मोहब्बत के शहर में..

by subh alone on May 20, 2016, 01:02:15 PM
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subh alone
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दोस्तों आप सब के स्नेह से जो कुछ भी मैं टूटा -फूटा लिख पाया ,उसपर आप सब का जो प्यार मिला उसके लिए मैं आप सभी का आभारी हूँ.. इसी क्रम में 2 साल से अधूरी कविता को पूरी करने का साहस कर पाया , आशा है इस कविता को वैसा ही प्यार मिलेगा जैसे अब तक मिलता आया है ।

    "मोहब्बत के शहर में हूँ अंजाना भला, जाना चाहे कोई न इसे छोड़कर ,
     बांधे डोरी दिलों की दिलों से पिया , हुस्न की है ये कैसी 'जादूगरी '
     मोहब्बत के शहर में हूँ अंजाना भला...
     जब से देखा उसे उस हंसी मोड पर , लट  काली घटाएँ समेटे हुए ..
     उन अदाओं में ऐसा दिखा क्या मुझे , दिन उतरता तो है , साँझ ढलती नहीं ..
     दिन उतरता तो है , साँझ ढलती नहीं ....
     तेरे यौवन का ऐसा सबब मिल गया , प्यास लग आती है, प्यास बुझती नहीं .
     मोहब्बत के शहर में हूँ अंजाना भला...
     आज मौसम भी मुझसे खफा हो गया , हवा भी जो ऐसे मचलती नहीं ,
     तेरे होठों से निकले हंसी लब कभी वो भी जलते रहे मैं तड़पता रहा ....
     ऐसा कैसा मुझे ये शहर मिल गया , हुस्न की ये रियासत है सबसे बड़ी ..
     मोहब्बत के शहर में हूँ अंजाना भला...
        - शुभेन्द्र त्रिपाठी "उन्नाव उ .प्र "
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adil bechain
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«Reply #1 on: May 20, 2016, 01:10:34 PM »
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दोस्तों आप सब के स्नेह से जो कुछ भी मैं टूटा -फूटा लिख पाया ,उसपर आप सब का जो प्यार मिला उसके लिए मैं आप सभी का आभारी हूँ.. इसी क्रम में 2 साल से अधूरी कविता को पूरी करने का साहस कर पाया , आशा है इस कविता को वैसा ही प्यार मिलेगा जैसे अब तक मिलता आया है ।

    "मोहब्बत के शहर में हूँ अंजाना भला, जाना चाहे कोई न इसे छोड़कर ,
     बांधे डोरी दिलों की दिलों से पिया , हुस्न की है ये कैसी 'जादूगरी '
     मोहब्बत के शहर में हूँ अंजाना भला...
     जब से देखा उसे उस हंसी मोड पर , लट  काली घटाएँ समेटे हुए ..
     उन अदाओं में ऐसा दिखा क्या मुझे , दिन उतरता तो है , साँझ ढलती नहीं ..
     दिन उतरता तो है , साँझ ढलती नहीं ....
     तेरे यौवन का ऐसा सबब मिल गया , प्यास लग आती है, प्यास बुझती नहीं .
     मोहब्बत के शहर में हूँ अंजाना भला...
     आज मौसम भी मुझसे खफा हो गया , हवा भी जो ऐसे मचलती नहीं ,
     तेरे होठों से निकले हंसी लब कभी वो भी जलते रहे मैं तड़पता रहा ....
     ऐसा कैसा मुझे ये शहर मिल गया , हुस्न की ये रियासत है सबसे बड़ी ..
     मोहब्बत के शहर में हूँ अंजाना भला...
        - शुभेन्द्र त्रिपाठी "उन्नाव उ .प्र "



achchcha likhaa hai janaab  Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause
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subh alone
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«Reply #2 on: May 20, 2016, 01:15:36 PM »
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आभार ।
ये कविता मैंने संगीतबद्ध की है अगर यहाँ अपनी आवाज को आप सबतक पहुंचाने में मे मदद मिल जाती तो इस कविता का मजा ही कुछ और था , फिर भी बहुत बहुत धन्यवाद
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surindarn
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«Reply #3 on: May 20, 2016, 06:34:46 PM »
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bahut khoob dheron daad.
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