SURESH SANGWAN
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तहरीरें काग़ज़ पर उतार लीजिये लीजिये क़लम मेरी उधार लीजिये
जब फ़र्श-ए-गुल लगा दिया हवाओं ने आइए मज़ा- ए- चमन- ज़ार लीजिये
हो जाती है ग़लती जाने -अनजाने बेहतर है उसे स्वीकार लीजिये
हम क्या हमारा ये जहाँ आपका है इक फूल क्या आप गुलज़ार लीजिये
टटोलकर नब्ज़ बारीकियों से उसका दिल क्या फिर जान भी सरकार लीजिये
इक वक़्त के सिवा सब लौट आयेगा गहराइयों से दिल की पुकार लीजिये
पास कुछ भी नहीं मगर सब कुछ है'सरु' अमीबा की मानिंद आकार लीजिये
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premdeep
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«Reply #1 on: August 07, 2014, 06:31:32 PM » |
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sksaini4
Ustaad ae Shayari
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«Reply #3 on: August 07, 2014, 11:44:51 PM » |
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ek rau ke saath daad (MERAA QALAM) QALAM MASCULINE HAI URDU MEN
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amit_prakash_meet
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«Reply #4 on: August 08, 2014, 05:10:17 AM » |
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NakulG
Maqbool Shayar
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«Reply #6 on: August 08, 2014, 05:53:57 AM » |
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Waah Waah Waah Ab Rau Hamara Sweekar Lijiye!!
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Sps
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«Reply #12 on: August 08, 2014, 12:49:40 PM » |
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bahot bahot khoob....
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dksaxenabsnl
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Yoindian Shayar
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खुश रहो खुश रहने दो l
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«Reply #13 on: August 08, 2014, 01:20:09 PM » |
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~Hriday~
Poetic Patrol
Mashhur Shayar
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kalam k chalne ko zamaana paagalpan samajhta hai.
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«Reply #14 on: August 08, 2014, 08:15:07 PM » |
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