adam goundavi, अदम गोंडवी

by bekarar on December 22, 2011, 04:45:55 AM
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‘जो डलहौजी न कर पाया वो ये हुक्मरान कर देंगे,
कमीशन दो तो हिंदुस्तान को नीलाम कर देंगे।
सदन में घूस देकर बच गई कुर्सी तो देखोगे,
अगली योजना में घूसखोरी आम कर देंगे।’ .................................................

महज तनख्वाह से निबटेंगे क्या नखरे लुगाई के,
हजारों रास्ते हैं सिन्हा साहब की कमाई के ।
मिसेज सिन्हा के हाथों में जो बेमौसम खनकते हैं।
पिछली बाढ़ के तोहफे हैं ये कंगन कलाई के। ...............................

ज़ल रहा है देश ये बहला रही है कौम को,
किस कदर अश्लील है संसद की भाषा देखिये।
जो बदल सकती है इस दुनिया के मौसम का मिजाज़
उस युवा पीढ़ी के चेहरे की हताशा देखिये। ...................................... भय भूख गरीबी भ्रष्टाचार और सामाजिक राजनीतिक विसंगतियों कुरीतियों के विरुद्ध उपरोक्त विस्फोटक वाणी में आजीवन शंखनाद करते रहे, जंगी और जुझारू तेवरों वाले जनकवि व शायर अदम गोण्डवी का निधन रविवार को हो गया.
‘फटे कपड़ों में तन ढांके, गुजरता हो जिधर कोई,
समझ लेना वो पगडंडी अदम के गांव जाती है।
सरीखी पंक्तियों से अपना परिचय देने वाले रामनाथ सिंह "अदम गोंडवी" अपने पीछे डेढ़ लाख से अधिक का ऋण एवं लगभग 20 बीघा गिरवी ज़मीन छोड़कर गए हैं. क्या सच कहने-बोलने की सज़ा का कोई इससे भी शर्मनाक उदाहरण संभव है.? गाँव, गरीब और गरीबी के खिलाफ आजीवन अशांत रही आधुनिक कबीर "अदम गोंडवी" की आत्मा को ईश्वर शान्ति प्रदान करे।
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bekarar
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«Reply #1 on: December 22, 2011, 04:47:28 AM »
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भूख के एहसास को शेरो-सुख़न तक ले चलो

भूख के एहसास को शेरो-सुख़न तक ले चलो
या अदब को मुफ़लिसों की अंजुमन तक ले चलो

जो ग़ज़ल माशूक के जलवों से वाक़िफ़ हो गई
उसको अब बेवा के माथे की शिकन तक ले चलो

मुझको नज़्मो-ज़ब्‍त की तालीम देना बाद में
पहले अपनी रहबरी को आचरन तक ले चलो

गंगाजल अब बुर्जुआ तहज़ीब की पहचान है
तिश्नगी को वोदका के आचरन तक ले चलो

ख़ुद को ज़ख्मी कर रहे हैं ग़ैर के धोखे में लोग
इस शहर को रोशनी के बाँकपन तक ले चलो
adam gondavi
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«Reply #2 on: December 22, 2011, 04:50:18 AM »
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वो जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है

वो जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है
उसी के दम से रौनक आपके बँगले में आई है

इधर एक दिन की आमदनी का औसत है चवन्‍नी का
उधर लाखों में गांधी जी के चेलों की कमाई है

कोई भी सिरफिरा धमका के जब चाहे जिना कर ले
हमारा मुल्‍क इस माने में बुधुआ की लुगाई है

रोटी कितनी महँगी है ये वो औरत बताएगी
जिसने जिस्म गिरवी रख के ये क़ीमत चुकाई है

 
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«Reply #3 on: December 22, 2011, 05:45:54 AM »
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‘जो डलहौजी न कर पाया वो ये हुक्मरान कर देंगे,
कमीशन दो तो हिंदुस्तान को नीलाम कर देंगे।
सदन में घूस देकर बच गई कुर्सी तो देखोगे,
अगली योजना में घूसखोरी आम कर देंगे।’ .................................................

महज तनख्वाह से निबटेंगे क्या नखरे लुगाई के,
हजारों रास्ते हैं सिन्हा साहब की कमाई के ।
मिसेज सिन्हा के हाथों में जो बेमौसम खनकते हैं।
पिछली बाढ़ के तोहफे हैं ये कंगन कलाई के। ...............................

ज़ल रहा है देश ये बहला रही है कौम को,
किस कदर अश्लील है संसद की भाषा देखिये।
जो बदल सकती है इस दुनिया के मौसम का मिजाज़
उस युवा पीढ़ी के चेहरे की हताशा देखिये। ...................................... भय भूख गरीबी भ्रष्टाचार और सामाजिक राजनीतिक विसंगतियों कुरीतियों के विरुद्ध उपरोक्त विस्फोटक वाणी में आजीवन शंखनाद करते रहे, जंगी और जुझारू तेवरों वाले जनकवि व शायर अदम गोण्डवी का निधन रविवार को हो गया.
‘फटे कपड़ों में तन ढांके, गुजरता हो जिधर कोई,
समझ लेना वो पगडंडी अदम के गांव जाती है।
सरीखी पंक्तियों से अपना परिचय देने वाले रामनाथ सिंह "अदम गोंडवी" अपने पीछे डेढ़ लाख से अधिक का ऋण एवं लगभग 20 बीघा गिरवी ज़मीन छोड़कर गए हैं. क्या सच कहने-बोलने की सज़ा का कोई इससे भी शर्मनाक उदाहरण संभव है.? गाँव, गरीब और गरीबी के खिलाफ आजीवन अशांत रही आधुनिक कबीर "अदम गोंडवी" की आत्मा को ईश्वर शान्ति प्रदान करे।


bahut afsoos hua . ye ek gambhir mudda hamesha se hai. per neta sarkaar sabhi bharash hain. ek inqalaab ki zarurat hai.. aur INSHAALLAH ZARUR AAYE GA



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mandy1111
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«Reply #4 on: March 23, 2012, 12:15:34 PM »
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wah wah.. kya baat hai
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suman59
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«Reply #5 on: June 27, 2012, 04:14:21 PM »
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भूख के एहसास को शेरो-सुख़न तक ले चलो

भूख के एहसास को शेरो-सुख़न तक ले चलो
या अदब को मुफ़लिसों की अंजुमन तक ले चलो

जो ग़ज़ल माशूक के जलवों से वाक़िफ़ हो गई
उसको अब बेवा के माथे की शिकन तक ले चलो

मुझको नज़्मो-ज़ब्‍त की तालीम देना बाद में
पहले अपनी रहबरी को आचरन तक ले चलो

गंगाजल अब बुर्जुआ तहज़ीब की पहचान है
तिश्नगी को वोदका के आचरन तक ले चलो

ख़ुद को ज़ख्मी कर रहे हैं ग़ैर के धोखे में लोग
इस शहर को रोशनी के बाँकपन तक ले चलो
adam gondavi

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i am speechless. all are excellant. thanks for sharing jee
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