"अरे!तुम दोगला ईमान रखते हो साहिब।

by kavyadharateam on November 18, 2018, 09:37:22 AM
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kavyadharateam
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"अरे!तुम दोगला ईमान रखते हो साहिब।
और उस पर मुसलमान बनते हो साहिब।।

क़ाफ़िरों को मार कर हूर,ज़न्नत मिलेगी।
कैसी कुरान तुम मियाँ पढ़ते हो साहिब।।

हाथों में थमा असलहे बम बन्दूकें,हथगोले।
मासूम दिलों में ज़हर क्यों भरते हो साहिब।।

क्या नस्ल आपकी मेरे भारत की  नहीं है ।
मुल्क से फिर क्यूँ ग़द्दारी करते हो साहिब।।

दिल मे ज़रूर आपके कोई तो चोर छुपा है।
अपने ही घर में तभी तो लड़ते  हो साहिब।।

क्यूँ देते हो बोलो मज़्ज़िदों से बग़ावती फ़तवे।
जुम्मे की कैसी तुम नमाज़ें पढ़ते हो साहिब।।

मज़हब के नाम पे हो मर मिटने को अमादा।
क्यों हिन्दुस्तान के लिऐ नहीं मरते हो साहिब।।

ये ज़ेहाद नहीं बस तख़्तों ताज की जंग है ।
क्यों झूठे फ़रेबी जेहादी बनते हो साहिब।।

तुम तोड़ सको हिंदुस्तान इतनी औकात नहीं है।
क्यों अपनी ज़िन्दगी ज़ाया करते हो साहिब।।

"दीपक"से रोशन है सभी मंदिर हो या मस्ज़िद।
जल जाओगे क्यों आग से खेलते हो साहिब।।

@ दीपक शर्मा
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«Reply #1 on: November 18, 2018, 07:23:13 PM »
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"अरे!तुम दोगला ईमान रखते हो साहिब।
और उस पर मुसलमान बनते हो साहिब।।

क़ाफ़िरों को मार कर हूर,ज़न्नत मिलेगी।
कैसी कुरान तुम मियाँ पढ़ते हो साहिब।।

हाथों में थमा असलहे बम बन्दूकें,हथगोले।
मासूम दिलों में ज़हर क्यों भरते हो साहिब।।

क्या नस्ल आपकी मेरे भारत की  नहीं है ।
मुल्क से फिर क्यूँ ग़द्दारी करते हो साहिब।।

दिल मे ज़रूर आपके कोई तो चोर छुपा है।
अपने ही घर में तभी तो लड़ते  हो साहिब।।

क्यूँ देते हो बोलो मज़्ज़िदों से बग़ावती फ़तवे।
जुम्मे की कैसी तुम नमाज़ें पढ़ते हो साहिब।।

मज़हब के नाम पे हो मर मिटने को अमादा।
क्यों हिन्दुस्तान के लिऐ नहीं मरते हो साहिब।।

ये ज़ेहाद नहीं बस तख़्तों ताज की जंग है ।
क्यों झूठे फ़रेबी जेहादी बनते हो साहिब।।

तुम तोड़ सको हिंदुस्तान इतनी औकात नहीं है।
क्यों अपनी ज़िन्दगी ज़ाया करते हो साहिब।।

"दीपक"से रोशन है सभी मंदिर हो या मस्ज़िद।
जल जाओगे क्यों आग से खेलते हो साहिब।।

@ दीपक शर्मा
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waah waah kyaa baat hai, dheron daad.

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«Reply #2 on: November 20, 2018, 03:24:02 AM »
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"अरे!तुम दोगला ईमान रखते हो साहिब।
और उस पर मुसलमान बनते हो साहिब।।

क़ाफ़िरों को मार कर हूर,ज़न्नत मिलेगी।
कैसी कुरान तुम मियाँ पढ़ते हो साहिब।।

हाथों में थमा असलहे बम बन्दूकें,हथगोले।
मासूम दिलों में ज़हर क्यों भरते हो साहिब।।

क्या नस्ल आपकी मेरे भारत की  नहीं है ।
मुल्क से फिर क्यूँ ग़द्दारी करते हो साहिब।।

दिल मे ज़रूर आपके कोई तो चोर छुपा है।
अपने ही घर में तभी तो लड़ते  हो साहिब।।

क्यूँ देते हो बोलो मज़्ज़िदों से बग़ावती फ़तवे।
जुम्मे की कैसी तुम नमाज़ें पढ़ते हो साहिब।।

मज़हब के नाम पे हो मर मिटने को अमादा।
क्यों हिन्दुस्तान के लिऐ नहीं मरते हो साहिब।।

ये ज़ेहाद नहीं बस तख़्तों ताज की जंग है ।
क्यों झूठे फ़रेबी जेहादी बनते हो साहिब।।

तुम तोड़ सको हिंदुस्तान इतनी औकात नहीं है।
क्यों अपनी ज़िन्दगी ज़ाया करते हो साहिब।।

"दीपक"से रोशन है सभी मंदिर हो या मस्ज़िद।
जल जाओगे क्यों आग से खेलते हो साहिब।।

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