Ankhon ki jumbish dekhkar - By "Betaab".

by dksaxenabsnl on September 22, 2018, 04:53:04 PM
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आँखों की जुम्बिश देखकर ही इतना डर गए ,
अभी मेरे हाथों की जुम्बिश कहाँ तुमने देखी है.

चेहरे पे उदासी देखी और आँख नम कर ली,
अभी मेरे दिल की बेचैनियां कहाँ तुमने देखी है.

अपनी ख्वाहिशें को इतना तूल क्यों देते हो,
मेरे हौसलों की उड़ान कहाँ तुमने देखी है.

बिजलियों से इतना डरने जरुरत क्या है,
अभी मेरे दिल की आग कहाँ तुमने देखी है.

सिर्फ लब्ज़ों की चोट से न घबराओ "बेताब,"
अभी खामोशियों की मार तुमने कहाँ देखी है.

Composed by D K Saxena"Betaab"
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«Reply #1 on: October 05, 2018, 05:57:37 AM »
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आँखों की जुम्बिश देखकर ही इतना डर गए ,
अभी मेरे हाथों की जुम्बिश कहाँ तुमने देखी है.

चेहरे पे उदासी देखी और आँख नम कर ली,
अभी मेरे दिल की बेचैनियां कहाँ तुमने देखी है.

अपनी ख्वाहिशें को इतना तूल क्यों देते हो,
मेरे हौसलों की उड़ान कहाँ तुमने देखी है.

बिजलियों से इतना डरने जरुरत क्या है,
अभी मेरे दिल की आग कहाँ तुमने देखी है.

सिर्फ लब्ज़ों की चोट से न घबराओ "बेताब,"
अभी खामोशियों की मार तुमने कहाँ देखी है.

Composed by D K Saxena"Betaab"
आँखों की जुम्बिश देखकर ही इतना डर गए ,
अभी मेरे हाथों की जुम्बिश कहाँ तुमने देखी है.

चेहरे पे उदासी देखी और आँख नम कर ली,
अभी मेरे दिल की बेचैनियां कहाँ तुमने देखी है.

अपनी ख्वाहिशें को इतना तूल क्यों देते हो,
मेरे हौसलों की उड़ान कहाँ तुमने देखी है.

बिजलियों से इतना डरने जरुरत क्या है,
अभी मेरे दिल की आग कहाँ तुमने देखी है.

सिर्फ लब्ज़ों की चोट से न घबराओ "बेताब,"
अभी खामोशियों की मार तुमने कहाँ देखी है.

Composed by D K Saxena"Betaab"

Bahut Bahut Shukriya view karne ke liye.
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