ताजमहल ...

by usha rajesh on February 19, 2012, 04:39:53 PM
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usha rajesh
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अपने पति को बैठे देखकर यूँ उदास
कारण जानने का मैंने किया प्रयास
पूछा-
लगता है दुश्मनो की तबियत कुछ नासाज़ है
प्रिय, क्यों ये चेहरा मुर्झाया है, क्या बात है?
तुम्हारी उदासी देख कर वही पुरानी घटना याद आ रही है
क्यों वही बेबसी फिर तुम्हारी आँखों में आज छा रही है ?

तुम बैठे थे कुछ उदास, कुछ बेचैन
शून्य में जैसे खोये - खोये थे नैन
बहुत कुरेदने पर तुमने लब खोले थे
तोल–तोल कर फिर ये बोल बोले थे –
मैं भी किसी को दिल मैं सजाना चाहता हूँ
मुहब्बत का एक ताजमहल बनाना चाहता हूँ
मगर दिल की बात दिल ही में रही जाती है
मुझे मेरी मुमताज़ कहीं नज़र नहीं आती है

तब तुम्हारे दिल का दर्द मेरे दिल ने सहा था
मैंने कुछ शरमाते, कुछ सकुचाते हुए कहा था
ज़रा गौर से देखो, दूर - दूर जहाँ तक नज़र जाती है
मुमताज़ तो पास ही है, तुम्हें क्यों नज़र नहीं आती है?  
करम खुदा का, मेरी ये सूरत तुम्हें भा गयी थी
तुम्हारे चेहरे की रौनक फिर वापस आ गयी थी  

देखती हूँ साल दर साल तुम्हारी रंगत कम हुई जाती है
और, तुम्हारी ये हालत देख मेरी चश्म नम हुई जाती है
कौन सी बात, कौन सा गम है, जो तुम्हें खाए जाता है?
अच्छे से अच्छा चुटकुला भी क्यों तुम्हें हँसा नहीं पाता है.
तुम मेरे लिए एक ताज़महल बनाना चाहते थे
मुमताज़ बनाकर मुझे दिल में सजाना चाहते थे

तब प्राणनाथ ने जैसे नींद से जागते हुए, अपने लब खोले
बड़ी बेबसी से मेरी ओर देखा, फिर दर्द भरी आवाज़ में बोले
प्रिये, यही गम है जो बरसों से अंदर ही अंदर मुझे खाए जाता है
यही कारण है के मेरा चेहरा, दिन – ब - दिन मुरझाये जाता है.
मैं पिछले बीस वर्षों से ताजमहल बनाने को तरस रहा हूँ
यूँ लगता है जैसे सदियों से बेमौसम सावन-सा बरस रहा हूँ

मैं आज भी शाहजहाँ बन, तुम्हें मेरे दिल में सजाना चाहता हूँ
आज भी तुम्हारी याद में खूबसूरत ताजमहल बनाना चाहता हूँ.
मगर,
मगर तुम न जाने किस बात का बदला ले रही हो,
मेरी बरसों की मुहब्बत का मुझे ये सिला दे रही हो  
समझ नहीं आता, किस चीज़ ने तुम्हें इस कदर बाँध रखा है ,
जीते जी डरा रही हो, ऊपर जाने का नाम ही नहीं ले रही हो.
                                               tongue3 tongue3 tongue3

                                   ---------उषा राजेश शर्मा
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mkv
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«Reply #1 on: February 19, 2012, 05:26:45 PM »
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Bahut khoob Usha ji
मगर तुम न जाने किस बात का बदला ले रही हो,
मेरी बरसों की मुहब्बत का मुझे ये सिला दे रही हो 
समझ नहीं आता, किस चीज़ ने तुम्हें इस कदर बाँध रखा है ,
जीते जी डरा रही हो, ऊपर जाने का नाम ही नहीं ले रही हो.
kya baat hai...sadhey hue shabdo ke saath likha gaya ye kalaam vaakai hasa deta hai..Applause
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«Reply #2 on: February 19, 2012, 05:58:53 PM »
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KHUB
TAJ HAMARE NAAM PE MANOJ WE BHI BANWANA CHAHATE HAI
BUNIYAAD KE LIYE RAAKH HAMARI LAASH KI CHAHATE HAI
अपने पति को बैठे देखकर यूँ उदास
कारण जानने का मैंने किया प्रयास
पूछा-
लगता है दुश्मनो की तबियत कुछ नासाज़ है
प्रिय, क्यों ये चेहरा मुर्झाया है, क्या बात है?
तुम्हारी उदासी देख कर वही पुरानी घटना याद आ रही है
क्यों वही बेबसी फिर तुम्हारी आँखों में आज छा रही है ?

