अमरेश गौतम
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अमरेश गौतम'अयुज'
Posts: 37 Member Since: Feb 2016
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मेरी कविता "एकाकी जीवन" और अशोक मंडल जी की कविता का साहित्यिक बगिया समूह का बहुमूल्य समीक्षा---
एकाकी जीवन
रह-रह कर अब याद आ रहा, वो मेरा एकाकी जीवन।
इक कमरे का रहवासी था, महलों सा एहसास लिए। स्वयं पकाना खाना पीना, कभी-कभी उपवास किए। जन जीवन स्वच्छन्द और जँचता था बेवाकी जीवन, वो मेरा एकाकी जीवन।
जब तक रहता कामकाज, तब तक कुछ एहसास नहीं। फुर्सत में फिर सोचा करता, सब कुछ अब तक पास नहीं। रातों को सन्नाटे में डसता था एकाकी जीवन, वो मेरा एकाकी जीवन।
नव जोड़ों का भ्रमण देखकर, सपने कितने पाले थे। प्रणय भाव से दिल पर जैसे, लगते लाखों भाले थे। उम्मीदों के भँवर जाल में, कैसे कटेगा बाकी जीवन, वो मेरा एकाकी जीवन।
भाग दौड़ से भरी जिन्दगी, हाल हुआ यायावर सा। बंद पड़ा बेकार किसी, बिन सिगनल के टावर सा। बिना पिये मदहोश पड़ा,लगता था क्यों साकी जीवन, रह-रह कर अब याद आ रहा,वो मेरा एकाकी जीवन॥
समीक्षा--
साहित्यिक बगिया दैनन्दिनी पर आज दिनांक 27-06-2016 को दो मंझे रचनाकार अमरेश गौतम जी दवारा रचित कविता "एकाकी जीवन" और अशोक मंडल जी दो कविता "दाग", और भूख चांद और रोटी लगायी गयी।
पहली रचना पर अशोक मंडल, शिवम शर्मा, गीता पंडित दीदी, स्नेहांशु तिवारी, प्रकाश सिन्हा सर, स्पर्श चौहान,मनोज चौहान, प्रियंका शर्मा, गीतांजलि शुक्ला, डा गायत्री वर्मा,अभिषेक द्विवेदी ,उपेन्द्र सिंह प्रहलाद श्रीमाली ,सुशीला जोशी प्रेरणा गुप्ता, भावना सिंह विमल चन्द्राकर, नरेश भारती, व कंचन मिश्रा जी ने विचार व्यक्त किये। सबसे पहले अशोक मंडल जी ने कहा कि छात्र जीवन के अहसासों और अरमानों को समेटे यह कविता बहुत अच्छी बन पड़ी है।कई बार दुःख दर्द अंदर के कुछ ऐसे पत्थरों को तोड़ देता है जिससे अंदर एक निर्झर झरना बहने लगता है। दर्द भी जरुरी है। एकाकी जीवन भी जरुरी है कुछ समय के लिए ताकि आत्ममंथन हो सके। नई सोंच आ सके। नए विचार आ सके। दुःख को क्रिएटिव लोग पॉवर हाउस की तरह इस्तेमाल करते हैं। शिवम शर्मा व प्रकाश सिन्हा सर ने कहा कि अमरेश जी की रचना कालेज के दिवसों की याद दिला जाती है। प्रख्यात कवयित्री गीता पंडित जी रचना को बेहतरीन गीत मानती है।स्नेहांशु तिवारी कविता का स्तर बढिया सिद्ध करते हैं।एकाकी जीवन एक ऐसे समय की अनुभूति या फिर स्मरण है जब कवि अकेला जी रहा होता है, विशेषकर अपने यौवन काल मे जब वो छात्र होता है । ये कविता उस समय का तुलनात्मक परिचय है इस समय से जब वो एकेला न होकर अपने परिवार, सगे संबंधियों के साथ जीवन बिता रहा होता है। कविता को पढ़ने के दौरान अल्पकाल के लिए मन कॉलेज या स्कूल की स्मृति मे हिलोरे मारने लगता है और सभी संघर्षपूर्ण बातें ,यौवनकाल की भावनाए मन को छूने लगती है।