SURESH SANGWAN
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शाखें फूलों वाली झुकी- झुकी- सी हैं इन दिनों दिल कहता है ज़िंदगी- ज़िंदगी सी है इन दिनों
कोई राह नज़र आई है बाद-ए-मुद्दत मुझे बुझे चराग़ में रोशनी- रोशनी सी है इन दिनों
दिल की गहराइयों में कुछ टूटा तो ज़रूर है हर बात मिरी शायरी- शायरी सी है इन दिनों
जैसे तो यहीं पर मुस्तक़िल रिहाइश कर ली है यूँ लबोंपे तबस्सुम खिली- खिली सी है इन दिनों इधर सज़्दे में सर झुका उधर वो तड़प उठठा यूँ लगता है बंदगी- बंदगी सी है इन दिनों
बना ले घर ए परिंदे गम के सूखे तिनकों से कुछ ज़माने की हवा रुकी- रुकी सी है इन दिनों
सही कौन है जहाँ में और ग़लत कौन नहीं है इन्हीं सवालों में 'सरु' घिरी-घिरी सी है इन दिनों
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khwahish
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Khaas Shayar
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«Reply #1 on: May 13, 2014, 09:55:25 PM » |
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NakulG
Maqbool Shayar
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«Reply #3 on: May 13, 2014, 10:47:59 PM » |
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Bahut Khoob !! कोई राह नज़र आई है बाद-ए-मुद्दत मुझे बुझे चराग़ में रोशनी- रोशनी सी है इन दिनों
ek rau kubool karen
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marhoom bahayaat
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«Reply #4 on: May 13, 2014, 11:02:18 PM » |
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शाखें फूलों वाली झुकी- झुकी- सी हैं इन दिनों shaakh phoolo.n waali jhuki-jhuki si hai inn dino! दिल कहता है ज़िंदगी- ज़िंदगी सी है इन दिनों
कोई राह नज़र आई है बाद-ए-मुद्दत मुझे बुझे चराग़ में रोशनी- रोशनी सी है इन दिनों
दिल की गहराइयों में कुछ टूटा तो ज़रूर है हर बात मिरी शायरी- शायरी सी है इन दिनों
जैसे तो यहीं पर मुस्तक़िल रिहाइश कर ली है यूँ लबोंपे तबस्सुम खिली- खिली सी है इन दिनों इधर सज़्दे में सर झुका उधर वो तड़प उठठा यूँ लगता है बंदगी- बंदगी सी है इन दिनों
बना ले घर ए परिंदे गम के सूखे तिनकों से कुछ ज़माने की हवा रुकी- रुकी सी है इन दिनों
सही कौन है जहाँ में और ग़लत कौन नहीं है इन्हीं सवालों में 'सरु' घिरी-घिरी सी है इन दिनों
with rau wonderful ,ma'am
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Advo.RavinderaRavi
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«Reply #5 on: May 14, 2014, 02:29:33 AM » |
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शाखें फूलों वाली झुकी- झुकी- सी हैं इन दिनों दिल कहता है ज़िंदगी- ज़िंदगी सी है इन दिनों
कोई राह नज़र आई है बाद-ए-मुद्दत मुझे बुझे चराग़ में रोशनी- रोशनी सी है इन दिनों
दिल की गहराइयों में कुछ टूटा तो ज़रूर है हर बात मिरी शायरी- शायरी सी है इन दिनों
जैसे तो यहीं पर मुस्तक़िल रिहाइश कर ली है यूँ लबोंपे तबस्सुम खिली- खिली सी है इन दिनों इधर सज़्दे में सर झुका उधर वो तड़प उठठा यूँ लगता है बंदगी- बंदगी सी है इन दिनों
बना ले घर ए परिंदे गम के सूखे तिनकों से कुछ ज़माने की हवा रुकी- रुकी सी है इन दिनों
सही कौन है जहाँ में और ग़लत कौन नहीं है इन्हीं सवालों में 'सरु' घिरी-घिरी सी है इन दिनों
bahut zazbat bhari peshkash ki hai Sureshji.dheron daad qabool karein. Rau for it.
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Gyan Prakash
Maqbool Shayar
Rau: 1
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«Reply #6 on: May 14, 2014, 02:36:02 AM » |
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sksaini4
Ustaad ae Shayari
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«Reply #7 on: May 14, 2014, 07:51:48 AM » |
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waah waah bahut khoob ek rau ke saath dheron daad
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parinde
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«Reply #8 on: May 14, 2014, 08:39:25 AM » |
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SURESH SANGWAN
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«Reply #9 on: May 14, 2014, 08:42:52 AM » |
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thanks a lot for the Rau ..and hearty appreciations Bahut Khoob !! कोई राह नज़र आई है बाद-ए-मुद्दत मुझे बुझे चराग़ में रोशनी- रोशनी सी है इन दिनों
ek rau kubool karen
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SURESH SANGWAN
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«Reply #10 on: May 14, 2014, 08:43:24 AM » |
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thankewww soooooo much parinde ji
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SURESH SANGWAN
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«Reply #11 on: May 14, 2014, 08:46:21 AM » |
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bahut 2 shukriya sksaini ji waah waah bahut khoob ek rau ke saath dheron daad
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SURESH SANGWAN
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«Reply #12 on: May 14, 2014, 08:50:04 AM » |
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thanks a lot gyan prakash ji
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SURESH SANGWAN
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«Reply #13 on: May 14, 2014, 08:50:50 AM » |
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Thanks a lot Marhoom Bahayat ji with rau wonderful ,ma'am
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SURESH SANGWAN
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«Reply #14 on: May 14, 2014, 08:51:33 AM » |
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thanks a loy Nakul g Bahut Khoob !! कोई राह नज़र आई है बाद-ए-मुद्दत मुझे बुझे चराग़ में रोशनी- रोशनी सी है इन दिनों
ek rau kubool karen
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