न यूँ जुल्फे खुली छोडो क़यामत का इरादा है

by anil kumar aksh on June 04, 2010, 02:50:32 AM
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anil kumar aksh
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न यूँ जुल्फे खुली छोडो क़यामत का इरादा है ।
नज़र भर देखने तो दो इबादत का इरादा है ॥
ये माना कि तुम्हे फुर्सत नहीं नज़रे उठाने की ।
ना जाने अब तुम्हारा किस क़यामत का इरादा है ॥
वो तेरा सर उठाना देख कर है ये कदम मचले ।
ना जाने क़ि इन्हें किस घर को जाने का इरादा है ।।
ये माना तुम हसीं हो खुबसूरत हो मगर लेकिन ।
क़ि दिल भी खूबसूरत है बता देते तो अच्छा था । ।
कि चेहरे पे महकते उन गुलाबो को छुपा लो पर ।
नज़र में वो महकता है बता देते तो अच्छा था ॥
मै अपनी राह भूला हू तेरे जलवो को देखा है ।
मेरी उस राह को मुझसे मिला देते तो अच्छा था ॥
तेरे खामोश लव पर है मचलते कुछ जवां नगमे ।
ज़रा नज़रे उठाकर मुस्कुरा देते तो अच्छा था ॥
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«Reply #1 on: June 04, 2010, 12:35:39 PM »
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bahut bahut khoob likha hai Anil ji...!!!
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KOYAL46
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«Reply #2 on: June 04, 2010, 02:05:24 PM »
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Good poem Aksh-ji........
न यूँ जुल्फे खुली छोडो kya क़यामत का इरादा है ।
mujhe laga shayad ye shabd chhut gaya hai....kyuki kayamat wo dha rahi hai...aap nahi.....Devnagri lipi ka prayog achha laga.....

Yu gairo ko dekh kar muskuraate nahi hain hum
Bhatkey huyon ko sahi rah par le aate hain hum


न यूँ जुल्फे खुली छोडो क़यामत का इरादा है ।
नज़र भर देखने तो दो इबादत का इरादा है ॥
ये माना कि तुम्हे फुर्सत नहीं नज़रे उठाने की ।
ना जाने अब तुम्हारा किस क़यामत का इरादा है ॥
वो तेरा सर उठाना देख कर है ये कदम मचले ।
ना जाने क़ि इन्हें किस घर को जाने का इरादा है ।।
ये माना तुम हसीं हो खुबसूरत हो मगर लेकिन ।
क़ि दिल भी खूबसूरत है बता देते तो अच्छा था । ।
कि चेहरे पे महकते उन गुलाबो को छुपा लो पर ।
नज़र में वो महकता है बता देते तो अच्छा था ॥
मै अपनी राह भूला हू तेरे जलवो को देखा है ।
मेरी उस राह को मुझसे मिला देते तो अच्छा था ॥
तेरे खामोश लव पर है मचलते कुछ जवां नगमे ।
ज़रा नज़रे उठाकर मुस्कुरा देते तो अच्छा था ॥
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jasbirsingh
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«Reply #3 on: June 04, 2010, 03:16:14 PM »
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wah wah Anil Ji... bahut hi khoob ji

jasbir singh
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Pallavi Gupta
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«Reply #4 on: June 04, 2010, 05:31:33 PM »
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wow.........what a poem......i really like it.....

good job n really toooo goooood creation.......
 

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SARVESH RASTOGI
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«Reply #5 on: June 05, 2010, 04:14:14 PM »
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Wah achchha likha hai aapne
Lekin ye do separate ghazal lagti hain
Ek jagah kaise mix ho gai
Anyhow very nice
SARVESH RASTOGI
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