Yeh Aaj Ka Daur Hai "Khwahish"

by khwaish on February 10, 2015, 02:54:52 PM
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khwahish
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बस यह ही सोच कर तपिश में जलता आया हूँ..........
धुप कितनी भी तेज़ क्यों न हो समुन्दर नहीं सूखा करते
                   ~~~~~~



तमाम रिश्तों की भीड़ में तन्हा रहने का मंज़र ढूंढता है
कैसा शख्स है रौनक-ए-शहर में खंडहर ढूंढता है

दिन तेज़ी से फिसलते हैं और फिर वहीं शाम का मंज़र
गुज़रते हुए दिन को क़ैद कर सके,कोई ऐसा कैलेंडर ढूंढता है

जो कल तक आम आदमी था,अब वो वज़ीर-ए-आला कह लाएगा
सब के सामने है वो,आज के दौर में गर कोई सिकंदर ढूंढता है

मैं थक कर नहीं बैठने वाला हरगिज़, मैं चलता रहूँगा उम्र भर
मैं तो वो तिनके की तरह हूँ जो खुद अपना समुन्दर ढूंढता है

अपनी मेहनत के बल बूटे पर ना जी सके तो क्या हासिल 'ए बन्दे'
आज मदारी भी अपना पेट भरने के लिए बस कोई बंदर ढूंढता है

उस की मीठी बातें दिल को बहुत लुभाती है यह दुनिया जानती है
पर वो किसी को ज़ख्म देने के लिए हर पल कोई खंजर ढूंढता है

"ख्वाहिश" यहां बहुत आसान है किसी को गलत कह देना
यह आज का दौर है,आज कौन खामियां अपने अंदर ढूंढता है


            ~~~~~ख्वाहिश~~~~~

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ambalika sharma
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«Reply #1 on: February 10, 2015, 03:21:01 PM »
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बस यह ही सोच कर तपिश में जलता आया हूँ..........
धुप कितनी भी तेज़ क्यों न हो समुन्दर नहीं सूखा करते
                   ~~~~~~



तमाम रिश्तों की भीड़ में तन्हा रहने का मंज़र ढूंढता है
कैसा शख्स है रौनक-ए-शहर में खंडहर ढूंढता है

दिन तेज़ी से फिसलते हैं और फिर वहीं शाम का मंज़र
गुज़रते हुए दिन को क़ैद कर सके,कोई ऐसा कैलेंडर ढूंढता है

जो कल तक आम आदमी था,अब वो वज़ीर-ए-आला कह लाएगा
सब के सामने है वो,आज के दौर में गर कोई सिकंदर ढूंढता है

मैं थक कर नहीं बैठने वाला हरगिज़, मैं चलता रहूँगा उम्र भर
मैं तो वो तिनके की तरह हूँ जो खुद अपना समुन्दर ढूंढता है

अपनी मेहनत के बल बूटे पर ना जी सके तो क्या हासिल 'ए बन्दे'
आज मदारी भी अपना पेट भरने के लिए बस कोई बंदर ढूंढता है

उस की मीठी बातें दिल को बहुत लुभाती है यह दुनिया जानती है
पर वो किसी को ज़ख्म देने के लिए हर पल कोई खंजर ढूंढता है

"ख्वाहिश" यहां बहुत आसान है किसी को गलत कह देना
यह आज का दौर है,आज कौन खामियां अपने अंदर ढूंढता है


            ~~~~~ख्वाहिश~~~~~


very very veru nice..I love all your writings,,,,apne  fans me mera naam add kr lijiye..
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~Hriday~
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kalam k chalne ko zamaana paagalpan samajhta hai.

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«Reply #2 on: February 10, 2015, 07:52:51 PM »
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surindarn
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«Reply #3 on: February 11, 2015, 12:41:28 AM »
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bahut khoob Janaab, Nihaayat Umdah.
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«Reply #4 on: February 11, 2015, 06:13:51 AM »
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Very good
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khwahish
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«Reply #5 on: February 11, 2015, 07:04:32 AM »
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very very veru nice..I love all your writings,,,,apne  fans me mera naam add kr lijiye..