बहुत सुंदर कविता अमरेश जी, लेकिन कविता मे उस एकाकी जीवन के सभी पहलू शामिल हुए है, ऐसा मुझे प्रतीत नही होता है ,कविता मे कुछ छूट सा गया है ऐसा पढ़ने पर कई बार प्रतीत होता है।एकाकी जीवन सच में ही दूभर होता है,अतीत चाहे कैसा भी हो उसकी स्मृतियाँ हमेशा मधुर होती हैं । अमरेश जी ने कविता में अपने अनुभवों को सुन्दर तरीके से गुंथा है,,,मुश्किल दौर गुज़र ही जाता है । कवि के ह्रदय की टीस दिखाती निम्न पंक्तियाँ दिल को छू-छू जाती हैं :
'बंद पड़ा बेकार किसी बिना सिग्नल के टावर सा ।' मंच की मुख्य एडमिनिस्ट्रेटर प्रियंका शर्मा ने विस्तृत समीक्षा करते हुये कहा कि "अापने अपनी कविता में अपने बीते पलों के एहसासों को बेहद सहज सरल ढंग से सुन्दर शब्दों उकेरने का सार्थक प्रयास किया है, कविता के भाव पाठक वर्ग के ह्रदय पर अपना गहरा प्रभाव डालती हैl" एकाकी जीवन में जहां एक ओर अपने लक्ष्य प्राप्ति की चिन्ता रहती है वही दूसरी ओर एकांत जीवन अंदर अंदर कुछ कमी सा महसूस करता रहता हैl यह कविता केवल अपके जीवन की नहीं बल्कि उन तमाम लोगों के लिये भी है जो इस तरह का जीवन जी रहे है l सार्थक कवि वह होता है जिसके भाव में पाठक अपने भाव को महसूस करता है l गीतांजलि शुक्ला अभिषेक द्विवेदी व गायत्री जी ने अमरेश भाई की कविता को स्तरीय संज्ञा प्रदान की। प्रसिद्ध लेखक व कवि प्रहलाद श्रीमाली ने कहा कि -"अमरेश जी ने एकाकी जीवन का सहज चित्रण करते हुए अकेलेपन की कसक से छुटकारा पाकर एकांत का आनंद पाने की प्रेरणा दी है ।" सुशीला जी गहन दृष्टिकोण से बात को रखती हुये कहती हैं कि "अमरेश जी नेशायद यह कविता आपने अपने उन दिनों में लिखी जब आप न तो एकाकी हैं और न ही जोड़ो में घूमते हुए लोगो की ओर कोई विशेष आकर्षण ही महसूस करते थे । अगर ऐसा होता तो ये अभिव्यक्तियां नही लिखी जाती । एक विद्यार्थी जीवन की मानसिक , शारीरिक और आर्थिक स्तिथितियो से जूझती व्यवस्था का मार्मिक वर्णन से सराबोर है आपकी कविता।युवा अवस्था में उस अल्हड़पन की भी चर्चा है जो उसके लिए बड़ी चाह बनके उभरती है और विवशता में मनके उहापोह में फस कर रह जाता है । उसी अवस्था के मनोविज्ञान की भी चर्चा है जिसमे कभी वह स्वयं को कभी ऊर्जावान महसूस करता है तो कभी एक मात्र टावर के समान । यही वह समय होता है जब एक युवा जरा सा सम्बल मिल जाने पर हद से आगे कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहता है और न मिलने पर टावर की तरह जड़ महसूस करता है ।कविता ऐसे यथार्थ का सामना करती है जो भारत में 98 प्रतिशत विद्यार्थियों की स्थिति का भान कराती है । मंच के संचालक विमल चन्द्राकर ने कहा कि "अमरेश जी की रचना जीवन मे अकेलेपन,स्मृतियों से ठस भरे छात्र जीवन के दुर्दंतम संघर्ष की बेहतरीन रचना है।