औलाद का दर्द ---- सृष्टिराज चिंतक

by srishti raj chintak on December 05, 2013, 05:50:15 PM
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srishti raj chintak
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यदि आपने मेरी पेशकश "बिजली, आग और बिना मुंडेर की छत" पढ़ी है
तो यह उसकी दूसरी कड़ी है

कल मुझे उस "माँ" का बेटा मिला था
जिसका जिक्र मैंने अपनी उस पेशकश में किया था

कहने लगा, आप इंसानी रिश्तों पर खूब लिखते हैं
लेकिन कई बार रिश्ते ऐसे नही होते जैसे दिखते हैं

दुनिया में लोगों ने बहुत बार रिश्तों पर कलम चलाई है
लेकिन कम ही कलम औलाद के दर्द को छू पाई हैं

दुनिया में माँ - बाप तो इनसान अपनी मर्जी से बनता है
लेकिन औलाद कभी कोई अपनी मर्जी से नही बनता

अब तो दुनिया का शुरुआती दौर नही है
औलाद पैदा हो जाना अब कोई जबर्दस्ती नही है

अगर माँ - बाप बनना इनसान ने चुना है
तो उन ओहदों के फर्ज़ पूरे करना उसके साथ बुना है

औलाद बनना इनसान की मर्जी नही है, फिर भी
इस ओहदे के फर्ज़ पूरे करने की बात लोगों ने कही है

औलाद तो माँ - बाप के एक से ज्यादा भी हो सकती हैं
लेकिन माँ - बाप तो औलाद के कई नही हो सकते

एक औलाद के ठुकराने पर माँ - बाप दूसरी से दिल लगा सकते हैं
लेकिन माँ - बाप के मुँह मोड़ने पर औलाद किसके माँ - बाप से दिल लगा सकती है

औलाद तो माँ - बाप गोद भी ले सकते हैं, लेकिन
औलाद माँ - बाप को गोद नही ले सकती

औलाद का दर्द जानना है तो 'नाजायज' कहे जाने वालों से पूछो
यतीमखानो में पल रहे अनाथों से पूछो

लड़का-लड़की के भेद-भाव की शिकार कन्याओं से पूछो
सड़क पर कूड़ा बीनते, बाल-मजदूरी करते बचपन से पूछो

क्या इनकी माँ नही हैं ? क्या इनके बाप नही हैं ?
जन्म देकर औलाद को कूड़े के ढेर में फेंक देने वाली भी तो 'माँ' ही होती हैं

मैं मानता हूँ कि बच्चे का लालन-पालन करने वाली 'माँ' महान होती है
लेकिन एक 'माँ', औरत, सामाजिक-प्राणी भी तो होती है

कोई एक रिश्ता जी लेने से माँ ही क्या
कोई भी इनसान महान नही हो जाता

महान बनने के लिए इनसान को एक नही
हरेक रिश्ता जीना पड़ता है

अपने ख़ुद के बच्चे से लगाव होना ही 'माँ' होने की कसौटी नही है
सच्ची माँ की कसौटी पर सब बच्चे समान होते हैं

वो बेटी - बहू में फर्क नही करती
छोटे बच्चों को घर में नौकर नही रखती

यही सच्ची 'माँ' का फर्ज़ है, वरना
माँ के प्यार से ऊपर औलाद का दर्द है

और हाँ, आपने 'माँ' को मारने-पीटने की बात कही है
वो बिल्कुल ग़लत है, तनिक भी सही नही है

वो बात-बात में हमारा रास्ता रोक कर खड़ी हो जाती हैं
जब हम हटाते हैं तो उसे मारना-पीटना बताती हैं

बेशक़ वो हमसे बेइनतहा प्यार करती हैं
लेकिन कई बार लगता है, वो प्यार नही दहशतगर्दी है

खैर, जो भी है, मैंने और मेरे भाई ने फिर भी यह तय किया है
कि जब तक हमारी बहन की शादी नही हो जाती, हम शादी नही करेंगे

और जो लड़की हमारी 'माँ' के साथ रहना पसंद करेगी
उसी से शादी करेंगे, वरना कुँवारे रहेंगे

क्योंकि आख़िर वो हमारी
     "माँ" है




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sksaini4
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RAJAN KONDAL
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«Reply #2 on: December 05, 2013, 06:52:45 PM »
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यदि आपने मेरी पेशकश "बिजली, आग और बिना मुंडेर की छत" पढ़ी है
तो यह उसकी दूसरी कड़ी है

