ना रोना तुम कभी ऐ कविता.................आनंद मोहन

by anand mohan on June 13, 2012, 06:29:36 PM
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anand mohan
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दोस्तों,
मेरी पिछली रचना “कविता देती है आवाज़” में कविता ने दर्द भरे शब्दों में कवी से अपनी उपेक्षा को अभिव्यक्त किया था. प्रस्तुत रचना में कवि ने भी कविता को उसकी उपेक्षा का कारण और संभावित निवारण बताने कि कोशिश की है. आशा है रचना आपको पसंद आएगी.



ना रोना तुम कभी ऐ कविता, यह कवि तुम्हारा कहता है,

आनंद प्रभा का मिलता है, जब रात अँधेरा रहता है.

हम थके नहीं, ना सोये ही है, उद्योग निरत है सृजन में,

हम तुम्हें ढूंढते है कविता, हर कोने में, हर कण-कण में.

कभी जो रुक जाती है लेखनी, उसका भी कुछ कारण है,

भूख, गरीबी, बेकारी का मिलता नहीं निवारण है.

सूख चुकी है स्याही उनकी, जिनके बच्चे रोते है,

उदर को अपने दाब-दाब कर आंसू पीकर सोते हैं.

पेट काट कर दीन पिता जो बच्चे को खूब पढाता है,

पढ़-लिख कर भी बेटा जब कुछ रोज़ी कमा न पाता है.

बात सभी आदर्शों की पुस्तक में भरे रह जाते हैं,

टूट जाती है नोंक कलम की, सिद्धांत धरे रह जाते हैं.

रक्षक बनने लगे है भक्षक, सोच हुई है हैवानी ,

रगों में अब रफ़्तार कहाँ है, खून हुआ है सब पानी.

राष्ट्र के कोने-कोने को अब चाट रहे हैं दीमक ऐसे,

जिस कागज़ पर लिखें  कविता, कहाँ से लायें कागज़ ऐसे.

आज़ादी कविता की जिद है, यहाँ सब बंधन में दीखते हैं,

वे  हाथ हो गए  पंगु है, जो हाथ कविता लिखते हैं.

बड़ी बेबसी इतनी, फिर भी मन में ये विश्वास तो है,

कुसुम खिलेंगे गुलशन में फिर से बस इतनी आस तो है.

ऐ कविता श्रृंगार तेरा, बन शौर्य एक अलख जगायेगा,

ज़र्ज़र इस दुनिया में फिर से, एक परिवर्तन लाएगा.

धूल का ज़र्रा-ज़र्रा तेरा एक तूफ़ान मचायेगा ,

कविता मेरी अमर है तू, तुझे कोई मिटा ना पायेगा.


                              -आनंद मोहन



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kamlesh.yadav001
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«Reply #1 on: June 14, 2012, 03:34:43 AM »
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bahut khoob
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sksaini4
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«Reply #2 on: June 14, 2012, 03:48:39 AM »
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bahut manoram bahut sunder sachhaaiyaan bayaan kartee hui dil se shubhkaamnaayen aur ek rau
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adil bechain
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«Reply #3 on: June 14, 2012, 05:40:53 AM »
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दोस्तों,
मेरी पिछली रचना “कविता देती है आवाज़” में कविता ने दर्द भरे शब्दों में कवी से अपनी उपेक्षा को अभिव्यक्त किया था. प्रस्तुत रचना में कवि ने भी कविता को उसकी उपेक्षा का कारण और संभावित निवारण बताने कि कोशिश की है. आशा है रचना आपको पसंद आएगी.



ना रोना तुम कभी ऐ कविता, यह कवि तुम्हारा कहता है,

आनंद प्रभा का मिलता है, जब रात अँधेरा रहता है.

हम थके नहीं, ना सोये ही है, उद्योग निरत है सृजन में,

हम तुम्हें ढूंढते है कविता, हर कोने में, हर कण-कण में.

कभी जो रुक जाती है लेखनी, उसका भी कुछ कारण है,

भूख, गरीबी, बेकारी का मिलता नहीं निवारण है.

सूख चुकी है स्याही उनकी, जिनके बच्चे रोते है,

उदर को अपने दाब-दाब कर आंसू पीकर सोते हैं.

पेट काट कर दीन पिता जो बच्चे को खूब पढाता है,

पढ़-लिख कर भी बेटा जब कुछ रोज़ी कमा न पाता है.

बात सभी आदर्शों की पुस्तक में भरे रह जाते हैं,

टूट जाती है नोंक कलम की, सिद्धांत धरे रह जाते हैं.

रक्षक बनने लगे है भक्षक, सोच हुई है हैवानी ,

रगों में अब रफ़्तार कहाँ है, खून हुआ है सब पानी.

राष्ट्र के कोने-कोने को अब चाट रहे हैं दीमक ऐसे,

जिस कागज़ पर लिखें  कविता, कहाँ से लायें कागज़ ऐसे.

आज़ादी कविता की जिद है, यहाँ सब बंधन में दीखते हैं,

वे  हाथ हो गए  पंगु है, जो हाथ कविता लिखते हैं.

बड़ी बेबसी इतनी, फिर भी मन में ये विश्वास तो है,

कुसुम खिलेंगे गुलशन में फिर से बस इतनी आस तो है.

ऐ कविता श्रृंगार तेरा, बन शौर्य एक अलख जगायेगा,

ज़र्ज़र इस दुनिया में फिर से, एक परिवर्तन लाएगा.

