मसले रसोई के क्यूँ आप सड़कों पर लाते हो।

by kavyadharateam on September 12, 2018, 04:54:06 AM
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kavyadharateam
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मसले रसोई के क्यूँ आप सड़कों पर लाते हो।                                             इससे क्या फ़र्क पड़ता है आप क्या खाते हो।।

सुर्खियाँ बने रहने की अब आदत हो गयी आपकी।
इसलिए बात बेतुकी हर बात पर कह जाते हो।।

मांस खाओ,चमड़ी खाओ,ये  मर्ज़ी है आपकी।
अरे घर में खाओ,सड़कों पे दंगे क्यों करवाते हो।।

गोश्त खाना पाप नही है,हम तो लाज़िम खायेंगे।
आप हमें बताओ कि ये सब क्यों हमको बतलाते हो।।

ज़ाहिलों  की क़ब्र पर कभी घास तक उगती नहीं।
फिर बेज़ा क्यूँ बोलकर ज़ाहिल तुम कहलाते हो।।

कल तुम हमामो-बारगाह के किस्से हमें बताओगे।
किसके संग तुम सोते हो,संग किसे नहलाते हो।।

गर वक़्त नहीं कटता है तो बच्चे ग़रीब पढ़ाइये।
जाकर तालीमें बाँटिये,बेकार क्यों भेजा खाते हो।।

फिर कहोगे आप पर क्यूँ मुल्क़ ये सारा हँसता है।
ख़ुद अपनी पोशाकों पे क्यों ख़ुद रायता फैलाते हो।।

एक ज़ुबाँ किसी आदमी को अर्श पर ले जाती है।
क्यों अर्श से फ़र्श पे एक लम्हे में आप आ जाते हो।।

"दीपक" है हमराह इसलिये जल के राह दिखाता है।
पर आप उससे कह रहे क्यूँ रोशनी दिखलाते हो।।

सर्वाधिकार@दीपक शर्मा
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Миша
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«Reply #1 on: September 12, 2018, 10:38:16 AM »
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surindarn
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«Reply #2 on: September 12, 2018, 08:45:53 PM »
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मसले रसोई के क्यूँ आप सड़कों पर लाते हो।                                                                                                                                                
इससे क्या फ़र्क पड़ता है आप क्या खाते हो।।

सुर्खियाँ बने रहने की अब आदत हो गयी आपकी।
इसलिए बात बेतुकी हर बात पर कह जाते हो।।

मांस खाओ,चमड़ी खाओ,ये  मर्ज़ी है आपकी।
अरे घर में खाओ,सड़कों पे दंगे क्यों करवाते हो।।

गोश्त खाना पाप नही है,हम तो लाज़िम खायेंगे।
आप हमें बताओ कि ये सब क्यों हमको बतलाते हो।।

ज़ाहिलों  की क़ब्र पर कभी घास तक उगती नहीं।
फिर बेज़ा क्यूँ बोलकर ज़ाहिल तुम कहलाते हो।।

कल तुम हमामो-बारगाह के किस्से हमें बताओगे।
किसके संग तुम सोते हो,संग किसे नहलाते हो।।

गर वक़्त नहीं कटता है तो बच्चे ग़रीब पढ़ाइये।
जाकर तालीमें बाँटिये,बेकार क्यों भेजा खाते हो।।

फिर कहोगे आप पर क्यूँ मुल्क़ ये सारा हँसता है।
ख़ुद अपनी पोशाकों पे क्यों ख़ुद रायता फैलाते हो।।

एक ज़ुबाँ किसी आदमी को अर्श पर ले जाती है।
क्यों अर्श से फ़र्श पे एक लम्हे में आप आ जाते हो।।

"दीपक" है हमराह इसलिये जल के राह दिखाता है।
पर आप उससे कह रहे क्यूँ रोशनी दिखलाते हो।।

सर्वाधिकार@दीपक शर्मा

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