घातक निर्णय -- by Umrav Jan Sikar

by Umrav Jan Sikar on December 04, 2015, 12:34:17 PM
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Umrav Jan Sikar
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                   " घातक निर्णय "

कई दिनों से मेरा एक दोस्त काफी उदास था,
उसके हाव-भाव और व्यवहार में कुछ बदलाव था।
मैंने उसे पुछा भी लेकिन उसने बताया नहीं,
निजी मामला समझ मैंने भी दबाब बनाया नहीं।
दो रोज बाद मुझसे बोला --
यार एक काम में मेरा थोड़ा सा हाथ बंटावो,
एक मेहमान के लिए किसी होटल में कमरा दिलावो।
मैंने एक परिचित की मदद से
स्टेशन के पास एक कमरा बुक कराया,
शाम हो रही थी इसलिये
दोस्त को वहीं छोड़ मैं वापस चला आया।
देर रात को मोबाइल की घण्टी ने मुझे जगाया,
फोन मेरे दोस्त के घर से आया।
उधर से जो बताया गया, सुनकर मैं भी घबराया,
गांव से एक लड़की भाग गई,
भगाने का काम मेरे दोस्त का बताया।
मुझे लगा कि मेहमान कोई और नहीं
'वो लड़की ही है' मैं मन ही मन बुदबुदाया,
मैं तुरंत उस होटल में आया।
दस्तक देकर दरवाजा खुलवाया
दरवाजा उसी लड़की ने खोला,
दोस्त को नशे में झूमता हुआ पाया।
यह तो कभी शराब पीता ही नहीं था,
आज कैसे पी ली?
बोली - बस यही कमी रह गई थी,
जो आज पूरी कर ली।
मैं उसके पास गया तो बगल में
एक तह किया कागज रखा हुआ था
मैंने उसे उठाकर पढ़ा तो कांप उठा,
दोनों का यह सुसाइड नोट लिखा हुआ था।
इसने शराब ही ली है या जहर वगैरह खाया है,
वह बोली - नहीं, केवल शराब पीकर ही आया है।
मैंने उस नोट को लहराकर कहा -
तुम जो करने जा रहे हो, इस बारे में कुछ सोचा है,
वह मायूस होकर बोली अब सोचने में क्या रखा है।
हम जीते जी मिल नहीं सकते,
और शादी कर नहीं सकते।
किसी किम्मत पर साथ नहीं छोड़ेंगे,
ऐसे नहीं तो फिर मर कर मिलेंगे।
मैंने पूछा यह तो पुख्ता है कि
तुम मर कर मिल लोगे,
अगर मिल भी गये तो,
तुम क्या प्यार कर सकोगे।
'मर कर मिल लोगे' यह तो तुमने सोच लिया,
पर हकीकत इससे जुदा है - मैंने तर्क दिया।
रिश्ते, नाते  और दोस्त, दुश्मन
ये सब शरीर के ही सम्बन्ध है,
देखना, सुनना और बोलना, चलना
ये भी इस शरीर के ही प्रबन्ध है।
जब आत्मा शरीर से निकल जाती है
तो वह कुछ भी देख नहीं पाती है,
न वह आवाज लगा सकती है,
न ही कोई आवाज सुन पाती है।
उनके पास देखने, सुनने, बोलने का
कोई साधन नहीं होता है,
शरीर के बिना आत्मा को
कुछ भी अनुभव नहीं होता है।
लिंग भेद भी शरीर का होता है
आत्मा का कोई लिंग नहीं होता,
न मादा होती है, न नर होता है।
अभी तुम आजादी का रोना रोते हो
फिर अपनी बेबसी पर रोना,
बहुत मंहगा पड़ेगा तुम्हे
इस अनमोल शरीर को खोना।
क्या तुम सच कह रहे हो?
वह बोली या मुझे डरा रहे हो।
मैं बोला - हां, सच्चाई तो यही है,
मौत के बाद अन्धकार के सिवा कुछ नहीं है
बोली क्या करूं, कुछ समझ में नहीं आता है
मैंने बताया जो जज्बातों में बहता है
उसकी बुद्धि का ज्ञान पुंज खत्म हो जाता है।
उस स्थिति में जो फैसला लिया जाता है
वह बहुत ही घातक होता है
जिसका परिणाम काफी भयानक हो जाता है।
