incomplete ghazals

by Dheeraj dave on April 19, 2013, 12:42:49 PM
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Dheeraj dave
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सब जैसा बनने की कोशिश करते-करते
अब तो ये भी भूल गया के मैं कैसा था
देखा एक सीधे बच्चे को आज बिगड़ते
मुझको आया याद कभी मैं भी ऐसा था
सबको मुझसे प्यार मुझे खुदसे ही नफरत
पहले खुदको प्यारा था मैं चाहे जैसा था


कुछेक दुपट्टे और बस एक ख़ूबसूरत नाम
बेटियों के हिस्से में और बपौती नहीं आती
जब भी आती है लाती है हज़ारों लफड़े
जवानी दिमागों-बदन में अकेले नहीं आती
लुटना चाहे तो लुट सकता है इशारों में शहर को
हुस्न वाले को मगर ऐसी डकैती नहीं आती

मुरझाई सी इन आँखों में भी कुछ ख्वाब जिंदा है
सच तब तक जियेगा जब तलक माहताब ज़िंदा है
तुम्हारे शहर के तो बुढ़ों की भी मर गयी इज्जत
हमारे गाँव के बच्चों में भी आदाब जिन्दा है
मेरे ख़ामोश होंठो की हया की मत टटोलो तुम
मेरी बातों के लहजे में अभी तेज़ाब ज़िंदा है
नहीं  उम्मीद मुझको के कभी मेरा भी होगा वो
मैं  जिन्दा हूँ अभी क्यूंकि मेरे माँ-बाप जिन्दा है

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ghayal_shayar
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«Reply #1 on: April 19, 2013, 12:59:19 PM »
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 Clapping Smiley bahut ahche ashaar haiN saaheb, yuNhi aage bhi likhte rahiye...!! Par mere khayaal se ise miscellaneous men hona chahiye tha, mazahiya meN hone se iske khayal ke saath insaaf nahiN ho paayega... Usual Smile
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Sudhir Ashq
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«Reply #2 on: April 19, 2013, 01:06:07 PM »
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सब जैसा बनने की कोशिश करते-करते अब तो ये भी भूल गया के मैं कैसा था देखा एक सीधे बच्चे को आज बिगड़ते मुझको आया याद कभी मैं भी ऐसा था सबको मुझसे प्यार मुझे खुदसे ही नफरत पहले खुदको प्यारा था मैं चाहे जैसा था
Wah,Wah,Wah Very nice.
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Dheeraj dave
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«Reply #3 on: April 19, 2013, 01:13:17 PM »
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taish sahab kis ghazal ki baat kar rahe aap
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aqsh
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«Reply #4 on: April 19, 2013, 01:13:58 PM »
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bahut pyaare ehsaas hai. achchi lagi mujhe aapki yeh rachna. dheron daad.
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Dheeraj dave
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«Reply #5 on: April 19, 2013, 01:16:55 PM »
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sudhir bhai thnxxx
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aru12
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«Reply #6 on: April 19, 2013, 02:00:04 PM »
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nice one...
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ghayal_shayar
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«Reply #7 on: April 19, 2013, 02:05:35 PM »
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taish sahab kis ghazal ki baat kar rahe aap

Dheeraj ji main pehli aur teesri ghazalon ke liye keh raha tha, kyunki vo hasya ke hisaabe se na ho ke tanziya haiN kahin na kahiN...!!
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amit_prakash_meet
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«Reply #8 on: April 19, 2013, 03:19:57 PM »
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बहुत खूब धीरज जी और खास तौर पर

लुटना चाहे तो लुट सकता है इशारों में शहर को
हुस्न वाले को मगर ऐसी डकैती नहीं आती

 Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause

बस "ल" पर "ऊ" की मात्रा कर दीजिये
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Dheeraj dave
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«Reply #9 on: April 19, 2013, 04:15:14 PM »
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taish sahab ye maine tanziya lahje me hi likhi he...aur abhi inme bahuut kuchh baaki he,Tabhi to ye incomplete ghazals he..
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msanjusethi
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«Reply #10 on: April 19, 2013, 05:27:47 PM »
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सब जैसा बनने की कोशिश करते-करते
अब तो ये भी भूल गया के मैं कैसा था
देखा एक सीधे बच्चे को आज बिगड़ते
मुझको आया याद कभी मैं भी ऐसा था
सबको मुझसे प्यार मुझे खुदसे ही नफरत
पहले खुदको प्यारा था मैं चाहे जैसा था


कुछेक दुपट्टे और बस एक ख़ूबसूरत नाम
बेटियों के हिस्से में और बपौती नहीं आती
जब भी आती है लाती है हज़ारों लफड़े
जवानी दिमागों-बदन में अकेले नहीं आती
लुटना चाहे तो लुट सकता है इशारों में शहर को
हुस्न वाले को मगर ऐसी डकैती नहीं आती

मुरझाई सी इन आँखों में भी कुछ ख्वाब जिंदा है
सच तब तक जियेगा जब तलक माहताब ज़िंदा है
तुम्हारे शहर के तो बुढ़ों की भी मर गयी इज्जत
हमारे गाँव के बच्चों में भी आदाब जिन्दा है
मेरे ख़ामोश होंठो की हया की मत टटोलो तुम
मेरी बातों के लहजे में अभी तेज़ाब ज़िंदा है
नहीं  उम्मीद मुझको के कभी मेरा भी होगा वो
मैं  जिन्दा हूँ अभी क्यूंकि मेरे माँ-बाप जिन्दा है

samajh bhi dekho kitni nasamajh nikali mei samjha koi aur smjhe na smjhe tum smjhogi .....sach to yeh h
                       na tum smjhe na mei smjhi.
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sksaini4
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«Reply #11 on: April 19, 2013, 07:47:59 PM »
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bahut hee sunder
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suman59
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«Reply #12 on: April 19, 2013, 10:03:59 PM »
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very nice
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marhoom bahayaat
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«Reply #13 on: April 19, 2013, 10:07:44 PM »
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सब जैसा बनने की कोशिश करते-करते
अब तो ये भी भूल गया के मैं कैसा था
देखा एक सीधे बच्चे को आज बिगड़ते
मुझको आया याद कभी मैं भी ऐसा था
सबको मुझसे प्यार मुझे खुदसे ही नफरत
पहले खुदको प्यारा था मैं चाहे जैसा था


कुछेक दुपट्टे और बस एक ख़ूबसूरत नाम
बेटियों के हिस्से में और बपौती नहीं आती
जब भी आती है लाती है हज़ारों लफड़े
जवानी दिमागों-बदन में अकेले नहीं आती
लुटना चाहे तो लुट सकता है इशारों में शहर को
हुस्न वाले को मगर ऐसी डकैती नहीं आती

मुरझाई सी इन आँखों में भी कुछ ख्वाब जिंदा है
सच तब तक जियेगा जब तलक माहताब ज़िंदा है
तुम्हारे शहर के तो बुढ़ों की भी मर गयी इज्जत
हमारे गाँव के बच्चों में भी आदाब जिन्दा है
मेरे ख़ामोश होंठो की हया की मत टटोलो तुम
मेरी बातों के लहजे में अभी तेज़ाब ज़िंदा है
नहीं  उम्मीद मुझको के कभी मेरा भी होगा वो
मैं  जिन्दा हूँ अभी क्यूंकि मेरे माँ-बाप जिन्दा है




gr888888888888 philosophy with fabulous nazam,sir 
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