तुम बैठे थे कुछ उदास, कुछ बेचैन
शून्य में जैसे खोये - खोये थे नैन
बहुत कुरेदने पर तुमने लब खोले थे
तोल–तोल कर फिर ये बोल बोले थे –
मैं भी किसी को दिल मैं सजाना चाहता हूँ
मुहब्बत का एक ताजमहल बनाना चाहता हूँ
मगर दिल की बात दिल ही में रही जाती है
मुझे मेरी मुमताज़ कहीं नज़र नहीं आती है

तब तुम्हारे दिल का दर्द मेरे दिल ने सहा था
मैंने कुछ शरमाते, कुछ सकुचाते हुए कहा था
ज़रा गौर से देखो, दूर - दूर जहाँ तक नज़र जाती है
मुमताज़ तो पास ही है, तुम्हें क्यों नज़र नहीं आती है? 
करम खुदा का, मेरी ये सूरत तुम्हें भा गयी थी
तुम्हारे चेहरे की रौनक फिर वापस आ गयी थी 

देखती हूँ साल दर साल तुम्हारी रंगत कम हुई जाती है
और, तुम्हारी ये हालत देख मेरी चश्म नम हुई जाती है
कौन सी बात, कौन सा गम है, जो तुम्हें खाए जाता है?
अच्छे से अच्छा चुटकुला भी क्यों तुम्हें हँसा नहीं पाता है.
तुम मेरे लिए एक ताज़महल बनाना चाहते थे
मुमताज़ बनाकर मुझे दिल में सजाना चाहते थे

तब प्राणनाथ ने जैसे नींद से जागते हुए, अपने लब खोले
बड़ी बेबसी से मेरी ओर देखा, फिर दर्द भरी आवाज़ में बोले
प्रिये, यही गम है जो बरसों से अंदर ही अंदर मुझे खाए जाता है
यही कारण है के मेरा चेहरा, दिन – ब - दिन मुरझाये जाता है.
मैं पिछले बीस वर्षों से ताजमहल बनाने को तरस रहा हूँ
यूँ लगता है जैसे सदियों से बेमौसम सावन-सा बरस रहा हूँ

मैं आज भी शाहजहाँ बन, तुम्हें मेरे दिल में सजाना चाहता हूँ
आज भी तुम्हारी याद में खूबसूरत ताजमहल बनाना चाहता हूँ.
मगर,
मगर तुम न जाने किस बात का बदला ले रही हो,
मेरी बरसों की मुहब्बत का मुझे ये सिला दे रही हो   
समझ नहीं आता, किस चीज़ ने तुम्हें इस कदर बाँध रखा है ,
जीते जी डरा रही हो, ऊपर जाने का नाम ही नहीं ले रही हो.
                                   ---------उषा राजेश शर्मा

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usha rajesh
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«Reply #3 on: February 20, 2012, 04:26:39 AM »
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Bahut khoob Usha ji
मगर तुम न जाने किस बात का बदला ले रही हो,
मेरी बरसों की मुहब्बत का मुझे ये सिला दे रही हो 
समझ नहीं आता, किस चीज़ ने तुम्हें इस कदर बाँध रखा है ,
जीते जी डरा रही हो, ऊपर जाने का नाम ही नहीं ले रही हो.
kya baat hai...sadhey hue shabdo ke saath likha gaya ye kalaam vaakai hasa deta hai..Applause

Shukriya, mkv ji.
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usha rajesh
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«Reply #4 on: February 20, 2012, 04:27:09 AM »
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KHUB
TAJ HAMARE NAAM PE MANOJ WE BHI BANWANA CHAHATE HAI
BUNIYAAD KE LIYE RAAKH HAMARI LAASH KI CHAHATE HAI
Bahut bahut shukriya, manoj ji.
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SURESH SANGWAN
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«Reply #5 on: February 20, 2012, 04:48:54 AM »
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nice one usha ji.

likhte rahiye.
abaad rahiye.
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«Reply #6 on: February 20, 2012, 07:46:05 AM »
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waah wah Ushaa  badaa dil lubhaawnaa aur marm sparshee chitran kiyaa hai aapne bas aakhiree line saty n ho kamse kam sau saal tak
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«Reply #7 on: February 20, 2012, 08:23:50 AM »
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अपने पति को बैठे देखकर यूँ उदास
कारण जानने का मैंने किया प्रयास
पूछा-
लगता है दुश्मनो की तबियत कुछ नासाज़ है
प्रिय, क्यों ये चेहरा मुर्झाया है, क्या बात है?
तुम्हारी उदासी देख कर वही पुरानी घटना याद आ रही है
क्यों वही बेबसी फिर तुम्हारी आँखों में आज छा रही है ?

