विरह वेदना - by Umrav Jan Sikar

by Umrav Jan Sikar on August 09, 2015, 04:34:50 PM
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Umrav Jan Sikar
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 लगी है कैसी,  ये झड़ी सावन की,
प्यासे यौवन में,  फिर से प्यास जगावन की।
शीतल फुहारों से भड़की, ये विरहा की अगन,
भीगे सारा बदन, तपन भीतर है झुलसावन की॥

सुन रे वन के मोर, तू काहे मचाए शोर,
प्रियतम के बिना मेरा यौवन मारे जोर।
सुन्दर पंखों की छतरी ताने, क्यों नाचे रे प्रेम दीवाने,
विरह वेदना से दुखे, मेरे अंग की पोर-पोर॥

चंदा करे तारों का सिंगार, हंस कर चिढ़ाए बार-बार,
रंग-बिरंगे फूलों से आती, मदमाती खुशबू की बयार।
खग-वृंद मस्ती में झुमे, तितलियां फूलों को चूमे,
सुहाने मौसम में बढ़ी, यौवन की प्यास अपार॥

फूलों का कर रसपान, मतवाले भंवरे डोले।
आम की डाली पर कोयलियां मीठी-मीठी बोले॥

मधुर कुंजन पंछियों का कानों में मिश्री घोले।
मनभावन मस्त बैला में यौवन मारे हिचकोले॥

बार-बार सखी पूछे, तू क्यों बैठी उदास।
सखी, दर्द विरह का तू ना जाने प्रियतम तेरा पास॥

प्यास बुझी धरती की, कण-कण में कोंपल मुस्काय।
फिर भी मेरे लिए सखी, सावन सूखा जाय॥

मन प्यासा मेरा तन प्यासा, अंग-अंग रहा कुम्हलाय।
प्रियतम के बिना सखी, मेरा यौवन वृथा जाय॥

-- Umrav Jan Sikar
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«Reply #1 on: August 09, 2015, 08:38:33 PM »
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«Reply #2 on: August 10, 2015, 03:28:17 AM »
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«Reply #3 on: August 10, 2015, 04:14:56 AM »
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धन्यवाद सर।
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«Reply #4 on: August 10, 2015, 04:15:43 AM »
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धन्यवाद सर।
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«Reply #5 on: August 10, 2015, 06:16:05 AM »
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लगी है कैसी,  ये झड़ी सावन की,
प्यासे यौवन में,  फिर से प्यास जगावन की।
शीतल फुहारों से भड़की, ये विरहा की अगन,
भीगे सारा बदन, तपन भीतर है झुलसावन की॥

सुन रे वन के मोर, तू काहे मचाए शोर,
प्रियतम के बिना मेरा यौवन मारे जोर।
सुन्दर पंखों की छतरी ताने, क्यों झूमे रे प्रेम दीवाने,
विरह वेदना से दुखे, मेरे अंग की पोर-पोर॥

चंदा करे तारों का सिंगार, हंस कर चिढ़ाए बार-बार,
रंग-बिरंगे फूलों से आती, मदमाती खुशबू की बयार।
खग-वृंद मस्ती में झुमे, तितलियां फूलों को चुमे,
सुहाने मौसम में बढ़ी, यौवन की प्यास अपार॥

कलियों का कर रसपान, मतवाले भंवरे डोले।
आम की डाली पर कोयलियां मीठी-मीठी बोले॥

मधुर कुंजन पंछियों का कानों में मिश्री घोले।
मनभावन मस्त बैला में यौवन मारे हिचकोले॥

बार-बार सखी पूछे, तू क्यों बैठी उदास।
दर्द विरह का तू ना जाने प्रियतम तेरा पास॥

प्यास बुझी धरती की, कण-कण में कोंपल मुस्काय।
फिर भी मेरे लिए सखी, सावन सूखा जाय।

मन प्यासा मेरा तन प्यासा, अंग-अंग रहा कुम्हलाय।
प्रियतम के बिना सखी, मेरा यौवन वृथा जाय॥

