अनोखा आसमान ------सृष्टिराज चिंतक

by srishti raj chintak on July 30, 2013, 03:09:02 PM
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srishti raj chintak
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आज-कल मैं  एक अनोखे आसमान में उड़ रहा हूँ
लेकिन मैं अकेला नही हूँ, हजारों लोग हैं मेरे साथ
पंखहीन भी, एक-दो --चार----छः---छ: पंखवाले भी और
सब  उड़  रहे  हैं,   उन्मुक्त,  सतत्,  निर्बाध
मैं भी पहले पंखहीन था, अब मेरे दो पंख उग आए हैं
हम सब भर रहे हैं, अपनी-अपनी उड़ान, कोई ऊँची, कोई नीची
लेकिन एक आसमान में साथ-साथ उड़ते हुए भी
हम  एक  दूसरे  को  देख  नही  पा  रहे  हैं
फिर भी सब बन्धे हैं आपस में, रिश्ते की अदृश्य डोर से
रिश्ता जज्बातो का,  अपनेपन का,  लगाव का
तभी तो यहाँ छः पंख वाला भी पंखहीन को कहता है
बहुत खूब,   शाबाश,   उड़ो,    खूब उड़ो
और पंखहीन या कम पंखवाला खुल कर
ज्यादा पंखवाले की उड़ान पर दाद देता है
यहाँ कुछ काले-सफेद हैं, कुछ रंगीन हैं,
 कुछ खुश मिजाज हैं, कुछ गमगीन हैं
कुछ नए हैं, कुछ नामचीन हैं लेकिन हैं सब उडाक
यहाँ ना लिंग-भेद है ना नस्ल-भेद ना रंग-भेद, सब समान हैं
यहाँ ऐसा कुछ सोचने की किसी को जरूरत नही है
सब अपनी-अपनी उड़ानों में व्यस्त हैं, उड़ान जज्बातो की,
जिन्दगी के अनछुए पहलुओं की, इंसानी रिश्तों की
इश्क की, वतन की, हंसी की, अवसर की, दोस्ती की, हुस्न की
खुदा की, कायनात की, दर्द की, जिन्दगी की
जुदाई  की, बेवफ़ाई की,   हर तरह की उड़ान
है ना ये अनोखी उड़ान और ये अनोखा आसमान
जिस पर जमी हैं निगाहें दुनिया की, ये है
"यों इंडिया शायरी अदब का आसमान"
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sksaini4
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«Reply #1 on: July 30, 2013, 03:35:21 PM »
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marhoom bahayaat
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«Reply #2 on: July 30, 2013, 05:02:18 PM »
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आज-कल मैं  एक अनोखे आसमान में उड़ रहा हूँ
लेकिन मैं अकेला नही हूँ, हजारों लोग हैं मेरे साथ
पंखहीन भी, एक-दो --चार----छः---छ: पंखवाले भी और
सब  उड़  रहे  हैं,   उन्मुक्त,  सतत्,  निर्बाध
मैं भी पहले पंखहीन था, अब मेरे दो पंख उग आए हैं
हम सब भर रहे हैं, अपनी-अपनी उड़ान, कोई ऊँची, कोई नीची
लेकिन एक आसमान में साथ-साथ उड़ते हुए भी
हम  एक  दूसरे  को  देख  नही  पा  रहे  हैं
फिर भी सब बन्धे हैं आपस में, रिश्ते की अदृश्य डोर से
रिश्ता जज्बातो का,  अपनेपन का,  लगाव का
तभी तो यहाँ छः पंख वाला भी पंखहीन को कहता है
बहुत खूब,   शाबाश,   उड़ो,    खूब उड़ो
और पंखहीन या कम पंखवाला खुल कर
ज्यादा पंखवाले की उड़ान पर दाद देता है
यहाँ कुछ काले-सफेद हैं, कुछ रंगीन हैं,
 कुछ खुश मिजाज हैं, कुछ गमगीन हैं
कुछ नए हैं, कुछ नामचीन हैं लेकिन हैं सब उडाक
यहाँ ना लिंग-भेद है ना नस्ल-भेद ना रंग-भेद, सब समान हैं
यहाँ ऐसा कुछ सोचने की किसी को जरूरत नही है
सब अपनी-अपनी उड़ानों में व्यस्त हैं, उड़ान जज्बातो की,
जिन्दगी के अनछुए पहलुओं की, इंसानी रिश्तों की
इश्क की, वतन की, हंसी की, अवसर की, दोस्ती की, हुस्न की
खुदा की, कायनात की, दर्द की, जिन्दगी की
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है ना ये अनोखी उड़ान और ये अनोखा आसमान
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nandbahu
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«Reply #3 on: July 30, 2013, 06:23:51 PM »
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«Reply #4 on: July 30, 2013, 08:40:12 PM »
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very very very good chintak ji..

bahut achha laga padh ke.. bahut khoob.. Usual Smile

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Advo.RavinderaRavi
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«Reply #5 on: July 30, 2013, 10:37:35 PM »
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srishti raj chintak
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«Reply #6 on: August 01, 2013, 10:08:41 PM »
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Many many thanks to all, regards.
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