सख़्त थोड़ी ज़ुबाँ है तो क्या है ?
आदमी वो मगर काम का है ||
देर तक वो मुझे देखता है |
मेरे बारे में क्या सोचता है ?
खोल कर माल देखा तो नकली |
चिपका लेबल बड़े नाम का है ||
झूठ का कर रहा ये दिखावा |
सर ज़मीं तक झुका कर मिला है ||
ज़हर जिसमे हसद का भरा है |
वो किसी को नहीं छोड़ता है ||
साँप तो छेड़ने पर ही काटे |
आदमी हर समय काटता है ||
जान अटकी हुई है उसी में |
बेटा लेकर के बाइक गया है ||
है पडौसी की आदत बुरी ये |
घर से निकलो तभी टोकता है ||
भूलने की अजब उसकी आदत |
नाम बस मेरा ही भूलता है ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
चाँद तारों की महफ़िल सजी है |
आ भी जाओ तुम्हारी कमी है ||
चाँद की मेज़बानी में पीलो |
चांदनी रात साक़ी बनी है ||
सोचता है मुझे अजनबी हूँ |
उस सितमगर की ये दिल्लगी है ||
उनसे उनकी शिकायत तो कर दी |
या ख़ुदा क्या अजब बेख़ुदी है ||
बाँट दो सब को आकर उजाले |
देखिये हर तरफ तीरगी है ||
जी रहा हूँ मैं फज़्ले ख़ुदा पर |
कुछ दुआओं ने इमदाद की है ||
झूठ किसने उड़ा दी ख़बर ये ?
मैंने कहनी ग़ज़ल छोड़ दी है ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
बेबसी बेकली बेकसी है |
क्या इसी को कहूँ ? जिंदगी है ||
आ गया हूँ मैं ये किस जगह पर |
हर कोई दीखता अजनबी है ||
ठीक से घर अमीरों के बैठो |
इनका सोफा बड़ा कीमती है ||आँख उससे मिलाना सम्भल के |
वो नज़र का बड़ा पारखी है ||मैंने बेटी को दी है लियाक़त |
पर पडोसी ने बस कार दी है ||मेरी क़श्ती को देखा उभरते |
मौज फिर आके टकरा गई है || वासना है हवस और वहशत |
नाम इस का ही बस आशक़ी है ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
आजकल लोगों में अपना हो रहा चर्चा बहुत |
लोग दानिशमंद हैं या फिर मैं ही हूँ अच्छा बहुत ||
दिल लगाकर आपसे मैं मुश्किलों में पड़ गया |
लोग कहते हैं कि अब मैं उड़ रहा ऊँचा बहुत ||
मेरे नग़में मेरे छोटे पन में दब के रह गए |
वो रिसालों में छपा क्या उसका था रुतबा बहुत ?
अब ज़रा सख़्ती दिखाने का सही पल आगया |
सामने उनके किया हमने अरे सजदा बहुत ||
हैं नहीं यूँ हर किसी से ठीक यें नज़दीकियाँ |
फ़ासला भी बीच में रक्खा करो थोड़ा बहुत || तेरे मेरे तेरे बीच में बस एक यही तो फर्क है |
मैं तुझे चाहा बहुत पर तू ने दिल तोडा बहुत ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
मुठ्ठी में कोई आग छुपा कर तो देखिये |
दिल में किसी दिलबर को बसा कर तो देखिये || हमने पिए हैं अश्क़ तो पी लेगे ज़हर भी |
हाथों से अपने आप पिला कर तो देखिये ||
आ जायेगा दातों में पसीना ज़नाब के |
बिगड़े हुए दिलबर को मना कर तो देखिये || उम्मीद का दामन कभी छोडूगां मैं नहीं |
चट्टान से जिगर को हिला कर तो देखिये ||
गठरी गु़नाह की कर तो ली तैयार आपने |
कितना है इसमें बोझ उठा कर तो देखिये ? डा० सुरेन्द्र सैनी
किस तरफ से इशारे हुए |
आप दुश्मन हमारे हुए ||
