रूठे दिलदार को

by sksaini4 on July 07, 2011, 04:55:12 AM
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रूठे  दिलदार  को क्या मनाना हुआ |
बर्फ़ सूरज के घर  में जमाना हुआ ||

उनका ग़ैरों के घर आना जाना  हुआ |
यूँ मेरे दिल पे बिजली गिराना हुआ ||

उनके अब्बा को  गुज़रे ज़माना  हुआ |
तब  कहीं  जाके कूचे में जाना हुआ ||

उनके पत्थर का ये सर निशाना  हुआ |
वाह  जी क्या ख़ूब कव्वे उडाना हुआ ||

ज़र के  लालच  में शादी रचाना  हुआ |
अपनी किस्मत पे आंसू बहाना  हुआ ||

उनके  कुत्ते  को  सर पे चढ़ाना  हुआ |
जी का   जंजाल उसका घुमाना हुआ ||

उनकी  फ़ुरक़त में जी का जलाना हुआ |
मैक़दा  अब  तो अपना ठिकाना हुआ ||

उनका नज़रों से मुझको  गिराना  हुआ |
और   ढूंढा   नया  मैं  पुराना  हुआ ||

उनको  लोगों  का  पट्टी  पढ़ाना  हुआ |
गोया  घर  दूसरों  का  जलाना   हुआ ||

उनका बन ठन के महफ़िल में आना हुआ |
फ्यूज़ बल्बों  का  फिर टिमटिमाना हुआ ||

                                 डा० सुरेन्द्र सैनी
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khujli
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«Reply #1 on: July 07, 2011, 05:52:18 AM »
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रूठे  दिलदार  को क्या मनाना हुआ |
बर्फ़ सूरज के घर  में जमाना हुआ ||

उनका ग़ैरों के घर आना जाना  हुआ |
यूँ मेरे दिल पे बिजली गिराना हुआ ||

उनके अब्बा को  गुज़रे ज़माना  हुआ |
तब  कहीं  जाके कूचे में जाना हुआ ||

उनके पत्थर का ये सर निशाना  हुआ |
वाह  जी क्या ख़ूब कव्वे उडाना हुआ ||

ज़र के  लालच  में शादी रचाना  हुआ |
अपनी किस्मत पे आंसू बहाना  हुआ ||

उनके  कुत्ते  को  सर पे चढ़ाना  हुआ |
जी का   जंजाल उसका घुमाना हुआ ||

उनकी  फ़ुरक़त में जी का जलाना हुआ |
मैक़दा  अब  तो अपना ठिकाना हुआ ||

उनका नज़रों से मुझको  गिराना  हुआ |
और   ढूंढा   नया  मैं  पुराना  हुआ ||

उनको  लोगों  का  पट्टी  पढ़ाना  हुआ |
गोया  घर  दूसरों  का  जलाना   हुआ ||

उनका बन ठन के महफ़िल में आना हुआ |
फ्यूज़ बल्बों  का  फिर टिमटिमाना हुआ ||

                                 डा० सुरेन्द्र सैनी




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