रचनाकार का अध्ययन के दरम्यान प्रारंभिक संघर्ष,मानस पटल पर उभरी नेकानेक कल्पनाये, प्रेमी युगलों पर भाव संप्रेषण काबिले तारीफ दीखता है।जो रचनाकार की परिपक्व भाषा शैली को दर्शाता है। रचना का शिल्प मंझा हुआ है। आगे जीवन के लिये सपनों उम्मीदों को सच करने की खूबसूरत कवायद दीखती है।" प्रेरणा गुप्ता भी एकाकी जीवन को पढकर छात्र जीवन को याद कर जाती हैं।भावना सिंह ने कहा कि अमरदेश जी की रचना पढने के दौर के समय मन में उठती उमंग आशा निराशा संवेदना (सुख दुख दोनों को कविता शामिल होते देखना) प्रेम अभिव्यक्ति जैसे अनुभव कविता को बेजोड़ बना देते हैं।कविता मन करती है। शाम पांंच बजे के बाद मंच की प्रमुख एडमिन प्रियंका शर्मा ने अशोक मंडल की दो रचनायें लगायी। जिन पर विमल जी,नरेश भारती, सुशीला जोशी, कंचन मिश्र, स्पर्श चौहान व हेमलता यादव जी ने विचार रखे।सभी विद्वजनों का कोटिश: आभार।अशोक मंडल जी रचना पर पहली समीक्षात्मक टिप्पणी विमल चन्द्राकर द्वारा हुई।उन्होने कहा कि- पहली रचना "दाग" मंडल जी "दाग" एक ऐसी रचना है जिसका विषय बहुत संवेदनशील है।प्रेम की अन्तिम परिणति और प्रणय निवेदन पर जमकर निशाना साधा है। कुत्सित निगाहों को पढने की कवायद देखते बनती है। कविता का शिल्प व लय शानदार है।हालांकि कविता बहुत बोल्ड है पर रचना का विषय चिंतन की मांग करता है। दूसरी रचना " भूख, चांद और रोटी बहुत स्तरीय रचना लगी।रोटी के लिये संघर्ष,यातना को बयां करती स्तरीय रचना।नरेश जी ने दोनों रचनाओं को बेहतरीन माना। सुशीला जी ने अपने विचार रखते हुये कहा कि-"मण्डल जी , आपकी कविता दाग और भूख रोटी और चाँद पढ़ी । आपकी कद इतना बड़ा है कि कुछ भी बेबाक कहना धृष्टता होगी । पता नही क्यों , कविता बिखरी बिखरी लग रही है । शायद कोई नयी विधा हो या फिर कोई नई शैली जिसका मुझे ज्ञान नही । एक ही कविता में दाग के कई आयाम विस्मित करते है । दूसरी कविता यथार्थ का आइना है किन्तु दृश्य परिवर्तन इसमें दिखाई दे रहा है ।" कंचन मिश्रा ने विचार दिया कि मंडल जी दोनों कवितायें बढ़िया है। पहली कविता स्त्री अस्मिता को लेकर लिखी गयी है और दूसरी कविता मन को छू गयी। स्पर्श चौहान जी ने कहा कि-"अशोक मंडल जी आपकी कविता "दाग" पढ़ी तो प्रेम - प्रणय की अनोखी अनुभिति हुई। रचना मे जिस स्वछंदता से विचार रखे है वो काबिलेतारीफ है।। अनन्तिम विचार रखते हुये हेमलता यादव जी ने कहा कि- दाग कविता समाज में स्त्री के सच और स्थिति को दर्शाती है।भूख,चांद और रोटी मे बालक के पेट की भूख कविता पर और चांद के सौंदर्य पर भी भारी पड़ती है। मंच पर आप सबके विचारों टिप्पणियों से साहित्यिक बगिया लगातार उन्नति को प्राप्त हो रहा है। सभी सदस्यों का अमरेश गौतम जी व अशोक मंडल जी कविताओं पर स्वछंदता से विचार रखने हेतु कोटिशः आभार व्यक्त करता हूँ। ---विमल चन्द्राकर
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