कल मुझे उस "माँ" का बेटा मिला था
जिसका जिक्र मैंने अपनी उस पेशकश में किया था

कहने लगा, आप इंसानी रिश्तों पर खूब लिखते हैं
लेकिन कई बार रिश्ते ऐसे नही होते जैसे दिखते हैं

दुनिया में लोगों ने बहुत बार रिश्तों पर कलम चलाई है
लेकिन कम ही कलम औलाद के दर्द को छू पाई हैं

दुनिया में माँ - बाप तो इनसान अपनी मर्जी से बनता है
लेकिन औलाद कभी कोई अपनी मर्जी से नही बनता

अब तो दुनिया का शुरुआती दौर नही है
औलाद पैदा हो जाना अब कोई जबर्दस्ती नही है

अगर माँ - बाप बनना इनसान ने चुना है
तो उन ओहदों के फर्ज़ पूरे करना उसके साथ बुना है

औलाद बनना इनसान की मर्जी नही है, फिर भी
इस ओहदे के फर्ज़ पूरे करने की बात लोगों ने कही है

औलाद तो माँ - बाप के एक से ज्यादा भी हो सकती हैं
लेकिन माँ - बाप तो औलाद के कई नही हो सकते

एक औलाद के ठुकराने पर माँ - बाप दूसरी से दिल लगा सकते हैं
लेकिन माँ - बाप के मुँह मोड़ने पर औलाद किसके माँ - बाप से दिल लगा सकती है

औलाद तो माँ - बाप गोद भी ले सकते हैं, लेकिन
औलाद माँ - बाप को गोद नही ले सकती

औलाद का दर्द जानना है तो 'नाजायज' कहे जाने वालों से पूछो
यतीमखानो में पल रहे अनाथों से पूछो

लड़का-लड़की के भेद-भाव की शिकार कन्याओं से पूछो
सड़क पर कूड़ा बीनते, बाल-मजदूरी करते बचपन से पूछो

क्या इनकी माँ नही हैं ? क्या इनके बाप नही हैं ?
जन्म देकर औलाद को कूड़े के ढेर में फेंक देने वाली भी तो 'माँ' ही होती हैं

मैं मानता हूँ कि बच्चे का लालन-पालन करने वाली 'माँ' महान होती है
लेकिन एक 'माँ', औरत, सामाजिक-प्राणी भी तो होती है

कोई एक रिश्ता जी लेने से माँ ही क्या
कोई भी इनसान महान नही हो जाता

महान बनने के लिए इनसान को एक नही
हरेक रिश्ता जीना पड़ता है

अपने ख़ुद के बच्चे से लगाव होना ही 'माँ' होने की कसौटी नही है
सच्ची माँ की कसौटी पर सब बच्चे समान होते हैं

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माँ के प्यार से ऊपर औलाद का दर्द है

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वो बात-बात में हमारा रास्ता रोक कर खड़ी हो जाती हैं
जब हम हटाते हैं तो उसे मारना-पीटना बताती हैं

बेशक़ वो हमसे बेइनतहा प्यार करती हैं
लेकिन कई बार लगता है, वो प्यार नही दहशतगर्दी है

खैर, जो भी है, मैंने और मेरे भाई ने फिर भी यह तय किया है
कि जब तक हमारी बहन की शादी नही हो जाती, हम शादी नही करेंगे

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aqsh
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«Reply #3 on: December 05, 2013, 08:24:25 PM »
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SURESH SANGWAN
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lovely_charan
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«Reply #5 on: December 06, 2013, 02:45:06 AM »
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suman59
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«Reply #6 on: December 06, 2013, 03:32:59 AM »
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nandbahu
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«Reply #7 on: December 06, 2013, 09:23:08 AM »
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srishti raj chintak
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«Reply #8 on: December 06, 2013, 06:21:59 PM »
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srishti raj chintak
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«Reply #9 on: December 06, 2013, 06:23:23 PM »
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«Reply #10 on: December 06, 2013, 06:24:55 PM »
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«Reply #11 on: December 06, 2013, 06:26:30 PM »
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«Reply #12 on: December 06, 2013, 06:27:59 PM »
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«Reply #13 on: December 06, 2013, 06:29:21 PM »
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