मुझको देकर फ़रेब-ए-वफ़ा |
फूल भी तो शरारे हुए ||
छोड़ दी जिसने शर्म -ओ -हया |
उसके रौशन सितारे हुए || ज़ीस्त क्या है पता तब चला |
मौत के जब नज़ारे हुए ||
है सियासत में इतना मज़ा |
सारे रिश्तें किनारे हुए ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
जो रौनक - ए - महफ़िल थी वो जिस पल चली गई |
उस पल से क़ायनात की हलचल चली गई ||
जाहिद हुए सरकार में शामिल तो देखिये |
हम मैकशों के हाथ से बोतल चली गई || ढेरों इनआम मिल गए सय्याद को मगर |
इंसाफ़ मांगती हुई बुलबुल चली गई ||
ग्रंथों में छापी जा रही कौवों की कावं-कावं |
गुमनाम कूकती हुई कोयल चली गई ||
शाम - ओ- सहर सिसक रहीं रोती रही शफ़क़ |
देकर जिन्हें उदासियाँ वो कल चली गई ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
एक था वो हमारा ज़माना |
एक है ये तुम्हारा ज़माना ||
पार हद सब किये जा रहा है |
ज़ुर्म की आज सारा ज़माना ||
मुफ़लिसी में हुआ क्या वो पैदा |
मुफ़लिसी में गुज़ारा ज़माना ||
उसको सूली चढ़ाया गया है |
जिस किसी ने सुधारा ज़माना ||
इसको देखोगे जैसी नज़र से |
देगा वैसा नज़ारा ज़माना ||
आपकी मुस्कुराहट पे करदूं |
मैं निछावर ये सारा ज़माना ||
क्या कभी वो घडी आ सकेगी |
ज़मज़मासंज हो सारा ज़माना ||
ज़मज़मासंज -- गीत गाता हुआ
डा० सुरेन्द्र सैनी
वादे लेकर के सारे बेकार के |
दर से झोली भर लाये सरकार के ||
मुफ़लिस घर का खा़विन्द तो मजबूर है |
कैसे बेग़म को दे दो पल प्यार के ||
कैसे - कैसे लीडर चुन कर भेजे हैं |
वोटर शायद चूक गए इस बार के ||
होटल जाने पर आमादा बच्चों को |
मैंने समझाया दो थप्पड़ मार के ||
मस्ज़िद कोई टूटी है इस पार यदि |
मंदिर भी तो टूटें हैं उस पार के ||
ख़ुद का हाल - ए - दिल कहना है नादानी |
घर पे जब पहुंचे हो इक बीमार के ||
चारागर ने फल खाना बतलाया है |
पर क्या हैं अब अच्छे फल बाज़ार के ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
ज़ख़्म कितने खा चुके उनको गिनाते जाइए ?
और अपने हाल पे आँसूं बहाते जाइए ||
जाते - जाते इक ग़ज़ल हमको सुनाते जाइए |
जिंदगी का सच ज़रा सबको बताते जाइए ||
आज की तहज़ीब है बस रास्ता मिलने के बाद |
रहबरों के नक़्श - ए -पाँ ख़ुद ही मिटाते जाइए ||
इक न इक दिन आपकी सरकार बन ही जायेगी |
वोटरों को बस ज़रा दारु पिलाते जाइए ||
याद क्या कोई करेगा आपकी क़ुर्बानियाँ ?
आप तो बस सर झुकाकर सर कटाते जाइए ||
कान में डाले रुई सरकार बैठी है यहाँ |
बीन अपनी भैंस के आगे बजाते जाइए ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
अपने अख़लाक़ से जुदा होकर |
क्या मिलेगा तुझे बड़ा होकर ?
आदमीयत न पास है जिसके |
पुजना चाहे वही ख़ुदा होकर ||
ख़ूब इनआम है वफ़ा का ये |
सब से मैं रह गया बुरा होकर ||
चोट खाए हुओं पे हँसता है |
तू भी तो देख आशना होकर ||
रोज़ की वारदात क़ातिल की |
रह गई एक सिलसिला होकर ||
डा० सुरेन्द्र सैनी