-- Umrav Jan Sikar

श्री उमराऊ जी,रचना सुंदर है भाव भी अच्छे है पर कही कही शब्दों में करेक्शन की आवश्कयता है जैसे चुमे शब्द में बड़े ऊ की मात्रा लगेगी,दुखे शब्द की जगह "दुखित है" आना चाहिये|अगर दूसरी पंक्ति को इस प्रकार लिखा जाये तो और अच्छा लगेगा और वाक्य का अर्थ और भावर्थ भी पाठको में अच्छी तरह से समझ में आ जाएगा|"फिर से प्यास जगी है यौवन की " कही कही पंक्तियों में खुद में विरोधाभास है|भौरा फूलो का रसपान करता है न कि कलियों का क्योकि कलियों में तो कोई रस ही नहीं होता| विरह की वेदना जब ही होती जब उसका प्रियतम उसके पास नहीं होता | एक तरफ रचना के माध्यम से कह रहे की सावन की इस झड़ी में उसका प्रियतम नहीं है और दूसरी तरफ सखियों के माध्यम से कह रहे कि उसका प्रियतम उसके पास है तब ही वह उदास है यह एक आपस में विरोधावास है|करेक्शन कुछ और भी है|अगर बुरा लगे तो माफ़ करना--राम कृष्ण रस्तोगी  
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«Reply #6 on: August 10, 2015, 08:47:23 AM »
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श्री उमराऊ जी,रचना सुंदर है भाव भी अच्छे है पर कही कही शब्दों में करेक्शन की आवश्कयता है जैसे चुमे शब्द में बड़े ऊ की मात्रा लगेगी,दुखे शब्द की जगह "दुखित है" आना चाहिये|अगर दूसरी पंक्ति को इस प्रकार लिखा जाये तो और अच्छा लगेगा और वाक्य का अर्थ और भावर्थ भी पाठको में अच्छी तरह से समझ में आ जाएगा|"फिर से प्यास जगी है यौवन की " कही कही पंक्तियों में खुद में विरोधाभास है|भौरा फूलो का रसपान करता है न कि कलियों का क्योकि कलियों में तो कोई रस ही नहीं होता| विरह की वेदना जब ही होती जब उसका प्रियतम उसके पास नहीं होता | एक तरफ रचना के माध्यम से कह रहे की सावन की इस झड़ी में उसका प्रियतम नहीं है और दूसरी तरफ सखियों के माध्यम से कह रहे कि उसका प्रियतम उसके पास है तब ही वह उदास है यह एक आपस में विरोधावास है|करेक्शन कुछ और भी है|अगर बुरा लगे तो माफ़ करना--राम कृष्ण रस्तोगी 

सुझाव के लिए धन्यवाद सर।
रचना में कुछ मात्रा व शब्द की त्रुटियां रह गयी थी, उन्हे सही कर लिया है।
आपने एक जगह विरोधाभास की बात कही है वो कुछ इस तरह है कि
 पहली पंक्ति में सखी ने उदासी पर सवाल किया है जबकि दूसरी पंक्ति मे उनके द्वारा सखी को जवाब दिया गया है।

बार-बार सखी पूछे, तू क्यों बैठी उदास।   ( यहां सखी उनसे प्रश्न पूछ रही है।)

दर्द विरह का तू ना जाने, प्रियतम तेरा पास। ( यहां सखी को जवाब दिया है।)

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«Reply #7 on: August 10, 2015, 10:05:49 AM »
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«Reply #8 on: August 10, 2015, 10:30:20 AM »
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«Reply #9 on: August 10, 2015, 10:37:04 AM »
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श्री उमराऊ जी ,दूसरी पंक्ति से पाठको को नहीं पता चलता यह बात किसने कही| अगर इस को इस प्रकार लिखा जाता तो अच्छा होता" सखी,दर्द विरह का तू क्या जाने जब पिया तेरे पास|

आपने बहुत अच्छा सुझाव दिया।
उक्त पंक्ति में यह बदलाव कर दिया है।
सुझाव देने के लिए आपको बहुत बहुत. धन्यवाद सर।
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«Reply #10 on: August 10, 2015, 12:12:13 PM »
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श्री उमराऊ जी,पाठको को दूसरी पंक्ति से पता नहीं चलता ये बात किसने कही | अगर इस प्रकार से लिखा जाता तो और अच्छा लगता "सखी!विरह वेदना तू क्या जाने,जब पिया तेरे पास"
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«Reply #11 on: August 10, 2015, 12:22:21 PM »
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«Reply #12 on: August 10, 2015, 12:25:54 PM »
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