तुम बैठे थे कुछ उदास, कुछ बेचैन
शून्य में जैसे खोये - खोये थे नैन
बहुत कुरेदने पर तुमने लब खोले थे
तोल–तोल कर फिर ये बोल बोले थे –
मैं भी किसी को दिल मैं सजाना चाहता हूँ
मुहब्बत का एक ताजमहल बनाना चाहता हूँ
मगर दिल की बात दिल ही में रही जाती है
मुझे मेरी मुमताज़ कहीं नज़र नहीं आती है

तब तुम्हारे दिल का दर्द मेरे दिल ने सहा था
मैंने कुछ शरमाते, कुछ सकुचाते हुए कहा था
ज़रा गौर से देखो, दूर - दूर जहाँ तक नज़र जाती है
मुमताज़ तो पास ही है, तुम्हें क्यों नज़र नहीं आती है? 
करम खुदा का, मेरी ये सूरत तुम्हें भा गयी थी
तुम्हारे चेहरे की रौनक फिर वापस आ गयी थी 

देखती हूँ साल दर साल तुम्हारी रंगत कम हुई जाती है
और, तुम्हारी ये हालत देख मेरी चश्म नम हुई जाती है
कौन सी बात, कौन सा गम है, जो तुम्हें खाए जाता है?
अच्छे से अच्छा चुटकुला भी क्यों तुम्हें हँसा नहीं पाता है.
तुम मेरे लिए एक ताज़महल बनाना चाहते थे
मुमताज़ बनाकर मुझे दिल में सजाना चाहते थे

तब प्राणनाथ ने जैसे नींद से जागते हुए, अपने लब खोले
बड़ी बेबसी से मेरी ओर देखा, फिर दर्द भरी आवाज़ में बोले
प्रिये, यही गम है जो बरसों से अंदर ही अंदर मुझे खाए जाता है
यही कारण है के मेरा चेहरा, दिन – ब - दिन मुरझाये जाता है.
मैं पिछले बीस वर्षों से ताजमहल बनाने को तरस रहा हूँ
यूँ लगता है जैसे सदियों से बेमौसम सावन-सा बरस रहा हूँ

मैं आज भी शाहजहाँ बन, तुम्हें मेरे दिल में सजाना चाहता हूँ
आज भी तुम्हारी याद में खूबसूरत ताजमहल बनाना चाहता हूँ.
मगर,
मगर तुम न जाने किस बात का बदला ले रही हो,
मेरी बरसों की मुहब्बत का मुझे ये सिला दे रही हो   
समझ नहीं आता, किस चीज़ ने तुम्हें इस कदर बाँध रखा है ,
जीते जी डरा रही हो, ऊपर जाने का नाम ही नहीं ले रही हो.
                                               tongue3 tongue3 tongue3

                                   ---------उषा राजेश शर्मा



Bahut Bahut Khoob Usha Ji..Sach Mein Bahut Hi khoobsurat Seedh-Saadhi si Kavita Likhi Hai Aapne, Saral lafzon mein Mann Ko Lubhaati Hui.. par Haan Rabb Kare Tajamahal Zaroor Banne Par kisi Ki yaad mein Nahi,iss baar jo Tajmahal Banne Woh Mohabbat Ki jeet Aur Umar Bhar saath Rehne Ki Bhawnaayon Par Ho.. Bahut Ache Usha Ji


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usha rajesh
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«Reply #8 on: February 20, 2012, 04:06:42 PM »
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nice one usha ji.

likhte rahiye.
abaad rahiye.

Thank you so much, Suresh ji.
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usha rajesh
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«Reply #9 on: February 21, 2012, 05:55:52 AM »
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waah wah Ushaa  badaa dil lubhaawnaa aur marm sparshee chitran kiyaa hai aapne bas aakhiree line saty n ho kamse kam sau saal tak

Saini Sir, bahut bahut shukriya apke pyar aur ashirwad ka.
Thank you so much for your concern.
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usha rajesh
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«Reply #10 on: February 21, 2012, 05:57:29 AM »
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Bahut Bahut Khoob Usha Ji..Sach Mein Bahut Hi khoobsurat Seedh-Saadhi si Kavita Likhi Hai Aapne, Saral lafzon mein Mann Ko Lubhaati Hui.. par Haan Rabb Kare Tajamahal Zaroor Banne Par kisi Ki yaad mein Nahi,iss baar jo Tajmahal Banne Woh Mohabbat Ki jeet Aur Umar Bhar saath Rehne Ki Bhawnaayon Par Ho.. Bahut Ache Usha Ji


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Khwaish ji, Bahut bahut shukriya apke is pyar, duaon aur ashirwad ka. I am touched.Thanks
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pankajwfs
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«Reply #11 on: February 21, 2012, 10:04:43 AM »
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 Clapping Smiley Clapping Smiley Very nice Poem Usha ji very Touching Creation  Clapping Smiley Clapping Smiley
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panks
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«Reply #12 on: February 21, 2012, 01:05:34 PM »
Reply with quote
lol
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deepika_divya
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«Reply #13 on: February 21, 2012, 02:01:06 PM »
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Sab Pati log aise hi hote hai kya Huh? lolz

Anyways.. Bahoot Bahoot Bahoot Khoobsoorat Racha .. kaafi ache se byaan kiya hai .. Bahoot maza aaya pad kar ...Usual Smile
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usha rajesh
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«Reply #14 on: February 22, 2012, 02:44:16 AM »
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Clapping Smiley Clapping Smiley Very nice Poem Usha ji very Touching Creation  Clapping Smiley Clapping Smiley

Thanks, Pankaj ji.
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