Itwaar Ki Sham..!!

by Áɑѕӈίգ on October 09, 2014, 12:47:21 PM
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Áɑѕӈίգ
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Az Mast Ke Bar Mast, Chon Digari Neest..!!

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इश्क़-ओ-प्यार में बहोत से नाम सुने है मैंने,
जान, हमदम, दिलबर, दिलरुबा, जानेमन,
पर इन सब में से किसी में उसको तराश शकु
ऐसा एक भी नाम नहीं....!

ये सब नाम एक दिन भूल जाने है,
किसी किताबी पन्नो में घुल जाने है |

यारो वक़्त को गुजरते वक़्त नहीं लगता,
किसी शायर की शायरी में मिल जाने है |

बहोत सोचा उसके बारे में मैंने,
तब जाके कही एक ख्याल आया,
क्यूँ न `फिज़ा` ही रखदु नाम उसका...!

   कली की तरह मचलती,
   बदरी की तरह बरसती |

   खुशबु बन मेरे जीवन में,
   फूलों की तरह महेकती |

अब एक फितूर सा है वो मेरी जिंदगी में,
दिल की दुआ बन रहेता है मेरी बंदगी में |

   उसके बिना क्या वजूद था मेरा,
   तन्हाई थी न कोई मौजूद था मेरा |

   डूबा रहेता था न जाने कैसे खयालो में,
   उलझा रहेता था न जाने कैसे सवालो में |

   क्या होगा कोई मेरा गुसार ये जिंदगी में,
   यूँ बेकस मैं रहेता न जाने कैसे मलालो में |
   
आखिर कब तक बिखरे दिल के टुकड़े समेटता रहू मैं,
बिछा रख्खे है जो मैंने बड़ी तहज़ीब से उसकी राहों मैं,
कह दिया था रहगुज़र हवाओ से, गुजरो जो कभी इन राहों से,
तो रख देना इन्हें सरहद पे............................इसी तहज़ीब से,
के हमने सुना है आज-कल वो राहों से नहीं सरहदों से गुजरा करते है.........!!

यह शायराना अंदाज़ आप ही से तो पाया है....

तुम नहीं थे जिंदगी में मेरे, तब भी उतने ही करीब थे जिंदगी में मेरे |

बस फर्क सिर्फ इतना था.......

   तब लिखते थे तेरी याद में,
   अब लिखते है तेरी शान में |

वो कहेते है बहोत देखे मैंने ऐसे `आशिक़`

   जो इश्क़ दस से, प्यार सौ से और महोब्बत हज़ार से करते है...!
   
   यहाँ एक को मिलने की बात करते है,
   वहाँ न जाने कितनो को याद करते है |
   
   अब तक कितनो से.......................मिले ये नहीं कहेते,
   एक प्यार हो तो माने, कितने यार बदले ये नहीं कहेते |
      
`आशिक़` अब क्या कहे तुमसे और क्या उलझे तुमसे,
ये ज़माने के रहेते ये तेरा सोचना भी लाज़मी है,
पर सुनो मेरे दिल-ओ-जान......

   ऐसा नहीं के हम को महोब्बत नहीं मिली,
   जैसी चाहते थे हम को वो उल्फत नहीं मिली |

   मिलने को जिंदगी में कई हमसफ़र मिले,
   पर उनकी तबियत से तबियत नहीं मिली |

   चहेरो में दुसरो के तुम्हे ढूँढ ते रहे,
   सूरत नहीं मिली, कही सीरत नहीं मिली |

   बहोत देर से आया तू, मेरे पास क्या कहूँ,
   अल्फाज़ ढूँढने को भी महोलत नहीं मिली |
   
   तुझको गिला रहा के तहज़ीब न दी तुझे,
   लेकिन हमे खुद अपनी महोब्बत नहीं मिली |
   
   हर शख्स जिंदगी में बहोत देर से मिला,
   कोई भी चीज़ वक़्त-ए-ज़रुरत नहीं मिली  |
   
   हम को तो तेरी आदत अच्छी लगी,
   किसी से आशिक़ की आदत नहीं मिली |

जब उसको मिले थे पहेली बार.....

   पलके तक न ज़पकी थी उस रात,
   पता नहीं क्या हलचल थी या दिल की बात,
   एक मीठा सा दर्द उठता सीने में उस रात...!!
   
और भी बहोत सी बाते है, जो बतानी है उसे , सुनानी है उसे...

   न रुकेगी मेरी कलम लिखते-लिखते,
   न थकेगी मेरी जुबान कहेते-कहेते.....

   पर डरता हूँ कही किसी और के सपनो में,
   तु आने लगे न चोरी-चोरी, चुपके-चुपके.....    

   न हो जाये कोई और तेरा `आशिक़`
   तेरे इश्क़ के जलवे सुनते-सुनते.........

बस और कुछ नहीं इतनी सी एक आरजू है....

   जिंदगी में मेरी एक आरजू पूरी हो,
   छोटी ही सही, देर से ही सही पर पूरी हो,
   हम जैसे आये थे वैसे ही है,
   कुछ और न सही तेरी-ओ-मेरी मुलाक़ात तो हो,
   के जिंदगी में ये एक आरज़ू मेरी पूरी तो हो.....!!

बस ये न पूछो कैसी थी वो शाम,
खयालो का आलम, होठो पे वो एक नाम,
यारो ऐसी गुजरी मेरी `इतवार की शाम`..................!!

आशिक़ ❧
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