तुमने शायद खाना नहीं खाया है
चलो, पहले खाना खा लेते है,
फिर तुम्हे क्या करना है
इस पर विचार करते है।
हमने नीचे आकर खाना खाया
साथ में गपशप भी हो गई,
इस दौरान वह भी ,
काफी हद तक सामान्य हो गई।
फिर मैंने उसे समझाया -
जिससे तुम शादी कर सकती नहीं,
यहां तक कि मिल भी सकती नहीं।
उस प्यार का क्या फायदा,
तुम्हे उस प्यार को छोड़ देना चाहिए,
अपने सुखद भविष्य के लिए
जज्बातों में बहना छोड़ देना चाहिए।
वह बोली - मैं तो मर ही जाऊंगी
उनके बिना जी नहीं पाऊंगी,
जिसके लिए धड़कता है दिल मेरा
उस प्यार को मैं कैसे भूल पाऊंगी।
मैंने कहा - अपने-आप को संभालो
आंखों पर मत भ्रम का पर्दा डालो,
तुम हवा में उड़ना छोड़ कर
हकीकत के धरातल पर नजर डालो।
वरना भविष्य में अन्धेरा छा जाएगा,
बरबादी के सिवा कुछ हाथ नहीं आएगा।
बोली मैं क्या करूं, आप ही बताओ,
अभी ट्रेन पकड़ कर घर चली जाओ।
ऐसे भी तेरा यहां रहना अच्छा नहीं है,
मौत का साया अभी पूरी तरह से हटा नहीं है।
अभी तो तह नशे में है,
लेकिन जब इसे होश आएगा।
फिर वही हालात बनेगा,
खुदकुशी का दबाव बन जाएगा।
मेरा कहना तुम सच मानो,
शरीर के महत्व को पहचानो।
बड़ा घृणित काम है इसे नष्ट करना,
प्रकृति का उपहार है, इसे सहेज कर रखना।
दुनिया में ऐसे कई लोग है जिनका,
सबकुछ लुट गया, भिखारी तक बन गये,
मगर फिर भी मरे नहीं,
जिन्दगी की खातिर हर दर्द सह गये।
मैं चली जाऊंगी पर इसका क्या होगा
उंगली से दोस्त की तरफ संकेत किया,
इसे संभाल लूंगा, मैं यहीं पर हूँ
इस तरह उसे आश्वस्त किया।
तेरे घर वाले काफी परेशान है
किसी बूथ पर जाकर उसे फोन करो,
फिर पहली गाड़ी पकड़ कर,
अपने घर प्रस्थान करो।
दुबारा कभी इससे मिलना मत
हो सके जितनी दूरी बनाओ,
घर वाले रिश्ता तय करे जिसके साथ
अपना प्यार समझ कर अपनाओ।
सुबह जब दोस्त को होश आया,
तो अपने-आपको अकेला पाया।
जब होटल वालों ने मेरे बारे में बताया,
तो चलकर सीधा मेरे पास आया।
उसे घर क्यों भेजा, इस बात पर
उसने काफी विवाद किया,
इन्सान मरने के लिए नहीं होता
मैंने भी उसका विरोध किया।
तुझे मरना था तो मर जाता
क्यों मरने के लिए उसे राजी किया,
इस मुद्दे पर हमारी दोस्ती टूटी
फिर हमने वह शहर भी छोड़ दिया।
समय के साथ-साथ मेरे स्मृति पटल पर
यह घटना धुंधली पड़ती गई,
मगर आज एक अप्रत्याशित घटना घटी
जो अतीत की घटना को जीवन्त कर गई।
बस में काफी भीड़ थी
मैं गैलरी में खड़ा रहने को मजबूर था,
रस्ते में कुछ सवारी उतरी, तब सीट मिली,
मेरा गांव अभी बहुत दूर था।
पहली पंक्ति की सीट से एक बच्ची आई
मेरे हाथ में एक कागज थमाया,
मैंने खोल कर देखा तो
पत्र में यह लिखा हुआ पाया।
"बहुत बहुत शुक्रिया
जो आपने मेरी जान बचाई,
उस दिन आपने ही मुझे
जीने की राह दिखाई।"
सौभाग्य से आज मिल ही गये
मेरा प्रणाम स्वीकार कीजिए,
पत्र लाने वाली मेरी बच्ची है
इसे अपना आशिर्वाद दीजिए।
मैंने अपना हाथ उसके सिर पर रखा
प्यार से बच्ची को दुलारने लगा,
मैं आश्चर्य से कभी खत को
तो कभी बच्ची को निहारने लगा।

   --  ✒ Umrav Jan Sikar
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