AM »
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ahujagd
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«Reply #13 on: April 30, 2012, 06:28:43 AM »
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saini sahab,
 bahut hi achhhha laga aapka ye gazal ka ambaar.
 bas aise hi bikherte rahiye hum par apna pyaar.
thanks, with best wishes
ghansham das ahuja
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«Reply #14 on: April 30, 2012, 06:34:37 AM »
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