Sar se ganja hai too aur kaanaa hai too chhadd o yaar kee farq paindaa hai ab.
Ghaaagh aashiq badaa hee puraanaa hai too chhadd o yaar kee farq paindaa hai ab.
Uske kooche meN too roz pittaa rahaa kuchh asar tujhpe phir bhee kabhee n huaa.
Aaj tak bhee naheeN haar maanaa hai too chhadd o yaar kee farq paindaa hai ab.
Hai lafangaa bhee too aur luchhaa bhee too ebdaaree kaa betaaj hai baadshaah.
Saaree shaitaaniyoN kaa khazaanaa hai too chhadd o yaar kee farq paindaa hai ab.
Dhoondh letaa hai sab dekh letaa hai sab roshnee ho yaa phir ho andheraa ghanaa.
Ek ulloo ke jaisaa sayaanaa hai too chhadd o yaar kee farq paindaa hai ab.
YooN ander bharee khoob makkaariyaaN too haseenoN kee kartaa hai eyaariyaaN.
Shakl-o-soorat se to soofiyaanaa hai too chhadd o yaar kee farq paindaa hai ab.
Aashnaai raqeeboN se teree rahee aur mujhse bhee nisbat dikhaataa rahaa.
Sab raqeeboN kaa ik aashiyaanaa hai too chhadd o yaar kee farq paindaa hai ab.
Roz kahtaa hai ‘saini’ kee ghazlen buree unkaa padhnaa tujhe jab gawaaraa naheeN.
Phir bhee lagtaa use kaa dewaana hai too chhadd o yaar kee farq paindaa hai ab.
Dr. Surendra Saini
सर से गंजा है तू और काना है तू छड्ड ओ यार की फ़र्क़ पैंदा है अब ।
घाघ आशिक़ बड़ा ही पुराना है तू छड्ड ओ यार की फ़र्क़ पैंदा है अब ॥
मेरे कूचे तू में रोज़ पिटता रहा कुछ असर तुझपे फिर भी कभी न हुआ ।
आज तक भी नहीं हार माना है तू छड्ड ओ यार की फ़र्क़ पैंदा है अब ॥
है लफंगा भी तू और लुच्चा भी तू एबदारी का बेताज है बादशाह ।
सारी शैतानियों का ख़ज़ाना है तू छड्ड तू यार की फ़र्क़ पैंदा है अब ॥
ढूंढ लेता है सब देख लेता है सब रोशनी हो या फिर हो अन्धेरा घना ।
एक उल्लू के जैसा सयाना है तू छड्ड ओ यार की फ़र्क़ पैंदा है अब ॥
यूँ अंदर भरी खूब मक्कारियां तू हसीनों की करता हैं एयारियाँ ।
शक्ल-ओ-सूरत से तो सूफ़ियाना है तू छड्ड ओ यार की फ़र्क़ पैंदा है अब ॥
आशनाई रक़ीबों से तेरी रही और मुझसे भी निस्बत दिखाता रहा ।
सब रक़ीबों का इक आशियाना है तू छड्ड ओ यार की फ़र्क़ पैंदा है अब ॥
रोज़ कहता है 'सैनी ' की ग़ज़लें बुरी उनका पढ़ना भी तुझको गवारा नहीं ।
फिर भी लगता उसी का दीवाना है तू छड्ड ओ यार की फ़र्क़ पैंदा है अब ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
यूँ अंदर भरी खूब मक्कारियां तू हसीनों की करता हैं एयारियाँ ।
शक्ल-ओ-सूरत से तो सूफ़ियाना है तू छड्ड तू यार की फ़र्क़ पैंदा है अब ॥
आशनाई रक़ीबों से तेरी रही और मुझसे भी निस्बत दिखाता रहा ।
सब रक़ीबों का इक आशियाना है तू छड्ड तू यार की फ़र्क़ पैंदा है अब ॥
रोज़ कहता है 'सैनी ' की ग़ज़लें बुरी उनका पढ़ना भी तुझको गवारा नहीं ।
फिर भी लगता उसी का दीवाना है तू छड्ड तू यार की फ़र्क़ पैंदा है अब ॥
Bahut khoob Sir
panjabi tadka..wah wah wah
English aur hindi version me kuch typing mistakes hain..please unhe correct kar deejiyega.