PHIR EK BAAR SUDHAAR KE SAATH.........................ALFAAZ

by alfaaz on April 07, 2015, 05:21:16 AM
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alfaaz
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अपनी वफ़ादारी पे बडा नाज करता था वो कुत्ता
 अपनी ही बिरादारी को रुलाता गया नेता

कैसे रोये अपनी किसमत पर वो मगरमच्छ
उसके सारे आंसु टपकाता गया नेता

घास हैं कंहा जो दोस्ती करे वो घोडा
सारा का सारा चारा खाता गया नेता

अब क्या चबाये और क्या दिखाये वो हाथी,
उनकी दांतो को जबडे में लगाकर हंसता गया नेता

अब तो शहरों का भी रुख करने लगे वो गिधड
उन्ही को लेकर तो पार्टी बनाता गया नेता

कुछ नंगा-पुंगा सा दिखा वो गेंडा
उसकी खाल खिंचकर पहनता गया नेता

भुख से तडपने लगे वो चिल्ल कौवे,
मुर्दों की ह्ड्डियां तक चबाता गया नेता

भुल गया अपनी ही चाल वो लोंबडी
ऐसी चाल पे चाल खेलता गया नेता

मुश्किल से चंद कीडे मकोंडों को फ़ांसती है वो मकडी
पुरे वतन को जाल में फ़ंसाता गया नेता

दुनिया को उल्टा देखने लगा वो उल्लू
जबसे उसको सिधा करता गया वो नेता

ट्युशन लेने पहुंच गये वो चोर डाकू
अपना हुन्नर सिखाता गया नेता

गुल्शन महसूस करने लगा वो गटर
गंदगी दिमाग में भरता गया नेता

उंगली पे निशान लगवाता रहा वो मतदाता
उसको ठेंगा दिखाता गया नेता

"राज" तवायफ़ से लगते हैं वो अवाम
जिन्हे उंगलीयों पे नचाता गया नेता

दोस्तों जानता  हुं कि मेरी ये रचना किसी बुरे वक्त की तरह ज्यादा ही लंबी हुई है। अब इतना बर्दाश कर ही चुके हैं तो बस्स इक आखरी सितम  ही सही. गुजारीश ये है की इन पंक्तियों को पढते वक्त हिंदी का सफ़र और अंग्रेजी का suffer दोनो का प्रयोग अलग अलग करे. जाने से पहले आपके सब्र के लिये दाद पेश हैं
आजकल कूछ ज्यादा ही सफ़र/ suffer करता है वो उसूल
जिसे जुते की नोंक पे रखता गया नेता
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«Reply #1 on: April 07, 2015, 08:48:19 AM »
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bahut khoob waah waah
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