Ab Kya Kahoon Main...Bas Itna Hi Keh Sakta Hoon Ambalika Ji...Thankyou Sooooooooooooooo Much For Your So Kind Words...Yuhee Humesha Saath Dete Rahiye..  icon_flower icon_flower icon_flower icon_flower icon_flower icon_flower
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marhoom bahayaat
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«Reply #6 on: February 11, 2015, 04:33:12 PM »
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बस यह ही सोच कर तपिश में जलता आया हूँ..........
धुप कितनी भी तेज़ क्यों न हो समुन्दर नहीं सूखा करते
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तमाम रिश्तों की भीड़ में तन्हा रहने का मंज़र ढूंढता है
कैसा शख्स है रौनक-ए-शहर में खंडहर ढूंढता है

दिन तेज़ी से फिसलते हैं और फिर वहीं शाम का मंज़र
गुज़रते हुए दिन को क़ैद कर सके,कोई ऐसा कैलेंडर ढूंढता है

जो कल तक आम आदमी था,अब वो वज़ीर-ए-आला कह लाएगा
सब के सामने है वो,आज के दौर में गर कोई सिकंदर ढूंढता है

मैं थक कर नहीं बैठने वाला हरगिज़, मैं चलता रहूँगा उम्र भर
मैं तो वो तिनके की तरह हूँ जो खुद अपना समुन्दर ढूंढता है

अपनी मेहनत के बल बूटे पर ना जी सके तो क्या हासिल 'ए बन्दे'
आज मदारी भी अपना पेट भरने के लिए बस कोई बंदर ढूंढता है

उस की मीठी बातें दिल को बहुत लुभाती है यह दुनिया जानती है
पर वो किसी को ज़ख्म देने के लिए हर पल कोई खंजर ढूंढता है

"ख्वाहिश" यहां बहुत आसान है किसी को गलत कह देना
यह आज का दौर है,आज कौन खामियां अपने अंदर ढूंढता है


            ~~~~~ख्वाहिश~~~~~




nice,sir
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jnyana91
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«Reply #7 on: February 12, 2015, 03:48:12 AM »
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wah bahut hi khoob .... lajawab.... ApplauseApplauseApplauseApplauseApplauseApplauseApplause
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jnyana91
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«Reply #8 on: February 12, 2015, 03:48:53 AM »
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saath hi ek rau bhi...
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adil bechain
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«Reply #9 on: February 12, 2015, 04:25:10 PM »
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बस यह ही सोच कर तपिश में जलता आया हूँ..........
धुप कितनी भी तेज़ क्यों न हो समुन्दर नहीं सूखा करते
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तमाम रिश्तों की भीड़ में तन्हा रहने का मंज़र ढूंढता है
कैसा शख्स है रौनक-ए-शहर में खंडहर ढूंढता है

दिन तेज़ी से फिसलते हैं और फिर वहीं शाम का मंज़र
गुज़रते हुए दिन को क़ैद कर सके,कोई ऐसा कैलेंडर ढूंढता है

जो कल तक आम आदमी था,अब वो वज़ीर-ए-आला कह लाएगा
सब के सामने है वो,आज के दौर में गर कोई सिकंदर ढूंढता है

मैं थक कर नहीं बैठने वाला हरगिज़, मैं चलता रहूँगा उम्र भर
मैं तो वो तिनके की तरह हूँ जो खुद अपना समुन्दर ढूंढता है

अपनी मेहनत के बल बूटे पर ना जी सके तो क्या हासिल 'ए बन्दे'
आज मदारी भी अपना पेट भरने के लिए बस कोई बंदर ढूंढता है

उस की मीठी बातें दिल को बहुत लुभाती है यह दुनिया जानती है
पर वो किसी को ज़ख्म देने के लिए हर पल कोई खंजर ढूंढता है

"ख्वाहिश" यहां बहुत आसान है किसी को गलत कह देना
यह आज का दौर है,आज कौन खामियां अपने अंदर ढूंढता है


            ~~~~~ख्वाहिश~~~~~




waaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa aaaaaaaaaaaaaaaaaaaah kyaa khoob janaab Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause
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Shihab
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Maut To Ek Shuruaat Hai...

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«Reply #10 on: February 13, 2015, 12:16:40 PM »
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वाह वाह क्या कहने .बहूत खूब ख्वाहिश भाई

इस खूबसूरत पेशकश पे दिल की गहराइयों से
दाद और मुबारकबाद कबूल कीजिये


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शाद ओ आबाद रहिये


शीहाब

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sksaini4
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«Reply #11 on: February 18, 2015, 09:18:59 AM »
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waah waah bahut khoob
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SURESH SANGWAN
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«Reply #12 on: February 18, 2015, 04:43:35 PM »
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