धूल का ज़र्रा-ज़र्रा तेरा एक तूफ़ान मचायेगा ,

कविता मेरी अमर है तू, तुझे कोई मिटा ना पायेगा.


                              -आनंद मोहन






waaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa aaaaaaaah kavita ke importance ko bakhoobi byaan kiya
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ek rau hazir hai
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anand mohan
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«Reply #4 on: June 14, 2012, 09:02:21 AM »
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bahut manoram bahut sunder sachhaaiyaan bayaan kartee hui dil se shubhkaamnaayen aur ek rau
BAHUT BAHUT DHANYAVAAD, SIR
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anand mohan
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«Reply #5 on: June 14, 2012, 09:04:44 AM »
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bahut khoob
DHANYAVAAD, KAMLESH JEE.
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anand mohan
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«Reply #6 on: June 14, 2012, 09:07:48 AM »
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waaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa aaaaaaaah kavita ke importance ko bakhoobi byaan kiya
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ek rau hazir hai
ADIL SAHAB, HAUSLA-AFZAYEE KE LIYE TAHE DIL SE SHUKRIYA.
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masoom shahjada
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«Reply #7 on: June 14, 2012, 11:38:50 AM »
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Waaaah waah
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anand mohan
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«Reply #8 on: June 14, 2012, 05:27:36 PM »
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Waaaah waah
shukriya, masoom sahab
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BANSI DHAMEJA
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«Reply #9 on: June 14, 2012, 05:38:36 PM »
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Bahut khoob likha hai.

Kavita to dil ki awaaz hai kavita kisi ki muhtaj nahin
Kavita likhi jayegi jab tak dil ka dahrhkna rukita nahin



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anand mohan
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«Reply #10 on: June 14, 2012, 05:50:55 PM »
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Bahut khoob likha hai.

Kavita to dil ki awaaz hai kavita kisi ki muhtaj nahin
Kavita likhi jayegi jab tak dil ka dahrhkna rukita nahin




shukriya, dhameja sahab
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khamosh_aawaaz
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«Reply #11 on: June 14, 2012, 06:23:53 PM »
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दोस्तों,
मेरी पिछली रचना “कविता देती है आवाज़” में कविता ने दर्द भरे शब्दों में कवी से अपनी उपेक्षा को अभिव्यक्त किया था. प्रस्तुत रचना में कवि ने भी कविता को उसकी उपेक्षा का कारण और संभावित निवारण बताने कि कोशिश की है. आशा है रचना आपको पसंद आएगी.



ना रोना तुम कभी ऐ कविता, यह कवि तुम्हारा कहता है,

आनंद प्रभा का मिलता है, जब रात अँधेरा रहता है.

हम थके नहीं, ना सोये ही है, उद्योग निरत है सृजन में,

हम तुम्हें ढूंढते है कविता, हर कोने में, हर कण-कण में.

कभी जो रुक जाती है लेखनी, उसका भी कुछ कारण है,

भूख, गरीबी, बेकारी का मिलता नहीं निवारण है.

सूख चुकी है स्याही उनकी, जिनके बच्चे रोते है,

उदर को अपने दाब-दाब कर आंसू पीकर सोते हैं.

पेट काट कर दीन पिता जो बच्चे को खूब पढाता है,

पढ़-लिख कर भी बेटा जब कुछ रोज़ी कमा न पाता है.

बात सभी आदर्शों की पुस्तक में भरे रह जाते हैं,

टूट जाती है नोंक कलम की, सिद्धांत धरे रह जाते हैं.

रक्षक बनने लगे है भक्षक, सोच हुई है हैवानी ,

रगों में अब रफ़्तार कहाँ है, खून हुआ है सब पानी.

राष्ट्र के कोने-कोने को अब चाट रहे हैं दीमक ऐसे,

जिस कागज़ पर लिखें  कविता, कहाँ से लायें कागज़ ऐसे.

आज़ादी कविता की जिद है, यहाँ सब बंधन में दीखते हैं,

वे  हाथ हो गए  पंगु है, जो हाथ कविता लिखते हैं.

बड़ी बेबसी इतनी, फिर भी मन में ये विश्वास तो है,

कुसुम खिलेंगे गुलशन में फिर से बस इतनी आस तो है.

ऐ कविता श्रृंगार तेरा, बन शौर्य एक अलख जगायेगा,

ज़र्ज़र इस दुनिया में फिर से, एक परिवर्तन लाएगा.

धूल का ज़र्रा-ज़र्रा तेरा एक तूफ़ान मचायेगा ,

कविता मेरी अमर है तू, तुझे कोई मिटा ना पायेगा.


                              -आनंद मोहन






VERIIIIIIIIIIIIIII NAAAAAAAAAAAAAAAAAAAICE AM ONE RAU
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anand mohan
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«Reply #12 on: June 17, 2012, 04:24:06 AM »
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VERIIIIIIIIIIIIIII NAAAAAAAAAAAAAAAAAAAICE AM ONE RAU
Aapka tah-e-dil se shukriya
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«Reply #13 on: July 24, 2012, 11:35:14 AM »
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Congratulation,

Your work has been featured on July 2012 Yoindia Shayariadab newsletter. You can give your feedback as well can read more about it at:
The Goodness of Poetry : July 2012 Newsletter : Yoindia Shayariadab
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«Reply #14 on: July 24, 2012, 11:38:43 AM »
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Waah Waah Waah....

Taareef Ke Liye Mere Paas Lafz nahi..

Bahut Hi Sundar Kavita..

Bahut Bahut Khoob!!!!

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