मै कान हूँ दोस्तो

by nandbahu on June 07, 2020, 03:16:32 PM
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nandbahu
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मैं कान हूँ दोस्तों, हम जुड़वा हैं दो भाई।
लेकिन भाग्य ऐसा है, न देख सके एक दूजे भाई।।
क्या श्राप था विधाता का, जो  चिपके हम विपरीत दिशा।
केवल सुनते हैं हम, अच्छा हो या भला बुरा।।
कभी मन्त्र सुनते है, कभी सुने हम गाली।
कभी कभी प्रशंशा में, सुनते भी हम ताली।।
धीरे धीरे हमको सबने, खूंटी ही बना डाला।
चश्मे का बोझ डाला, फ्रेम की डंडी फंसा डाला।।
आंखों की बात है, तो हमको क्यों घसीट दिया।
बोले हम भले ही ना, सुनते तो हैं ही ना।।
बचपन से सहते आये, दमन का शिकार हुये।
पढाई न करे बच्चे, मरोड़े फिर हमी जाये।।
जवान हुए तो नर नारी ने, सुंदरता के बहाने ढूंढे।
हमको छेद दिया सबने, अपना दर्द न बता पाए।।
बाली झुमके लोंग आदि, हम पर ही लटका डाले।
सुंदरता मुख की हुई, हमपे नजर न कोई डाले।।
आंखों के लिए काजल, होंठों के लिए लाली।
हमने कुछ न मांगा, न ही करी कोई मनमानी।।
न किसी कवि शायर ने, हमारे लिए कुछ कहा।
आंख होंठ गाल पर, तारीफों के पुल बांधा।।
हमको तो मृत्युभोज की, पूड़ी ही बस समझा।
जिसे उठाकर चेहरे के, किनारे पर चिपका दिया।।
किसको बताऊं दर्द अपना, किससे मैं बयां करूँ।
आंसू टपकाने लगे, यदि आंखों को बतलाऊं।
मुंह से शिकायत करने पर, हाय हाय वो करने लगे।
नाक को बतलाने पर, जुखाम उसको होने लगे।।
पण्डित का जनेऊ हो, या दर्जी की पेंसिल हो।
हमही संभाले सबको, चाहे गुटखे  की पुड़िया हो।।
अब कोरोना के मास्क का, झंझट भी हम झेले।
काश कोई हमारी भी, मज़बूरी को जरा समझे।।
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surindarn
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«Reply #1 on: June 07, 2020, 03:42:52 PM »
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मैं कान हूँ दोस्तों, हम जुड़वा हैं दो भाई।
लेकिन भाग्य ऐसा है, न देख सके एक दूजे भाई।।
क्या श्राप था विधाता का, जो  चिपके हम विपरीत दिशा।
केवल सुनते हैं हम, अच्छा हो या भला बुरा।।
कभी मन्त्र सुनते है, कभी सुने हम गाली।
कभी कभी प्रशंशा में, सुनते भी हम ताली।।
धीरे धीरे हमको सबने, खूंटी ही बना डाला।
चश्मे का बोझ डाला, फ्रेम की डंडी फंसा डाला।।
आंखों की बात है, तो हमको क्यों घसीट दिया।
बोले हम भले ही ना, सुनते तो हैं ही ना।।
बचपन से सहते आये, दमन का शिकार हुये।
पढाई न करे बच्चे, मरोड़े फिर हमी जाये।।
जवान हुए तो नर नारी ने, सुंदरता के बहाने ढूंढे।
हमको छेद दिया सबने, अपना दर्द न बता पाए।।
बाली झुमके लोंग आदि, हम पर ही लटका डाले।
सुंदरता मुख की हुई, हमपे नजर न कोई डाले।।
आंखों के लिए काजल, होंठों के लिए लाली।
हमने कुछ न मांगा, न ही करी कोई मनमानी।।
न किसी कवि शायर ने, हमारे लिए कुछ कहा।
आंख होंठ गाल पर, तारीफों के पुल बांधा।।
हमको तो मृत्युभोज की, पूड़ी ही बस समझा।
जिसे उठाकर चेहरे के, किनारे पर चिपका दिया।।
किसको बताऊं दर्द अपना, किससे मैं बयां करूँ।
आंसू टपकाने लगे, यदि आंखों को बतलाऊं।
मुंह से शिकायत करने पर, हाय हाय वो करने लगे।
नाक को बतलाने पर, जुखाम उसको होने लगे।।
पण्डित का जनेऊ हो, या दर्जी की पेंसिल हो।
हमही संभाले सबको, चाहे गुटखे  की पुड़िया हो।।
अब कोरोना के मास्क का, झंझट भी हम झेले।
काश कोई हमारी भी, मज़बूरी को जरा समझे।।
Kyaa baat hai.
 Usual Smile Usual Smile Usual Smile Usual Smile Usual Smile Usual Smile Usual Smile
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«Reply #2 on: June 07, 2020, 05:47:19 PM »
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  Applause Applause आपने भी कान की दुकान खोल दी।
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nandbahu
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«Reply #3 on: June 08, 2020, 10:23:25 AM »
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Kyaa baat hai.
 Usual Smile Usual Smile Usual Smile Usual Smile Usual Smile Usual Smile :)बहुत बहुत धन्यवाद
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nandbahu
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«Reply #4 on: June 08, 2020, 10:24:19 AM »
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हाँ, अभी कान मजबूत होने जरूरी है
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«Reply #5 on: June 08, 2020, 01:28:05 PM »
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Waaaah hi waah  Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause
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nandbahu
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«Reply #6 on: June 09, 2020, 04:52:36 AM »
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Waaaah hi waah  Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause
बहुत बहुत धन्यवाद
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