Shayad Zindagi Badal Rahi Hai !!!!.....Not Mine... AnAAm

by ANAAM on December 17, 2010, 01:38:23 PM
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ANAAM
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शायद ज़िन्दगी बदल रही है!!

जब मैं छोटा था, शायद दुनिया बहुत बड़ी हुआ करती थी..
मुझे याद है मेरे घर से "स्कूल" तक का वो रास्ता, क्या क्या नहीं था
वहां, चाट के ठेले, जलेबी की दुकान, बर्फ के गोले, सब कुछ,
अब वहां "मोबाइल शॉप", "विडियो पार्लर" हैं,
फिर भी सब सूना है.. शायद अब दुनिया सिमट रही है...
/
/
जब मैं छोटा था, शायद शामे बहुत लम्बी हुआ करती थी.
मैं हाथ में पतंग की डोर पकडे, घंटो उडा करता था, वो लम्बी "साइकिल रेस",
वो बचपन के खेल, वो हर शाम थक के चूर हो जाना,
अब शाम नहीं होती, दिन ढलता है और सीधे रात हो जाती है.
शायद वक्त सिमट रहा है..
/
/
जब मैं छोटा था, शायद दोस्ती बहुत गहरी हुआ करती थी,
दिन भर वो हुज़ोम बनाकर खेलना, वो दोस्तों के घर का खाना,
वो लड़कियों की  बातें, वो साथ रोना, अब भी मेरे कई दोस्त हैं,
पर दोस्ती जाने कहाँ है, जब भी "ट्रेफिक सिग्नल" पे मिलते हैं  
"हाई" करते  हैं, और अपने अपने रास्ते चल देते हैं,
होली, दिवाली, जन्मदिन , नए साल पर बस SMS आ जाते हैं
शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं..
/
/
जब मैं छोटा था, तब खेल भी अजीब हुआ करते थे,
छुपन छुपाई, लंगडी टांग, पोषम पा, कट थे केक, टिप्पी टीपी टाप.
अब इन्टरनेट, ऑफिस, हिल्म्स, से फुर्सत ही नहीं मिलती..
शायद ज़िन्दगी बदल रही है.
जिंदगी का सबसे बड़ा सच यही है.. जो अक्सर
कबरिस्तान के बाहर बोर्ड पर  लिखा होता है.
"मंजिल तो यही थी,
बस जिंदगी गुज़र गयी मेरी यहाँ आते आते "
/
/
जिंदगी का लम्हा बहुत छोटा सा है.
कल की कोई बुनियाद नहीं है
और आने वाला कल सिर्फ सपने मैं ही हैं.
अब बच गए इस पल मैं..
तमन्नाओ से भरे इस जिंदगी मैं हम सिर्फ भाग रहे हैं..
इस जिंदगी को जियो न की काटो !!!
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*KasaK*....Dil Ki
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"I hv a prsnality wch evrybdy cn't handle

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«Reply #1 on: December 17, 2010, 01:45:31 PM »
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very heart touching sharing humnaam.....
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ANAAM
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«Reply #2 on: December 17, 2010, 02:05:02 PM »
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Jaanti ho meine jab ye kavita padhi tou laga jaise mein hi likh raha hu.....
sach mai meri he kahaani hai....yahi tha bachpan aur alhaddpan mera...
yahi sab huaa karta tha....Masti masti aur khoob masti....
samajh he nahi pa raha tha hassu ya roun....
un gujre lamhon par...un bhuli beesri yaadon par....
BAS AANKHEIN NUM HAIN....LAB MUSKURAATE HAIN...AJEEB HAALAT HAI MERI.....

Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause

very heart touching sharing humnaam.....

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Rishi Agarwal
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«Reply #3 on: December 17, 2010, 02:19:38 PM »
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Nice Sharing Anaam Ji
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*KasaK*....Dil Ki
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«Reply #4 on: December 17, 2010, 02:20:41 PM »
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heyyy tumko pata hai na..i dont like ur saddy face

chalo chalo smileeeeeeeee
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ANAAM
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«Reply #5 on: December 17, 2010, 02:27:18 PM »
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Aapka shukriya Rishi-bhai....

Nice Sharing Anaam Ji
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Rajesh Harish
Guest
«Reply #6 on: December 17, 2010, 05:59:24 PM »
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Nice sharing Anaam Ji
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KOYAL46
Guest
«Reply #7 on: December 18, 2010, 09:59:32 AM »
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mast mast poem hai....sara bachpan aur college days yaad aagye re...
Good sharing Anaam ji....sab ko aysa he lagta hai jaise ye unki he kahani ho....
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ANAAM
Guest
«Reply #8 on: December 18, 2010, 10:02:59 AM »
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Thanks a lot Rhji AND you koyal dear...
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RKSharma
Guest
«Reply #9 on: June 29, 2011, 09:16:42 AM »
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शायद ज़िन्दगी बदल रही है!!

जब मैं छोटा था, शायद दुनिया बहुत बड़ी हुआ करती थी..
मुझे याद है मेरे घर से "स्कूल" तक का वो रास्ता, क्या क्या नहीं था
वहां, चाट के ठेले, जलेबी की दुकान, बर्फ के गोले, सब कुछ,
अब वहां "मोबाइल शॉप", "विडियो पार्लर" हैं,
फिर भी सब सूना है.. शायद अब दुनिया सिमट रही है...
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जब मैं छोटा था, शायद शामे बहुत लम्बी हुआ करती थी.
मैं हाथ में पतंग की डोर पकडे, घंटो उडा करता था, वो लम्बी "साइकिल रेस",
वो बचपन के खेल, वो हर शाम थक के चूर हो जाना,
अब शाम नहीं होती, दिन ढलता है और सीधे रात हो जाती है.
शायद वक्त सिमट रहा है..
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जब मैं छोटा था, शायद दोस्ती बहुत गहरी हुआ करती थी,
दिन भर वो हुज़ोम बनाकर खेलना, वो दोस्तों के घर का खाना,
वो लड़कियों की  बातें, वो साथ रोना, अब भी मेरे कई दोस्त हैं,
पर दोस्ती जाने कहाँ है, जब भी "ट्रेफिक सिग्नल" पे मिलते हैं 
"हाई" करते  हैं, और अपने अपने रास्ते चल देते हैं,
होली, दिवाली, जन्मदिन , नए साल पर बस SMS आ जाते हैं
शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं..
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जब मैं छोटा था, तब खेल भी अजीब हुआ करते थे,
छुपन छुपाई, लंगडी टांग, पोषम पा, कट थे केक, टिप्पी टीपी टाप.
अब इन्टरनेट, ऑफिस, हिल्म्स, से फुर्सत ही नहीं मिलती..
शायद ज़िन्दगी बदल रही है.
जिंदगी का सबसे बड़ा सच यही है.. जो अक्सर
कबरिस्तान के बाहर बोर्ड पर  लिखा होता है.
"मंजिल तो यही थी,
बस जिंदगी गुज़र गयी मेरी यहाँ आते आते "
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जिंदगी का लम्हा बहुत छोटा सा है.
कल की कोई बुनियाद नहीं है
और आने वाला कल सिर्फ सपने मैं ही हैं.
अब बच गए इस पल मैं..
तमन्नाओ से भरे इस जिंदगी मैं हम सिर्फ भाग रहे हैं..
इस जिंदगी को जियो न की काटो !!!

Rajesh Sharma, Bhopal
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