जुबां हिलती नहीं खामोश

by anil kumar aksh on May 16, 2010, 01:50:36 PM
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anil kumar aksh
Guest
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जुबां हिलती नहीं खामोश लव कुछ कह नहीं पाते
मगर नज़रे झुकाने का बहाना ढूढ़ लेते है ॥
जहाँ मिलती कोई मूरत उसे हम पूज लेते है ।
की सिजदे का कोई हमतो बहाना दूढ़ लेते है ॥
किसे फुर्सत यहाँ मिलती है दिल से मुस्कुराने की ।
मगर हर वक़्त रोने का बहाना ढूढ़ लेते है ॥
तमन्ना है जिन्हें उस दौर का थोडा मज़ा ले ले ।
कि हम तो मुसुकुराने का बहाना ढूढ़ लेते है ॥
नज़र मिलती नहीं फिर भी नज़र सब देखती तो है
जो देखा था कभी हम वो ज़माना ढूढ़ लेते है ॥
ये दरिया है नहीं रूकती रवानी बढती जाती है ।
मगर हम है अपना आशियानां ढूढ़ लेते है ॥
कही तूफान रुख न मोड़ दे अपने सफीने का ।
कि हम तो बस अभी से आबोदाना ढूढ़ लेते है ॥
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Rajesh Harish
Guest
«Reply #1 on: May 16, 2010, 06:17:52 PM »
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Bahut khoob Anil Ji
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Pooja
Guest
«Reply #2 on: May 16, 2010, 06:48:11 PM »
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bahoot khoob Anil!!
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KOYAL46
Guest
«Reply #3 on: May 16, 2010, 07:39:05 PM »
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Achhi kavita hai aapki Anil aksh-ji................ Applause Applause Applause

Julm se ladne ki jin mein taakat nahi
Usse katrane k raaste dhund lete hain

Ranj-o-gam k pahaad hain jeevan main
Phir bhi hasne k bahaane dhund lete hain


जुबां हिलती नहीं खामोश लव कुछ कह नहीं पाते
मगर नज़रे झुकाने का बहाना ढूढ़ लेते है ॥
जहाँ मिलती कोई मूरत उसे हम पूज लेते है ।
की सिजदे का कोई हमतो बहाना दूढ़ लेते है ॥
किसे फुर्सत यहाँ मिलती है दिल से मुस्कुराने की ।
मगर हर वक़्त रोने का बहाना ढूढ़ लेते है ॥
तमन्ना है जिन्हें उस दौर का थोडा मज़ा ले ले ।
कि हम तो मुसुकुराने का बहाना ढूढ़ लेते है ॥
नज़र मिलती नहीं फिर भी नज़र सब देखती तो है
जो देखा था कभी हम वो ज़माना ढूढ़ लेते है ॥
ये दरिया है नहीं रूकती रवानी बढती जाती है ।
मगर हम है अपना आशियानां ढूढ़ लेते है ॥
कही तूफान रुख न मोड़ दे अपने सफीने का ।
कि हम तो बस अभी से आबोदाना ढूढ़ लेते है ॥
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neelgold
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«Reply #4 on: May 17, 2010, 11:40:27 PM »
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Bhut hi khoob AKsh Ji
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~Hriday~
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kalam k chalne ko zamaana paagalpan samajhta hai.

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«Reply #5 on: May 17, 2010, 11:52:09 PM »
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bahut khoob likha hai aapne Anil ji...!!!
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liza sanhu
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«Reply #6 on: May 31, 2010, 11:40:43 PM »
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very nice Anil
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deepika_divya
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«Reply #7 on: June 01, 2010, 09:31:30 AM »
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Waah Bahoot Bahoot Khoob Anil Ji
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banwari
Guest
«Reply #8 on: January 13, 2011, 06:27:55 AM »
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जुबां हिलती नहीं खामोश लव कुछ कह नहीं पाते
मगर नज़रे झुकाने का बहाना ढूढ़ लेते है ॥
जहाँ मिलती कोई मूरत उसे हम पूज लेते है ।
की सिजदे का कोई हमतो बहाना दूढ़ लेते है ॥
किसे फुर्सत यहाँ मिलती है दिल से मुस्कुराने की ।
मगर हर वक़्त रोने का बहाना ढूढ़ लेते है ॥
तमन्ना है जिन्हें उस दौर का थोडा मज़ा ले ले ।
कि हम तो मुसुकुराने का बहाना ढूढ़ लेते है ॥
नज़र मिलती नहीं फिर भी नज़र सब देखती तो है
जो देखा था कभी हम वो ज़माना ढूढ़ लेते है ॥
ये दरिया है नहीं रूकती रवानी बढती जाती है ।
मगर हम है अपना आशियानां ढूढ़ लेते है ॥
कही तूफान रुख न मोड़ दे अपने सफीने का ।
कि हम तो बस अभी से आबोदाना ढूढ़ लेते है ॥
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manjum
Guest
«Reply #9 on: January 13, 2011, 06:35:23 AM »
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bahut bahut daad kubul karen Anilji...

khub likha hai.
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SURESH SANGWAN
Guest
«Reply #10 on: January 13, 2011, 06:42:25 AM »
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anil kumar ji bahut khoob likha hai aapne.
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